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माघ पूर्णिमा के सौभाग्‍य योग में आस्‍थावानों ने गंगा और सरयू में लगाई पुण्‍य की डुबकी

माघ मास की पूर्णिमा के मौके पर वाराणसी में गंगा तट सहित प्रमुख पूर्वांचल की नदियों में सुबह से ही आस्‍थावानों ने पुण्‍य की डुबकी लगाकर श्री समृद्धि और कल्‍याण की कामना की।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 09:28 AM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 04:03 PM (IST)
माघ पूर्णिमा के सौभाग्‍य योग में आस्‍थावानों ने गंगा और सरयू में लगाई पुण्‍य की डुबकी
माघ पूर्णिमा के सौभाग्‍य योग में आस्‍थावानों ने गंगा और सरयू में लगाई पुण्‍य की डुबकी

वाराणसी, जेएनएन। माघ मास की पूर्णिमा के मौके पर वाराणसी में गंगा तट सहित प्रमुख पूर्वांचल की नदियों में सुबह से ही आस्‍थावानों ने पुण्‍य की डुबकी लगाकर श्री समृद्धि और कल्‍याण की कामना की। मुहूर्त के अनुसार माघ पूर्णिमा की तिथि आठ फरवरी को दोपहर 2.52 बजे लग चुकी है जो आज नौ फरवरी को दोपहर 1.08 बजे तक बनी रहेगी। सूर्योदय का मान होने की वजह से पूर्वांचल में माघ पूर्णिमा का स्‍नान रविवार की सुबह से ही चल रहा है। इसकी वजह से आधी रात के बाद से ही गंगा तट पर आस्‍थावानों ने पुण्‍य की डुबकी लगानी शुरू की जिसका क्रम दिन चढ़ने तक जारी रहा।

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इस बार माघी पूर्णिमा पर सौभाग्य योग बनने की वजह से यह अपने आप में बेहद खास है। तिथि विशेष पर प्रयागराज में कल्पवासी और व्रतीजन एक मास (पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक) तक चलने वाले यम-नियम, संयमादि की पूर्णाहुति करेंगे। इसके साथ ही काशी में आस्‍थावानों का पलट प्रवाह भी शिवरात्रि तक चलता रहेगा। इस दौरान भदोही, मीरजापुर, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर और बलिया जिले में गंगा नदी और आजमगढ़ मऊ और बलिया में सरयू स्‍नान कर लोगों ने उगते सूर्य को अर्घ्‍य दिया। वहीं जौनपुर जिले में वरुणा और गोमती नदी में लोगों ने पुण्‍य की डुबकी लगाई।

वहीं वाराणसी में गंगा स्‍नान करने के बाद बाबा काशी विश्वनाथ दरबार में श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए पहुंचे तो मंदिर में दूर दूर तक कतार लग गई। माघ पूर्णिमा के मौके पर बाबा दरबार में भक्तो की लगी कतार बांसफाटक से होते हुए देखते ही देखते गोदौलिया तक पहुंच गई। घाट से लेकर बाबा दरबार तक हर हर महादेव के नारे से मंदिर परिक्षेत्र गूंज उठा।

दान का विशेष मान : स्नानोपरांत  गरीबों -असहायों व पुरोहितों को तिल, पात्र, ऊनी वस्त्र, कंबल, कपास, गुड़, घी, उपानह, फल, अन्न व स्वर्णादि दान करने की परंपरा का निर्वहन सुबह से ही आस्‍थावानों ने स्‍नान के बाद किया। ब्राह्मणों को भोजन और गोदान की परंपरा भी सुबह से नदी तट पर होती रही। मान्‍यता है कि इससे जन्म-जन्मांतर के पापों का क्षय तथा कई जन्मों तक अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती रहती है। अंत में भगवान विष्णु धर्म परायणों को वैकुंठ में स्थान देते हैैं।


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