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रोजगार देने में फिसड्डी साबित हुआ रेशम विभाग, छले गये किसान और बेरोजगार Jaunpur news

विकास क्षेत्र जलालपुर के नेवादा गांव में आज से करीब 24 साल पूर्व जब रेशम विभाग की स्थापना 1995 में हुई तो लोग बहुत खुश थे कि अब गरीबों के दिन दूर होगें।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 02:49 PM (IST)Updated: Thu, 19 Sep 2019 10:18 PM (IST)
रोजगार देने में फिसड्डी साबित हुआ रेशम विभाग, छले गये किसान और बेरोजगार Jaunpur news

जौनपुर, जेएनएन। विकास क्षेत्र जलालपुर के नेवादा गांव में आज से करीब 24 साल पूर्व जब रेशम विभाग की स्थापना 1995 में हुई तो लोग बहुत खुश थे कि अब गरीबों के दिन दूर होगें। मंशा थी कि रेशम को लघु उद्योग के रूप में अपना कर अपनी खराब आर्थिक दशा को सुधारा जायेगा। मगर किसानों को उपेक्षा के साथ ही धोखा मिला और बेरोजगारों को नौकरी भी नहीं मिली। इसके बाद निराश किसानों ने अपने - अपने खेतों से शहतूत के पेड़ो को कटवा दिया और परम्परागत खेती की तरफ लौट आये।

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जलालपुर-थानागद्दी सड़क मार्ग के किनारे नेवादा गांव की तालाब के नाम पर दर्ज करीब 12 बीघा जमीन है। इस जमीन पर पहले वन विभाग ने पौधारोपण किया था। इसका अनुबंध गांव समाज से खत्म होने के बाद रेशम विभाग ने तत्कालीन ग्राम प्रधान विनोद सिंह से इस जमीन को रेशम उद्योग स्थापित करने के लिया था। रेशम विभाग के अधिकारियों ने किसानों और बेरोजगार युवकों को आश्वासन दिया कि गांव के बेरोजगारों को नौकरी और किसानों को लघु उद्योग स्थापित कर पैसा कमाने का अवसर मिलेगा।

बंगलौर से मंगाई गयी शहतूत की महंगी कटिंग

जमीन मिलने के बाद तत्कालीन जिला रेशम अधिकारी आरपी सिंह और यहां के सेन्टर प्रभारी बीडी सिंह की देखरेख में बंगलौर से शहतूत, अर्जुन आदि की महंगी कटिंगों को ट्रकों से यहां मंगवाया गया था। इसकाे सेन्टर पर रोपा भी गया किन्तु इस सेन्टर का अपेक्षित विकास नहीं हुआ। समय से बजट के अभाव में सिंचाई, निराई और गुड़ाई तक नहीं हो पाती है। सेंटर रेशम बनाते किसी नहीं देखा न तो कभी इसकी सरकारी तौर पर प्रदर्शित कर अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने का कार्य किया गया। विभागीय अधिकारियों की माने तो यहां पहले रेशम बनाया गया था किन्तु सही मार्केट न होने से लागत का पैसा भी नहीं मिल पाता है। सेंटर प्रभारी के रुप में यहां उदयभान सिंह की नियुक्ति हुई है। उनको अन्य सेन्टरों की जिम्मेदारी भी सौंपी गयी है। जिसकी वजह से इस सेंटर पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाते हैं।

पैरावर्करों की नियुक्ति हुई नहीं मिला वेतन

रेशम कीट पालन के प्रशिक्षण के बाद गांव के बेरोजगार करीब एक दर्जन युवकों की पैरावर्करों के रुप में नियुक्ति की गयी थी। इनका काम था किसानों को प्रोत्साहित कर उनके खेतों में शहतूत के पौधों का पौधरोपण करना फिर रेशम कीट का पालन कर रेशम तैयार करना। किन्तु सेंटर की सरकारी तौर पर उपेक्षा होने और बजट के अभाव मे पैरावर्करों को सेवा मुक्त कर दिया गया। विभाग के लिए करीब एक साल तक काम करने का वेतन उन्हें आज तक नहीं मिला।

गांव के केशव प्रसाद सिंह, काशी सिंह, प्रदीप सिंह, रमेश, जयशंकर समेत दर्जनों किसानों ने अपनी परम्परागत खेती को छोड़कर यह शहतूत का पौधरोपण किया था। जब किसानों ने देखा कि खुद राजकीय सेंटर ही बीमार हो चला है। बजट के अभाव में सेंटर की देखरेख तक नहीं हो पा रही है और रेशम उत्पादन दूर की कौड़ी है। फिर किसानों ने अपने -अपने खेतों से तीन साल बाद शहतूत के पेड़ों को कटवाकर बाहर निकलवा दिया गया और सभी किसान परम्परागत खेती की तरफ सभी वापस लौट आये।

बसपा शासन काल मे तत्कालीन क्षेत्रीय विधायक जगदीश नारायण राय रेशम लघुउद्योग मंत्री बने थे तब लोगों लगा कि जनपद में अब रेशम विभाग के दिन फिर आयेगें। समय बीतने के साथ ही सुधार नहीं हुआ और हालत जस की तस बनी रही। इस सेंटर का हाल जानने के लिए सेंटर प्रभारी कई बार मिलने और फोन से सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास हुआ। किन्तु उनसे सम्पर्क नही हो पाया। सेंटर कार्यवाहक देख-रेख के लिए मौजूद युवक ने बताया कि सेंटर रेशमकीट मंगवाये गये जिसमें वाराणसी भेज दिया गया और कुछ कीट यहां रखे गये है।


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