वसंत ऋतु में बड़े काम की मूली और अदरक, ग्रीष्मकाल में प्रवेश के हो जाएंगे अभ्यस्त
ऋतुओं के बदलने के क्रमानुसार ही प्रकृति और शरीर मे दोषों की स्थिति भी बदलती रहती है। ऋतुओं के अनुसार व्यक्ति को अपने खान-पान में परिवर्तन कर लेना चाहिए।
वाराणसी [कृष्ण बहादुर रावत]। ऋतु के अनुसार हम लोगों को खान पान का सेवन करना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार संपूर्ण वर्ष को दो काल में विभक्त किया गया है- आदान काल और विसर्ग काल। आदान काल में सूर्य उत्तरायण रहते हैं और विसर्ग काल में दक्षिणायन। ये ऋतु शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद व हेमंत नाम से जानी जाती हैं। इन ऋतुओं के क्रम के अनुसार ही प्रकृति और शरीर मे दोषों की स्थिति भी बदलती रहती है। ऋतुओं के अनुसार व्यक्ति को अपने खान-पान में परिवर्तन कर लेना चाहिए।
वसंत ऋतु दरअसल शीत और ग्रीष्म का सन्धिकाल होती है। प्रकृति ने यह व्यवस्था इसलिए की है ताकि लोग शीतकाल को छोडऩे और ग्रीष्मकाल में प्रवेश करने के अभ्यस्त हो जाए। वसंत ऋतु से पहले शीत के कारण संचित कफ सूर्य की तीक्षणता से पिघलने लगता है। इस वजह से शरीर की अग्नि खास तौर पर जठराग्नि मंद पड़ जाती है।
राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय के वैद्य अजय कुमार ने सोमवार को बताया कि भारी, चिकनाई वाले, खट्टे और मीठे पदार्थों का सेवन नहीं के बराबर करना चाहिए। लाई, भूना हुआ चना, ताजी मूली, अदरक, पुराना जौ व पुराना गेंहू खाना चाहिए। सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है। मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस व सिरका का प्रयोग करना चाहिए। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के अनुसार अनुसार पंचकर्म चिकित्सा मुख्य रुप से वमन क्रिया उत्तम मानी जाती है। उदर्वतन जड़ी बूटी के पाउडर के मालिश करना व गर्म पानी से गरारे करना भी कफ को कम करने में सहायक होता हैै।