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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब विदेश में खोलेंगी शाखाएं, कई देशों ने जताई इच्छा

दुनिया की प्राचीनतम प्राच्य विद्या का केंद्र संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब विदेश में भी शाखाएं खोलने का निर्णय लिया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 09:43 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 08:41 AM (IST)
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब विदेश में खोलेंगी शाखाएं, कई देशों ने जताई इच्छा
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब विदेश में खोलेंगी शाखाएं, कई देशों ने जताई इच्छा

वाराणसी, जेएनएन। दुनिया की प्राचीनतम प्राच्य विद्या का केंद्र संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब विदेश में भी शाखाएं खोलने का निर्णय लिया है। म्यांमार व मॉरीशस के संस्कृत कालेजों ने विवि से संबद्धता हासिल करने की इच्छा जताई है। म्यांमार ने तो मान्यता के लिए आवेदन भी किया है। कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल की अध्यक्षता गुरुवार को हुई कार्यपरिषद की बैठक में देश के बाहर भी संस्कृत कालेजों को मान्यता देने की हरी झंडी दे दी है।

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 परिषद के सदस्यों ने कहा कि अधिनियम के तहत विश्वविद्यालय को देश के किसी राज्यों में मान्यता/ संबद्धता देने का अधिकार प्राप्त है। यही नहीं भारत के बाहर भी विश्वविद्यालय मान्यता/संबद्धता दे सकता है। नेपाल व भूटान के कुछ संस्कृत कालेज पहले विश्वविद्यालय से थे। ऐसे में विदेशों में मान्यता देने में कोई अड़चन नहीं है। बैठक में ग्याना के संस्कृत छात्रों व अध्यापकों को पौरोहित्य कर्म का प्रशिक्षण देने की भी कार्यपरिषद ने हरी झंडी दे दी। ग्याना ने संस्कृत के छात्रों व अध्यापकों को प्रशिक्षित करने का विश्वविद्यालय को एक प्रस्ताव दिया है। इसके तहत गुरुकुल पद्धति से संस्कृत के छात्रों को शिक्षित करने का भी प्रस्ताव शामिल है। इसके तहत विश्वविद्यालय के अध्यापक ग्याना जाकर शिक्षकों को भी प्रशिक्षित करेंगे। पौरोहित्य कर्म के तहत पूजा-पाठ, हवन-पूजन, यज्ञ, नामकरण, चूड़ाकर्म, उपनयन, वेदारंभ विवाह व अंत्येष्टि सहित विविध धार्मिक संस्कार शामिल है। वहीं कुलपति ने बताया कि  मॉरीशस स्थित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट व विश्वविद्यालय के शैक्षणिक आदान-प्रदान के लिए सहमति बन चुकी है। समझौते पत्र पर जल्द ही हस्ताक्षर होने वाले हैं।

सुधरेगी आर्थिक स्थिति

विश्वविद्यालय की आर्थिक स्थिति काफी खराब चल रही है। अध्यापकों व कर्मचारियों को वेतन देने तक का पैसा विश्वविद्यालय के पास नहीं है। ऐसे में शाखाओं के विस्तार से विवि की आमदनी बढऩे की संभावना है। आर्थिक स्थिति सुधर सकती है।

1791 में हुई थी स्थापना

विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 1791 में बनारस संस्कृत पाठशाला के रूप में की गई। बाद में इसका नाम बदलकर राजकीय संस्कृत पाठशाला व क्वींस कालेज कर दिया गया। वर्ष 1956 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल हुआ और इसका नाम वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय कर दिया गया। वर्ष 1974 में इसका नाम संशोधित कर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय कर दिया गया। वर्तमान में विश्वविद्यालय से संबद्ध पूरे देश में करीब 600 संबद्ध कालेज है।


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