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कोरोना काल में टीबी रोगियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता : जिलाधिकारी

जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने स्वास्थ्य विभाग को निर्देशित किया है कि टीबी रोगियों में कोरोना संक्रमण होने का खतरा अधिक है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 02 Sep 2020 03:05 PM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 03:05 PM (IST)
कोरोना काल में टीबी रोगियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता : जिलाधिकारी
कोरोना काल में टीबी रोगियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता : जिलाधिकारी

वाराणसी, जेएनएन। जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने स्वास्थ्य विभाग को निर्देशित किया है कि टीबी रोगियों में कोरोना संक्रमण होने का खतरा अधिक है। अतः पुराने टीबी रोगियों के नियमित इलाज एवं उनको समय से दवा की उपलब्धता का विशेष ध्यान रखा जाए। साथ ही छिपे हुये टीबी रोगियों को सक्रियता से खोजकर उनका समय से जांच कराते हुये इलाज प्रारम्भ किया जाए। जिलाधिकारी ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी टीबी मरीजों को उनके इलाज के दौरान निक्षय पोषण योजना के तहत पोषाहार हेतु मिलने वाले 500 रुपये की आर्थिक मदद प्रत्येक माह समय से उनके बैंक खाते में स्थानांतरित हो जाए।

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जिलाधिकारी ने जनपद वासियों से अपील किया कि कोरोना काल में टीबी रोगियों का विशेष ध्यान रखा जाए तथा उनके नियमित जांच और इलाज के प्रति परिजन सचेत एवं सक्रिय रहें। टीबी के मरीज अधिक से अधिक समय तक अपने घरों में आइसोलेशन में ही रहें, भीड़भाड़ वाले जगहों पर जाने से बचें तथा कोरोना से बचाव हेतु बताए गए नियमों का पालन करें। जिलाधिकारी ने कहा कि देश को क्षय रोग (टीबी) से मुक्त करने के लिए सरकार ने वर्ष 2025 का लक्ष्य रखा है। इसके साथ टीबी के इलाज की व्यवस्था का सुदृणीकरण किया गया है। अब जनपद में टीबी जांच के लिए सीबी-नाट जैसी आधुनिक मशीनें और आधुनिक दवाएं निःशुल्क उपलब्ध हैं। समय-समय पर चलाये जाने वाले सक्रिय टीबी रोगी खोज अभियान के माध्यम से छिपे हुये टीबी रोगियों को खोजकर उनके निःशुल्क इलाज की व्यवस्था की गयी है। आवश्यकता है कि टीबी के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही चिकित्सक से परामर्श प्राप्तकर अपना नियमित इलाज शुरू कराएं।

निर्धारित अवधि तक टीबी का कोर्स पूरा करने और किसी भी दिन टीबी की दवा न छूटने से टीबी का इलाज पूर्णतया संभव है। लोगों में भी टीबी को लेकर भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता है। समय से अपना इलाज प्रारम्भ कर निर्धारित अवधि तक इलाज सुनिश्चित करने पर टीबी बीमारी से पूर्णतया मुक्त हुआ जा सकता है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ वीबी सिंह ने बताया कि टीबी एक संक्रामक बीमारी है जिसके उन्मूलन के लिए “राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम” चलाया जा रहा है, जिसके अंतर्गत मरीजों को उनके घर के एक किमी के अंदर डॉट्स सेंटर बनाये गये हैं ताकि क्षय रोगियों को दवा लेने में कोई परेशानी न हो। इसके साथ ही समय–समय पर सक्रिय टीबी खोज अभियान चलाया जाता है जिसमें स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाकर टीबी के छिपे संभावित मरीजों की स्क्रीनिंग करके खोजने का काम करती है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि टीबी फैलने की वजह इस बीमारी को लेकर लोगों का सचेत न होना है। मरीज द्वारा निर्धारित अवधि तक इलाज नहीं कराने और बीच में ही इलाज छोड़ देने के कारण बाद में इसके इलाज में कठिनायी आती है। शुरुआत में लोग इस बीमारी को गंभीरता से नहीं लेते है, जिसकी वजह से यह उनको प्रभावित करता है। टीबी किसी को भी हो सकती है अतः इससे बचाव आवश्यक है। शिशु को जन्म के तुरंत बाद बीसीजी का टीका लगवाना आवश्यक है जो शिशु को क्षय रोग से बचाता है। यह टीका सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर तथा बुधवार और शनिवार को स्वास्थ्य पोषण दिवसों पर नि:शुल्क लगाया जाता है। देश की भावी पीढ़ी को क्षयरोग से बचाया जाना बेहद आवश्यक है।

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ राकेश कुमार सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत जनपद में ‘सघन निक्षय पोषण योजना अभियान’ विगत 17 अगस्त से चलाया जा रहा है। यह अभियान 16 सितंबर तक चलाया जाएगा। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य जनपद में उपचाराधीन क्षय रोगियों को ‘निक्षय पोषण योजना’ से डीबीटी के माध्यम से जोड़ना और उन्हें सरकार की ओर से इलाज की अवधि तक हर माह मिलने वाले 500 रुपये की पोषण सहायता राशि सुनिश्चित की जा रही है।

जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया कि “निक्षय पोषण योजना” के तहत टीबी के मरीजों को पोषाहार का सेवन करने के लिए आर्थिक मदद के रूप में 500 रुपये प्रतिमाह की दर से सीधे उनके खातों में इलाज़ की अवधि तक स्थानांतरित की जाती है। जिले में वर्ष 2018 में 4,948, वर्ष 2019 में 7,205 और वर्ष 2020 में 4,095 टीबी के मरीजों के खातों में अब तक 4.04 करोड़ रुपये स्थानांतरित किये जा चुके हैं।

एक नजर जनपद के क्षय रोगियों पर

- वाराणसी में 2018 में एच-मोनोपॉली अवरोधी का 01, मल्टीपल ड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) के 364 और एक्सटेंसिव ड्रग प्रतिरोधी (एक्सडीआर) के 37 मरीज देखे गए। वर्ष 2019 में एच-मोनोपॉली अवरोधी के 07, एमडीआर के 468 तथा एक्सडीआर के 102 मरीज देखे गए। वहीं वर्ष 2020 में अब तक एच-मोनोपॉली अवरोधी के 36, एमडीआर के 246 तथा एक्सडीआर के 147 मरीज हैं।

- आंकड़ों की मानें तो देश में 80% क्षय रोगी फेफड़े के हैं। इसके अतिरिक्त बोन और शरीर कुछ अन्य महत्वपूर्ण अंग भी टीबी से प्रभावित होते हैं।

- वर्तमान में पूरे विश्व के 27% टीबी के मरीज सिर्फ भारत में है।

- हाल में टीबी के सफल इलाज के कुछ केस - जैसे कि 1- काशी विद्यापीठ निवासी 18 वर्षीय पूजा (काल्पनिक नाम) जिनका इलाज 20 जनवरी को शुरू हुआ था और जुलाई में छह माह की दवा का कोर्स पूरा होने पर फ़ॉलो-अप के बाद इनकी रिपोर्ट निगेटिव आयी और वर्तमान में वह पूर्ण रूप स्वस्थ हो चुकी हैं। 2- करसना बछांव निवासी समीर कुमार (काल्पनिक नाम) उम्र 24 वर्ष, जिनका इलाज 17 जनवरी को शुरू हुआ था और जुलाई में छह माह की दवा का कोर्स पूरा होने पर जांच के बाद रिपोर्ट नेगेटिव आई और अब वह पूरी तरह स्वस्थ हो गए है।


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