भीषण धूप, तपती धरती, नंगे पांव और मुंबई से बनारस की यात्रा कभी नहीं भूलूंगा, बोले अभिनेता सईद
बनारस के पहड़िया स्थित अशोक विहार निवासी एक्टर सईद ने मुंबई से घर पहुंचने के बाद काशीवासियों से अपने दर्द को साझा किया।
वाराणसी, [वंदना सिंह]। भीषण धूप, तपती धरती पर नंगे पांव सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए कदम थकने का नाम नहीं ले रहे थे। सिर से पसीना तेजी से बह रहा था। मगर घर तक पहुंचने की आस हौसले बुलंद कर रही थी। यह नजारा कभी हौसला देता तो कभी कमजोर भी कर देता। कोरोना के कारण ऐसा दृश्य देखना पड़ा जो कभी किसी ने सोचा भी नहीं था। यह शब्द थे मुंबई में एक्टर आसिफ सईद के।
आसिफ इन दिनों 'एक महानायक भीमराव आंबेडकर' सीरियल में नजर आ रहे हैं जो डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के चाचा का किरदार निभा रहे हैं। आसिफ बनारस के पहड़िया स्थित अशोक विहार के रहने वाले हैं और पिछले 10 सालों से मुंबई में एक्टिंग कर रहे हैं। आसिफ अभी हाल ही में बाइक से मुंबई से बनारस पहुंचे हैं। आसिफ ने गुरुवार को बताया कि मुंबई के मलाड वेस्ट में एक बिल्डिंग के छठे फ्लोर पर मैं रहता हूं। शूटिंग बंद हो चुकी थी और अकेले एक कमरे में बैठे-बैठे मैं पागल होता जा रहा था। बस टीवी पर कोरोना की खबरें देखकर और परेशान था। ऐसे में लग रहा था न जाने क्या होगा। दोस्त को बुलाना पड़ा जो पुणे से आकर मुझे डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने बताया कि मेरे अंदर डर बैठ गया है। घर आने के लिए वहां पर आने अधिकारियों से फॉर्म आदि को भी भर कर दिया। मगर कार से आने की स्वीकृति मिल नहीं रही थी।
10 मई को मुंबई से निकला था बनारस के लिए
ऐसे में हिम्मत बांधी और बाइक से ही मुंबई से बनारस आना तय किया। साथ में लिया पारले जी बिस्किट, कुछ पैक्ड फ्रूट जूस और पानी की ढेर सारी बोतलें। 10 मई को 4:00 बजे भोर में मुंबई से मैं निकला। आसिफ बताते हैं रास्ते में पैदल चलते हुए काफी लोग मुझे नजर आए। मुंबई से नासिक पहुंचा एक परिवार जिसमें एक महिला ने 2 माह के बच्चे को गोद में लिए सामान रखे पैदल चल रही थी। वह बुरी तरह से थक चुकी थी, उसके पैर से खून निकले रहस था लेकिन उसके बावजूद भी अपने बच्चे के लिए दूध की तलाश कर रही थी। साथ में उसका पति भी था जो सामान को उठाया।
लोग लगातार चलते जा रहे थे भूखे-प्यासे
आसिफ ने बताया कि मुझसे रहा नहीं गया और मैंने भी दूध की दुकान खोजने का प्रयास किया मगर नहीं मिला। उन लोगों ने कहा मुंबई में कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे तो भूखे मर जाते, लेकिन पैदल ही घर तो पहुंच जाएंगे। कुछ और किलोमीटर पार करते हुए जब आगे पहुंचा तो देखा कुछ बुजुर्ग डंडा लिए पैदल चले जा रहे थे। एक पैर का चप्पल टूट चुका था और दूसरे पैर में उन्होंने एक टूटा हुआ चप्पल पहना था जो कभी भी साथ छोड़ सकता था। वो लगातार चलते जा रहे थे। कई बार रुक कर अपने पैर के छालों को सहलाते तो कभी उसमें से निकल रहे खून को पोछते। कहीं-कहीं खाने-पीने की स्टाल थी।
हरहुआ में खुद की करवाई जांच
आसिफ ने बताया कि इस यात्रा में हर मौसम एक साथ देख लिया । बाइक चलाते चलाते मेरी आंखें लाल हो चुकी थीं। जब मैं इंदौर पहुंचा तो तेज आंधी-पानी का सामना हुआ। गाड़ी सहित मैं जा गिरा था। बारिश तूफान और रात को ठंड भी देख लिया। रास्ते में जंगल पड़ा । मैं अपनी बाइक पर ही आराम कर लेता था। 12 मई को बनारस आया तो घर वालों को सूचित कर दिया। फिर सीधे टेस्ट कराने राजातालाब पहुंचा। वहा लंबी लाइन देखकर घबरा गया। फिर हरहुआ में जाकर जांच करवाया। सब रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद मैं अपने घर आकर क्वॉरेंटाइन हो गया। 10 मई को मुंबई से निकला था।
सड़क पर ही गुजरी रात
आसिफ ने बताया कि 12 मई को बनारस पहुंच चुका था लेकिन 12 से 14 मई तक जांच के लिए सड़क पर ही रात गुजारता। घर वाले मेरे लिए बहुत परेशान थे। 14 मई को अपने घर पहुंचा और फिर उसके बाद जमकर 2 दिन खूब सोया। मगर उन दृश्यों को सोचता हो तो सिहर जाता हूं। क्या वह बच्चा बचा होगा, उसे दूध मिला होगा। क्या वह बुजुर्ग जीवित होंगे।