वाराणसी में संस्कृति संसद : भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा काशी से फूंके बिगुल, तृतीय सत्र में बोले युवा सांसद
संस्कृति संवाद का तृतीय सत्र युवाओं को समर्पित रहा जहां नई पीढ़ी को अपनी गौरवशाली संस्कृति-परंपरा व इतिहास के ज्ञान से पल्लवति - पुष्पित करने पर जोर दिया गया। सांसद जमयांग सेरिंग नामग्याल ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में भारत मां की अस्मिता को सुरक्षित रखने की भूमिका को रेखांकित किया।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। संस्कृति संवाद का तृतीय सत्र युवाओं को समर्पित रहा जहां नई पीढ़ी को अपनी गौरवशाली संस्कृति-परंपरा व इतिहास के ज्ञान से पल्लवति - पुष्पित करने पर जोर दिया गया। नवसृजित केंद्र शासित राज्य लद्दाख के युवा सांसद जमयांग सेरिंग नामग्याल ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में भारत मां की अस्मिता को सुरक्षित रखने में भारतीय सेना के साथ लद्दाखवासियों की भूमिका को रेखांकित किया। बोले, आज सबसे बड़ा सवाल को देश को भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी, आतंकवाद व नक्सलवाद से मुक्त कराना है। इस कार्य में देश की 65 प्रतिशत युवा शक्ति निर्णायक भूमिका निभा सकती है। इस महायज्ञ का बिगुल युवाओं द्वारा धर्म व संस्कृति की राजधानी काशी से फूंका जाना चाहिए।
भारतीय संस्कृति की कालजयी रचना महाभारत पर केंद्रित टेलीविजन धारावाहिक में द्रौपदी की अपनी सशक्त भूमिका से करोड़ों दिलों पर राज करने वाली अभिनेत्री व सांसद रूपा गांगुली ने हिंदू धर्म के मर्म को परिभाषित किया। बोलीं, हिंदू धर्म के जीवन मूल्यों सहनशीलता व सहिष्णुता का भान युवा पीढ़ी को कराए जाने की जरूरत है। इतिहास गवाह है कि हिंदू धर्म पर समय-समय पर कई बड़े हमले हुए लेकिन हमने कभी किसी पर हमला नहीं किया।
दैनिक जागरण के राज्य संपादक आशुतोष शुक्ल ने ओजस्वी संबोधन में संयुक्त परिवार के महत्व को रेखांकित करते हुए बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए उन्हें अपने गौरवशाली इतिहास का ज्ञान कराने पर बल दिया। बोले, मंदिर में घंटी बजाने को ईश्वर की आराधना नहीं माना जा सकता। आप अपने पेशे के कार्य को ईमानदारी, निष्ठापूर्वक समर्पित भाव से करें, वही सबसे बड़ी पूजा व आराधना है। संचालन गंगा महासभा के प्रमुख स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने किया।
संस्कृति संसद की शाम गुजरी नगाड़े की टंकारों के संग
काशी में चल रहे संस्कृति संसद की पहली शाम लोक वाद्य यंत्र नगाड़े की शास्त्रीय टंकार के संग में गुजरी। राजस्थान से आये मनीष देवली ने इस वाद्य ताल वाद्य यंत्र को शास्त्रीयता की शैली में इतनी बारीकी और विद्वत्ता पूर्ण ढंग में रूपायित किया कि यह लोक वाद्य कहीं से भी अन्य शास्त्रीय वाद्य यंत्रों से कमतर नहीं था।
मनीष देवली ने नगाड़े की शुरुआत तीन ताल 16 मात्रा से की। उन्होंने इस ताल और मात्रा में ठेका, पेशकार, रेला,लागिया, चक्करदार तिहाइयां, आदि की प्रस्तुति से अपने वादन को ऊंचाई प्रदान की। इसी क्रम में झपताल 10 मात्रा व रूपक ताल सात मात्रा में इस कदर प्रस्तुत किया कि लोक वाद्य का शास्त्रीय रूप पूरी तरह जीवंत हो गया। संगतकार ध्रुव सहाय ने सारंगी पर सधी संगत कर विद्वत्ता का परिचय दिया। संचालन किरण शर्मा ने व धन्यवाद ज्ञापन स्वामी जीतेंद्रनन्द ने किया।