Srikashi Vishwanath Corridor के मंदिरों में लगेगा शिलापट्ट, दस्तावेज तैयार करने के बाद अंकित किया जाएगा इतिहास
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण में सामने आए प्राचीन मंदिरों का इतिहास लोग जान सकेंगे। इसके लिए मंदिर के समक्ष शिलापट्ट लगाया जाएगा।
वाराणसी, जेएनएन। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण में सामने आए प्राचीन मंदिरों का इतिहास लोग जान सकेंगे। इसके लिए मंदिर के समक्ष शिलापट्ट लगाया जाएगा। इसे ध्यान में रखते हुए ही प्राचीन मंदिरों का दस्तावेज तैयार कराया जा रहा है जिसके लिए तीन सदस्यीय भारतीय पुरातत्व की टीम सर्वे कर रही है।
श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर में अब तक 60 से अधिक प्राचीन मंदिर सामने आए हैं। सर्वे टीम ने रविवार को मंदिरों की फोटोग्राफी कराई। इसके अलावा जरूरी जानकारी व नक्काशी का ब्योरा जुटाया। ब्रश से साफ कर उसके आकार व प्रकार को परखा और जरूरी बिंदु नोट किए। दस्तावेज तैयार करने के लिए कमिश्नर ने भारतीय पुरातत्व के महानिदेशक को पत्र लिखा था जिसके बाद टीम शनिवार को बनारस पहुंची। 15 दिन तक सर्वे कार्य होगा। इसके बाद टीम भोपाल लौट जाएगी जहां पर दस्तावेज तैयार होगा। मंदिरों का इतिहास खंगालने के लिए पुरातत्व की टीम कार्बन डेटिंग भी कराने से परहेज नहीं करेगी। बता दें कि हिंदू धर्म में काशी का विशेष महत्व के मद्देनजर राजा-महाराजाओं ने यहां मंदिर व घाट बनवाए थे। सभी ने अपनी मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए अपनी शैली में ही निर्माण कराया। यही वजह है कि काशी को लघु भारत भी कहा जाता है।
मोढ़ेरा व वडनगर में मिले तोरण जैसा ही है कॉरिडोर से मिला अवशेष
काशी विश्वनाथ मंदिर में मलबे की सफाई के दौरान जो मंदिर का अवशेष मिला था, वह दरअसल मंदिर के प्रवेश द्वार पर बने एक तोरण द्वार का टूटा हुआ हिस्सा हो सकता है। यह कहना है काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कला-इतिहास विभाग के प्रो. अतुल त्रिपाठी का। उन्होंने बताया कि अध्ययन करने पर पता चल रहा है कि गुजरात के सोलंकी व मध्यप्रदेश में चंदेलों द्वारा निर्मित नागर शैली के मंदिरों में ऐसी कलाकृतियां देखने को मिलती है। मंदिरों के प्रवेश द्वार पर बने तोरण में यह डिजाइन स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। इस प्रकार के तोरण दसवीं सदी से शुरू 18वीं - 19वीें सदी तक मिलते हैं। मोढ़ेरा के सूर्य मंदिर व वडनगर से प्राप्त सूर्य तोरण में पराकाष्ठा देखने को मिलती है। मंदिर के जंघा भाग की मुख्य रथिकाओं के ऊपर भी इस तरह की कलाकृतियों का प्रयोग मिलता है। वहीं गंगा पार रामनगर में सुमेरू देवी के मंदिर द्वार पर भी लगभग ऐसी ही कलाकृति उकेरी गई है। विश्वनाथ जी से प्राप्त अवशेष किसी मंदिर के द्वार पर बने तोरण का भाग हो सकता है, जो कि संभवत: दो-तीन सौ साल पुराना। हालांकि पुरातत्व विभाग की ओर पूर्ण अध्ययन के बाद ही इसका सटीक आकलन किया जा सकता है।