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आत्मनिर्भर भारत : एग्रीकल्चर इंस्ट्रक्चर फंड से उद्यमी होंगे लाभान्वित, वाराणसी में बनेगा काजू प्रसंस्करण केंद्र

आत्मनिर्भर भारत की दिशा में लगातार काम किए जा रहे हैं। कोरोना काल में एग्रीकल्चर इंस्ट्रक्चर फंड (एआइएफ) इस दिशा में काफी सहयोग करने लगा है। यही कारण है एक उद्यमी द्वारा वाराणसी के बड़ागांव क्षेत्र में काजू प्रसंस्करण केंद्र की स्थापना की जा रही है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 30 Jul 2021 06:30 AM (IST)Updated: Fri, 30 Jul 2021 05:09 PM (IST)
आत्मनिर्भर भारत : कोरोना काल में एग्रीकल्चर इंस्ट्रक्चर फंड (एआइएफ) इस दिशा में काफी सहयोग करने लगा है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। आत्मनिर्भर भारत की दिशा में लगातार काम किए जा रहे हैं। कोरोना काल में एग्रीकल्चर इंस्ट्रक्चर फंड (एआइएफ) इस दिशा में काफी सहयोग करने लगा है। यही कारण है एक उद्यमी द्वारा वाराणसी के बड़ागांव क्षेत्र में काजू प्रसंस्करण केंद्र की स्थापना की जा रही है। एआइएफ के अंतर्गत कई परियोजनाएं हैं, जिसका लाभ उद्यमी उठा सकते हैं। इसमें वेयरहाउस, साइलोस, पैक हाउस, सार्टिंग और ग्रेङ्क्षडग यूनिट््स, कोल्ड चेन, लाजिस्टिक्स फैसिलिटीज, प्राथमिक कृषि प्रसंस्करण केंद्र, रायपेनिंग चैंबर्स जैसे अन्य उत्पादों सहित चेन सर्विसेज, आर्गेनिक इनपुट उत्पादन आदि शामिल हैं।

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ये हैं प्रक्रिया : योजना के तहत ऋण प्राप्त करने व संबंधित लाभ के लिए आनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण करना होगा। इसके बाद लागिन कर ऋण के लिए आवेदन करें। संबंधित दस्तावेजों के साथ डीपीआर को आवेदन पत्र के साथ पोर्टल पर अपलोड करना होगा। इसके बाद परियोजना की व्यावहारिकता का मूल्यांकन किया जाता है और उसे आवेदक द्वारा चुने गए ऋण संस्थान को भेजा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को दोबारा मूल्यांकन करके ऋण मंजूर किया जाता है। ऋण की राशि सीधे लाभार्थी के खाते में भेजी जाती है।

लाभार्थी की पात्रता : एग्रीकल्चर इंस्ट्रक्चर फंड के जरिए परियोजनाओं के लिए ऋण प्राप्त करने की पात्रता भी तय की गई है। इसमें सभी किसान, कृषि उद्यमी, किसान उत्पादक संघ, प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां व स्वयं सहायता समूह शामिल हैं।

स्कीम से उत्साहित हैं उद्यमी अनिल : बड़ागांव के पास असवारी निवासी उद्यमी अनिल कुमार सिंह बताते हैं कि एआइएफ के जरिए काजू प्रसंस्करण केंद्र स्थापित करने की योजना है। इसके लिए सबसे पहले एक प्रोजेक्ट तैयार किया, जिसे नाबार्ड में जमा किया। प्रक्रिया को पूरी कराने में नाबार्ड ने भरपूर सहयोग किया है। प्रक्रिया की जानकारी देते हुए बताते हैं कि मात्र दो महीने में काम तेज गति से हुआ है। पैसा मिलते ही काम शुरू हो जाएगा। कच्चा माल के बारे में बताया कि रत्नागिरी में काजू फल का उत्पादन होता है, लेकिन अफ्रीकी देशों से आरसीएन (काजू का फल) मंगाना काफी किफायती होगा। दोनों जगहों में लगभग 25 रुपये प्रति किलो का अंतर होगा। प्रतिदिन पांच सौ किलो काजू प्रसंस्करण के काम में 35 महिलाओं को रोजगार मिलेगा। प्रसंस्कृत काजू की खपत स्थानीय बाजार में हो जाएगी।

काजू का हर हिस्सा बिकेगा : चार चरणों से गुजरने के बाद काजू अपने रूप में आएगा। जानकारी के मुताबिक काजू का फल पेंट उद्योग के लिए भेजा जाएगा, जो सात या आठ रुपये किलो में बिकेगा। इसकी आपूर्ति पटना व नोएडा में की जाएगी। वहीं काजूू का हस्क (छिलका) कत्था उद्योग के लिए उपयोगी है। इसकी मांग कानपुर से की जाती है। काजू का बीज बाजार में भेजा जाएगा जो मेवा के रूप में काम आएगा।

उद्यमियों को लाभ दिया जा रहा है

आत्मनिर्भर भारत के तहत इस स्कीम के जरिए उद्यमियों को लाभ दिया जा रहा है। पोर्टल पर सभी सूचनाएं हैं। उस पर आवेदन कर रोजगारपरक केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं।

- एके सिंह, जिला प्रबंधक, नाबार्ड।


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