राजनीति में बिरले मिलेंगे ऐसे संबंध, सुषमा स्वराज की प्रतिबद्धता के कायल थे चंद्रशेखर
सुषमा स्वराज के रुप में देश ने एक ऐसा नेता खो दिया जिसके कुशल व्यवहार के दूसरे दल के नेता भी कायल थे।
बलिया, [लवकुश सिंह]। सुषमा स्वराज के रुप में देश ने एक ऐसा नेता खो दिया जिसके कुशल व्यवहार के दूसरे दल के नेता भी कायल थे। उनमे से एक नाम पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का भी है जो सुषमा स्वराज की प्रतिबद्धता के कायल रहते थे। अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ, बात वर्ष 2003 की ही है। जब जिले के जयप्रकाशनगर में जेपी जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा था। देश की नामी हस्तियां जेपी के गांव में पहुंची थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी सहित भाजपा के दर्जन भर शीर्ष नेता समाजवाद की उस भूमि पर जेपी को नमन करने पहुंचे थे। उसी भीड़ में बतौर सूचना प्रसारण मंत्री रहीं सुषमा स्वराज भी थी। उससे पहले भी चंद्रशेखर के बुलावे पर वह बतौर अतिथि जेपी की धरती पर पहुंच जाती थी। वर्ष 2003 में जेपी जयंती के मंच का संचालन स्वयं युवा तुर्क चंद्रशेखर ही कर रहे थे। तब सुषमा स्वराज के संबोधन के एक-एक शब्द ने जनता का दिल जीत लिया था। अंत में बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने सभा को संबोधित किया था। उस दौरान सभा में मौजूद लोग दोनों ही नेताओं के शब्दों की सराहना करते नहीं थकते थे।
यह सत्य है कि भारतीय राजनीति में अब बिरले ही ऐसे लोग मिलेंगे जो विपरीत दलों में रहते हुए भी एक दूसरे के प्रति अच्छे भाव रखते होंं। नगर में स्थित चंद्रशेखर फाउंडेशन के अध्यक्ष अनिल सिंह बताते हैं कि चंद्रशेखर व सुषमा स्वराज दोनों विपरीत दलों का हिस्सा रहते हुए भी कभी अपनी मर्यादा नहीं लांघे। इसके कई उदाहरण लोगों ने देखे हैं। सभी को याद है वह दिन जब उन्होंने साल 1996 में लोकसभा में तत्कालीन सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव पर बोलते हुए सुषमा स्वराज ने चंद्रशेखर को भीष्म पितामह कह कर संबोधित किया था। इसी तरह साल 2004 में सोनिया गांधी को लेकर दिए गए एक बयान को लेकर चंद्रशेखर ने सुषमा स्वराज की राज्यसभा की सदस्यता बर्खास्त करने तक की मांग की थी। लेकिन दोनों तरफ से कभी कोई अमर्यादित टिप्पणी एक-दूसरे के विषय में नहीं की गई। सुषमा स्वराज किसी वक्त चंद्रशेखर को अपना राजनीतिक गुरु भी मानती थीं। लेकिन बाद के दिनों में वे लाल कृष्ण आडवाणी के करीब आईं और भारतीय जनता पार्टी का होकर रह गई।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 25-26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक के आपातकाल में भी उन्होंने चंद्रशेखर की तरह ही अपना किरदार अदा किया था। तब सरकार की नीतियों की वजह से महंगाई दर 20 गुना बढ़ गई थी। गुजरात और बिहार में शुरू हुए छात्र आंदोलन के साथ जनता आगे बढ़ती हुई सड़कों पर उतर आई थी। उनका नेतृत्व कर रहे थे बहत्तर साल के एक बुजुर्ग जयप्रकाश नारायण। उस आंदोलन में भी उन्होंने जेपी के विचारों संग खुद को खड़ा किया। 1975-1976 के बाद जनसंघ सहित देश के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय कर के एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया।
जनता पार्टी ने 1977 से 1980 तक भारत सरकार का नेतृत्व किया। आंतरिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी 1980 में टूट गई। जिसके बाद वर्ष 2013 में इसका विलय भारतीय जनता पार्टी में हो गया। इस लोक से विदा हुई सुषमा स्वराज ने आपातकाल से लेकर, जनसंघ और भाजपा तक के सफर में देश की जो भी जिम्मेदारी मिली उसके निर्वहन में कहीं कोई कमी नहीं रखा। ऐसे नेता के निधन पर जिले के लोग भी मर्माहत हैं।
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