Move to Jagran APP

बभनियांव के उत्खनन में झलका गुप्तकाल, बीएचयू के पुराविदों को प्राप्‍त वस्‍तुआें से मिले संकेत

शहर से दक्षिण 30 किलोमीटर दूर बभनियांव गांव में खोदाई के पहले दिन मिले सामान के आधार पर उत्खनन दल ने कहा कि ये गुप्तकालीन हो सकते हैैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 27 Feb 2020 03:24 PM (IST)Updated: Thu, 27 Feb 2020 09:16 PM (IST)
बभनियांव के उत्खनन में झलका गुप्तकाल, बीएचयू के पुराविदों को प्राप्‍त वस्‍तुआें से मिले संकेत
बभनियांव के उत्खनन में झलका गुप्तकाल, बीएचयू के पुराविदों को प्राप्‍त वस्‍तुआें से मिले संकेत

वाराणसी, जेएनएन। शहर से दक्षिण 30 किलोमीटर दूर बभनियांव गांव में खोदाई के पहले दिन बुधवार को बीएचयू के उत्खनन दल को मात्र 45 सेंटीमीटर की गहराई पर ईंट व मिट्टी की विशाल भट्ठी, इससे चिपके मिट्टी के कुछ बर्तन, पक्की मिट्टी का लोढ़ा, घड़ा व लौह धातु मल मिले हैैं। कला शिल्प के आधार पर इनके चौथी-पांचवीं शताब्दी का होने का अनुमान लगाया जा रहा है। उत्खनन दल के निदेशक प्रो. अशोक कुमार सिंह के अनुसार खोदाई में मिले सामान गुप्तकालीन हो सकते हैैं। आगे उत्खनन में इसे प्रमाणित किया जा सकेगा।

loksabha election banner

बीएचयू के प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग की टीम ने सुबह 9.30 बजे 4 गुणा 4 मीटर के दायरे में खोदाई शुरू की। इसके लिए समीप स्थित जमीन में दो मीटर नीचे स्थित प्राचीन शिवलिंग को आधार बनाया। हर आवाज पर कान लगाए ब्रश-चाकू से खोदाई को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया। पुराविदों का मानना है कि गहराई में स्थित शिवलिंग के समानांतर खोदाई में तत्कालीन मंदिर समेत कई पुरातात्विक अवशेष मिल सकते हैैं जो इस पुरास्थल की विशिष्टता को सिद्ध कर सकते हैैं। इसके संकेत गांव में मिली मूर्तियों से मिल चुका है। इनमें सनातन धर्म के शैव-वैष्णव, शाक्त संप्रदाय से जुड़ी मूर्तियां शामिल हैैं। गांव में जगह-जगह बिखरी पड़ी मूर्तियों से आकलन किया जा रहा है कि यहां पूर्व में पंचदेव की उपासना की जाती रही होगी।

शिल्पकारी के प्रमाण दे रहे काशी-विंध्य रूट का संकेत

खोदाई के बाद बीएचयू के पुराविदों का आकलन धीरे-धीरे पुष्टि की ओर बढ़ता प्रतीत हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार खोदाई में यदि राख के अवशेष मिलते हैं तो यहां निश्चित रूप से प्राचीन काल में घड़ा व अन्य धातुओं को पकाने का काम होता था। हालांकि आयरन स्लैग (धातु मल) से संकेत मिल रहा है कि यहां औजार व बर्तन बनाने के लिए लोहा गलाने का भी काम होता रहा होगा। पूर्ण व अधूरे शिवलिंग के साथ ही स्तंभ से यह भी आकलन किया जा रहा है कि यहां शिल्पियों द्वारा चुनार के पत्थरों से शिवलिंग तराश कर पानी के रास्ते काशी क्षेत्र में भेजे जाते रहे होंगे। गांव के बीचोंबीच ब्राह्मी लिपि में खुदे अभिलेख की छाप ली गई है जिसे पढ़े जाने के बाद कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आएंगे जो काशी-विंध्य रूट के भी करीब ले जाएंगे। उत्खनन दल में शामिल डा. रविशंकर के अनुसार खोदाई में मिला आयरन स्लैग पीलिया रोग ठीक करने में काफी कारगर माना जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.