अमेरिका के अमेजन नदी में पाई जाने वाली सकर कैटफिश वाराणसी गंगा नदी में मिली
यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि गंगा नदी में हजारों मील दूर की सकर कैटफिश अमेजन नदी से होती हुई वाराणसी में गंगा नदी तक पहुंच गई है।
वाराणसी, जेएनएन। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि गंगा नदी में हजारों मील दूर की सकर कैटफिश अमेजन नदी से होती हुई वाराणसी में गंगा नदी तक पहुंच गई है। खास बात यह भी है कि यह मछली काशी की गंगा नदी में बेहतर स्थिति में कुछ दिनों पूर्व बरामद हुई थी। इसकी पहचान मात्सियिकी विशेषज्ञों ने सकर कैटफिश के रूप में की है।
राम नगर क्षेत्र में गंगा नदी में स्वस्थ हाल में मिली यह मछली कुछ दिनों पूर्व लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बनी हुई थी। हालांकि अब उसकी पहचान उजागर होने से लोगाें में इस मछली के इतनी दूर तक नदी में आने की चर्चा भी होने लगी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि एक्वेरियम में पालने के लिए इस मछली को रखने की परंपरा रही है। किसी के एक्वेरियम से यह मछली शायद नदी में छोड़ी गई होगी और गंगा के सुरक्षित पर्यावास में यह मछली बेहतर तरीके से पलने और बढ़ने लगी है। हालांकि यह कितनी संख्या में गंगा नदी में हैं, इसकी जानकारी नहीं है। मगर उम्मीद है कि बेहतर पर्यावास मिलने की वजह से इनकी संख्या भविष्य में गंगा नदी में और भी बढ़ सकती है।
गंगा में मिली थी अजीबोगरीब मछली
रामनगर में गंगा प्रहरी टीम के प्रदेश संयोजक दर्शन निषाद के नेतृत्व में डॉल्फिन संरक्षण जन जागरूकता अभियान के तहत गंगा नदी में मछुआरों संग निगरानी की जा रही थी। इसी दरम्यान ग्राम सूजाबाद के सामने गंगा नदी में रेस्क्यू करते समय मछुआरों के जाल में अजीबोगरीब मछली फंस गई। मछली लोगों के बीच कौतूहल का विषय बन गई। कोई भी मछुआरा इस मछली की पहचान नही कर सका।
गंगा प्रहरी टीम के प्रदेश संयोजक दर्शन निषाद ने बताया था कि जाल में फंसी मछली के सिर के नीचे मुंह है। ऊपर के हिस्सा पर आंख है और शरीर पर कांटे उभरे हुए हैं। इस मछली का रंग भी बहुत ही अलग चटख नारंगी जैसा है। जिसकी पहचान नहीं हो पा रही। उस समय इसके क्लास स्तर की मछली होने का अंदेशा जताया जताया गया था। उक्त मछली की पहचान के लिए नमामि गंगे भारत सरकार तथा भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रुचि बडोला तथा वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. ए. हुसैन को जानकारी भेजी गयी थी। तब इसकी पहचान हो सकी है।