Sawan 2021 : वाराणसी में अतिथि स्वरूप पूजित हैं पाकिस्तान महादेव, लाहौर से छिपाकर प्राचीन शीतला घाट पर लाए गए शिवलिंग
शीतला घाट पर स्थापित है जो भक्तों द्वारा श्रद्धेय अतिथि के रूप में नाना-विधि सेवाएं पाते हैं। मूलरूप से लाहौर (अब पाकिस्तान में) निवासी होने के चलते काशी नगरी में ये अतिथि देव पकिस्तान महादेव के नाम से जाने जाते हैं।
वाराणसी, जेएनएन। Sawan 2021 कोटि-कोटि शिवलिंगों की दिव्य आभा से प्रकाशित शिवपुरी काशी में भांति-भांति के शिवलिंग अपनी अलग-अलग महत्ता के साथ सेवित हैं। इनमें से कुछ मंदिर में कुछ मंदर में कोई गंगा या सरोवरों के तट पर तो कोई कूप के अंदर में विराजता है। जो जहां है वहीं से अपने भक्तों के कारज साजता है। ज्वर पीछा नहीं छोड़ रहा हो तो अपनी श्रद्धा के अनुसार ज्वर हरेश्वर महादेव की डेहरी पर हाजिरी दर्ज कराइए। कर्ज का बोझ कमर तोड़ रहा हो तो परम प्रभु ऋण हरेश्वर की शरण में चले आइए।
असाध्य रोगों से मुक्ति की कामना हो या अकाल मृत्यु का भय सताता हो तो मध्यमेश्वर तीर्थ में महामृत्युंजयेश्वर के नाम से आसन जमाए बैठे नीलकंठ के कपाट खटखटाइये, मुकदमों के दलदल में धंसे जा रहे हों तो आर्त स्वर में आवाज लगाइए कहीं सुनवाई न हो रही हो तो हर फरियाद की सुनवाई के लिए स्वयंभू विश्वेश्वर का दरबार सबके लिए खुला हुआ है। छत्रपों के रूप में ओंकारेश्वर व केदारेश्वर की महिमा के साथ अमृतमय पुण्यफल घुला हुआ है। शिवतत्व की आभा से दपदप इन सभी शिवलिंगों के बीच एक ऐसा दिव्य शिवलिंग भी पंचगंगा तीर्थ क्षेत्र के प्राचीन शीतला घाट पर स्थापित है जो भक्तों द्वारा श्रद्धेय अतिथि के रूप में नाना-विधि सेवाएं पाते हैं। मूलरूप से लाहौर (अब पाकिस्तान में) निवासी होने के चलते काशी नगरी में ये अतिथि देव पकिस्तनिया महादेव के नाम से जाने जाते हैं। नगर निगम के अभिलेखों में भी इसी नाम से इनकी पहचान अंकित है। नई पीढ़ी भले ही इनके इतिहास से अनभिज्ञ हो पुरनियों की स्मृति में लाहौर से यहां आकर बसे अतिथि शिवलिंग की यात्रा कथा आज भी श्रद्धा की स्याही से टंकित है।
दशाश्वमेध घाट स्थित बड़ी शीतला मंदिर के महंत शिव प्रसाद पांडेय के अनुसार बात सन 1947 के दौर की है। देश विभाजन की आंच से झुलस रहा था। सरहद पार स्वघोषित पाकिस्तान में हिंसा व विध्वंस का तांडव हो रहा था। उसी दौरान लाहौर के दो हिंदू हीरा व्यापारियों जमुनादास व निहाल चंद को भी लाहौर से पलायन करना पड़ा। आते समय वे जो माल अस्बाब साथ ला सकते थे, ले आए संग में चोरी छुपे लाए अपने कुटुंब के इष्ट स्वयं लाहौरी महादेव जिनका मंदिर वहां ध्वस्त किया जा चुका था। महंत जी बताते हैं- किसी तरह जान बचाकर हिंदुस्तान पहुंचे दोनों भाई उस समय स्वतः निराश्रित थे। अतएव शिवलिंग की पुनर्प्रतिष्ठा की कोई गुंजाइश नहीं बन पा रही थी। दोनों ने एक मत निर्णय लिया कि शिवलिंग को शिव नगरी काशी की गंगा में विसर्जित कर दिया जाए। वे लोग जब प्राचीन शीतला घाट पर विसर्जन का उद्यम कर रहे थे। उसी समय घाट पर मौजूद काफी देर से दोनों परदेसियों की गतिविधि भांप रहे बुंदिराज परिवार के सदस्य राजा गोपालचन्द ने दोनों भाईयों को अपने पास बुलाया। उनकी व्यथा-कथा सुनी और उन्हें विसर्जन करने से रोका। बाद में राजा साहब ने दोनों भाईयों के संक्षिप्त काशी प्रवास के दौरान ही शीतला घाट की सीढ़ियों पर ही एक छोटा सा शिवालय बनवाकर इस शिवलिंग को अरघे में प्रतिष्ठित कर दिया। इसके साथ ही काशी के हजारों शिवालयों की सूची में एक और शिवालय जुड़ गया। भगवान विश्वनाथ के औचक अतिथि के रूप में प्रतिष्ठित हो गए लाहौरी बाबा। देवस्थान प्रसिद्ध हुआ पकिस्तनिया महादेव के नाम। अब भी उनकी अभ्यर्थना एक श्रधेय अतिथि के ठाठ से ही होती है।
श्वेत-श्याम आभा से मंडित अनूठा शिवलिंग
वर्तमान में मंदिर के गर्भगृह के चारों कोनों पर स्थापित चार देव विग्रहों की सेवा से पूजित हैं अपने लाहौरी बाबा। श्वेत-श्याम आभा वाले काशी के इस अनूठे शिवलिंग को हरि (विष्णु) व हर (शिव का) सायुज्य स्वरूप माना जाता है। इसी भावना से कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी के दिन शिवलिंग हरिहर स्वरूप में भक्तों की विशेष पूजा पाता है।