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सहेज लो हर बूंद : धरती का सीना चाक होने से बचाएगी वन ड्राप-मोर क्राप, 600 हेक्टेयर खेत स्प्रिंकलर व ड्राप सिंचाई विधि

स्प्रिंकलर एक प्रकार का सिंचाई यंत्र है। इससे खेतों में सिंचाई करते समय पानी को वर्षा की बूंदों के रूप में फुहारों की तरह पौधों पर डालते हैं। इसे बौछारी पद्धति भी कहा जाता है। सिंचाई का आधुनिक तरीका है इसमें छिद्रयुक्त नलियों में पानी को प्रवाहित कराया जाता है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 08:30 AM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 08:30 AM (IST)
खेतों में सिंचाई करते समय पानी को वर्षा की बूंदों के रूप में फुहारों की तरह पौधों पर डालते हैं।

वाराणसी, जेएनएन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान सहेज लो हर बूंद को मूर्त रूप देने जा रहा है जनपद का उद्यान विभाग। वर्षा की एक-एक बूंद को बचाने के लिए विभाग ने कमर कस ली है। इसके लिए अपने तईं हर जतन करने को तैयार है। इसमें सहायक बनेगी प्रधानमंत्री सिंचाई योजना। इसके तहत विभाग वन ड्राप-मोर क्राप योजना को विस्तार देने जा रहा है। इस वित्तीय सत्र में लगभग में 600 हेक्टेयर क्षेत्रफल में खेतों को स्प्रिंकलर व ड्राप सिंचाई विधि से आच्छादित किए जाने का लक्ष्य रखा गया है।

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जिला उद्यान अधिकारी बताते हैं कि बीते वित्तीय सत्र 2020-21 में विभाग ने प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत 1.25 करोड़ रुपयों का अनुदान दिया गया था। 550 किसानों ने इस योजना का लाभ उठाया था। इससे लगभग 550 हेक्टेयर क्षेत्रफल खेत आच्छादित हुए थे। चालू वित्तीय वर्ष में इस योजना के आच्छादन का लक्ष्य बढ़ाकर लगभग 600 हेक्टेयर किया गया है। इसमें किसानों के खाते में लगभग 1.50 करोड़ रुपयों का अनुदान जाएगा। सरकार इन सिंचाई यंत्रों के लिए किसानों को 90 फीसद अनुदान दे रही है। इसलिए किसानों को इसका लाभ उठाना चाहिए।

क्या है स्प्रिंकलर

स्प्रिंकलर एक प्रकार का सिंचाई यंत्र है। इससे खेतों में सिंचाई करते समय पानी को वर्षा की बूंदों के रूप में फुहारों की तरह पौधों पर डालते हैं। इसे बौछारी पद्धति भी कहा जाता है। यह सिंचाई का आधुनिक तरीका है, इसमें छिद्रयुक्त नलियों में पानी को प्रवाहित कराया जाता है, ये नालियां वर्षा की फुहारों की तरह पानी को पौधे पर पहुंचाती हैं और सिंचाई हो जाती है।

ड्रिप क्या है

बूंद-बूंद सिंचाई यानि ड्रिप विधि। इस विधि में छिद्रयुक्त पाइपें खेत में बिछा दी जाती हैं और इन छेदों से बूंद-बूंद पानी फसल की जड़ों तक पहुंचता है। इससे खेत में जलजमाव नहीं होता और पानी सीधे जड़ तक पहुंचकर पौधों की जरूरत को पूरा कर देता है। अधिक ढाल वाली या उबड़-खाबड़ जमीन के खेत के लिए ये दोनों विधियां सर्वोत्तम हैं।

क्या है फायदा

- खेत में अनावश्यक जल जमाव नहीं होता, इससे पानी की बर्बादी नहीं होती। लगभग 40 फीसद पानी की बचत कर सकते हैं।

- मिट्टी की नमी बने रहने से फसल की वृद्धि और उपज बेहतर होती है। पानी की बूंदों के साथ खाद, कीटनाशक व अन्य दवाएं पौधों तक आसानी से पहुंच जाती हैं और अनावश्यक बर्बादी नहीं होती।

- स्प्रिंकलर पद्धति से वातावरण में घुली नाइट्रोजन पानी के साथ पौधों को प्राप्त हो जाती है, इससे लगभग 25 फीसद खाद की खपत कम हो जाती है।

- जलजमाव न होने से खर-पतवार नहीं उगते और निराई का खर्च लगभग 25 फीसद बच जाता है।

- इस विधि से अनावश्यक पानी न लगने से पौधे सड़ते नहीं और उपज में 15 से 20 फीसद की वृद्धि हो जाती है।

क्या है कीमत

 एक स्प्रिंकल सेट की कीमत बाजार में 28 से 32 हजार रुपये है। विभाग के माध्यम से सरकार इस पर लघु सीमांत किसानों को 90 फीसद अनुदान देती है। मानक लागत 25,200 के सापेक्ष सरकार का अनुदान 22667 रुपये किसानों के खाते में आ जाता है। कुल मिलाकर किसान के आठ से 10 हजार रुपये खर्च होते हैं। इसी तरह ड्रिप प्रणाली में यंत्र की कीमत लगभग 1.30 लाख रुपये बाजार में है, सरकार इस पर 1.12 लाख से 1.15 लाख रुपये तक अनुदान देती है और किसान को महज 15 से 17 हजार रुपये खर्च करने होते हैं। एक बार लगा देने पर इसके लाभ वर्षों तक किसान उठाता है और पानी तथा लागत की बचत होती है।

चुनाव बाद शुरू होगा पंजीकरण और जागरूकता अभियान

अभी तो विभाग के लोग पंचायत चुनाव में व्यस्त हैं। चुनाव से फुर्सत मिलते ही इसके लिए अभियान चलाया जाएगा और किसानों को जागरूक किया जाएगा ताकि अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें और जल संरक्षण के प्रधानमंत्री के स्वप्न को पूरा करने में सहभागी भी बनें।

 -संदीप कुमार गुप्ता, जिला उद्यान अधिकारी, वाराणसी।


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