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प्राथमिक कक्षाओं से ही संस्कृत की अनिवार्यता हो, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम पुरस्कार से लिए चयनित वाराणसी के विद्वान बोले

संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने के लिए इसे प्राथमिक कक्षाओं से ही अनिवार्य करना होगा। वहीं इसे रोजगारपरक बनाने की भी जरूरत है। नई शिक्षा नीति में संस्कृत को महत्व मिला है। ऐसे में देव भाषा अब जन-जन की भाषा बनना तय है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 21 Aug 2021 06:30 AM (IST)Updated: Sat, 21 Aug 2021 06:30 AM (IST)
प्राथमिक कक्षाओं से ही संस्कृत की अनिवार्यता हो, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम पुरस्कार से लिए चयनित वाराणसी के विद्वान बोले
संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने के लिए इसे प्राथमिक कक्षाओं से ही अनिवार्य करना होगा।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने के लिए इसे प्राथमिक कक्षाओं से ही अनिवार्य करना होगा। वहीं इसे रोजगारपरक बनाने की भी जरूरत है। नई शिक्षा नीति में संस्कृत को महत्व मिला है। ऐसे में देव भाषा अब जन-जन की भाषा बनना तय है। संस्कृत भाषा के संरक्षण व संबर्धन को लेकर उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम की ओर से चयनित विद्वानों का कुछ इसी प्रकार से विचार है।

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संस्कृत में रोजगार की अपार संभावनाएं : प्रो. कमला पांडेय

महर्षि वाल्मीकि पुरस्कार के चयनित बीएचयू की प्रो. कमला पांडेय का कहना है कि संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं अपितु हमारी संस्कृति भी है। इसमें रोजगार की आपार संभावनाएं हैं।

संस्कृत व संस्कृति की देश का गौरव : डा. ददन उपाध्याय

विशिष्ट पुरस्कार के चयनित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के डा. ददन उपाध्याय का कहना है कि संस्कृत व संस्कृति के बदौलत ही देश विश्वगुरु रहा है। संस्कृत व संस्कृति ही देश का गौरव है।

संस्कृत के लोगों का समर्पण जरूरी : डा. दिव्य चेतन ब्रह्मचारी

पाणिनी/सायण पुरस्कार के चयनित संस्कृत विश्वविद्यालय के डा. दिव्य चेतन ब्रह्मचारी ने कहा कि संस्कृत के विकास के लिए संस्कृत के लोगों का समर्पण जरूरी है। संस्कृत के लोग जब पहल करेंगे तो संस्कृत का विकास स्वत: होगा।

नई शिक्षा नीति से जगी उम्मीद : डा. मधुसूदन मिश्र

विविध पुरस्कार के लिए चयनित संस्कृत विवि के डा. मधुसूदन मिश्र ने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत को काफी महत्व दिया गया है। ऐसे में संस्कृत के विकास की उम्मीद जगी है।

प्रो. कमलेश कुमार तीन बार विभागाध्यक्ष

प्रो. कमलेश कुमार जैन काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जैन व बौद्ध दर्शन विभाग के तीन बार विभागाध्यक्ष रह चुके हैं। वह जून, 2016 में बीएचयू से सेवानिवृत्त होकर सुंदरपुर के बजरडीहा में रहते हैं। उनके बेटे डा. आनंद कुमार जैन ने बताया कि वह अभी ब्लैक फ़ंगस से पीडि़त हैं और बीएचयू के सुपर स्पेशलिटी में भर्ती हैं। मूलत : मध्य प्रदेश के दमोह जि़ले के रहने वाले हैं और बनारस में वह 1968 में आए और 1985 में बीएचयू में प्रोफेसर बने।


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