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शरद पूर्णिमा की रात पितरों की राह रोशन करने को टिमटिमाएंगे आकाशदीप, कार्तिक पर्यंत स्नान-व्रत-नियम का विधान

सनातन धर्म में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा की मान्यता शरद पूर्णिमा के रूप में है। पूर्णिमा तिथि शनिवार को रात 12.05 बजे लग गई जो 13 अक्टूबर की रात 1.58 बजे तक रहेगी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 09:23 AM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2019 10:32 AM (IST)
शरद पूर्णिमा की रात पितरों की राह रोशन करने को टिमटिमाएंगे आकाशदीप, कार्तिक पर्यंत स्नान-व्रत-नियम का विधान

वाराणसी, जेएनएन। सनातन धर्म में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा की मान्यता शरद पूर्णिमा के रूप में है। पूर्णिमा तिथि शनिवार को रात 12.05 बजे लग गई जो 13 अक्टूबर की रात 1.58 बजे तक रहेगी। इस लिहाज से शरद पूर्णिमा और कोजागरी 13 अक्टूबर को मनाई जाएगी। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि शास्त्र सम्मत है कि शरद पूर्णिमा के लिए प्रदोष व निशीथ काल में होने वाली पूर्णिमा ली जाती है। कोजागरी व्रत की पूर्णिमा भी निशीथ व्यापिनी होनी चाहिए। अत: इस बार दोनों पूर्णिमा का मान एक साथ है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा षोडश कलाओं का होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी तिथि में महारास रचाया था। मान्यता है इस रात आकाश से अमृत वर्षा होती है। 

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शरद पूजन : शरद पूर्णिमा पर सुबह आराध्य देव का श्वेत वस्त्राभूषण से सुशोभित कर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। रात में गाय के दूध की खीर, घी, मिश्री या मिष्ठान अद्र्धरात्रि में अर्पित करना चाहिए। पूर्ण चंद्रमा के मध्याकाश में स्थित होने पर विधिवत पूजन कर खीर का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। दूसरे दिन इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना चाहिए।  

कोजागरी पूजन : मान्यता है कि कोजागरी की रात ऐरावत पर आरूढ़ भगवान इंद्र व महालक्ष्मी का पूजन कर उपवास करना चाहिए। रात में घी के दीप और गंध-पुष्प से पूजन करना चाहिए। यथा शक्ति दीप प्रज्वलित कर मंदिरों, बगीचों, तुलसी- पीपल के वृक्ष, आवास की छत और आसपास, गली-चौराहों पर रखना चाहिए। प्रात: होने पर स्नानादि कर इंद्र- महालक्ष्मी का पूजन कर ब्राह्मणों को घी- शक्कर मिली खीर का भोजन करा कर वस्त्र-दक्षिणादि देना चाहिए। कोजागरी व्रत से अनंत फल की प्राप्ति होती है। इस तिथि में रात के समय इंद्र व लक्ष्मी घर जाकर देखते हैैं कि को जागृयेति अर्थात कौन जाग रहा है। पूजा व दीपों का प्रकाश जहां कही दिखता है, उस घर में आजीवन माता लक्ष्मी का आशीष बना रहता है। 

स्नानारंभ : आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पर्यंत चलने वाले व्रत-स्नान, यम-नियम, संयम का आरंभ होगा। इसी दिन से संपूर्ण कार्तिक मास का दीपदान आरंभ हो जाएगा जो 12 नवंबर तक चलेगा। पितरों की स्वर्ग राह आलोकित करने को आकाशदीप भी जलाए जाएंगे।    

आकाशदीप प्रज्जवलन कार्यक्रम कल से

गंगा सेवा निधि की ओर से राष्ट्र के अमर वीर योद्धाओं को समर्पित पूरे कार्तिक मास में आकाशदीप प्रज्जवलन कार्यक्रम आयोजित होगा। इसका उद्घाटन 14 अक्टूबर को शाम सवा पांच बजे दशाश्वमेध घाट पर होगा। 


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