मोदी जी, धूल में मिल जाएगी बौद्धिक संपदा, पोटली में सहेजी गई हैं दुर्लभ पांडुलिपियां
वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में बौद्धिक खजाने के रूप में हजारों साल पुराने दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षण की दरकार है।
वाराणसी, जेएनएन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी संभव है कि आपको को यह पता न हो कि आपके संसदीय क्षेत्र में स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में बौद्धिक खजाने के रूप में हजारों साल पुराने दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षण की दरकार है। वहीं संरक्षण में धन की कमी आड़े आ रही है। यदि समय संरक्षित नहीं किया गया तो बौद्धिक खजाना धूल में मिल जाएगी। इन पांडुलिपियों का अस्तित्व खतरे में है।
ऐतिहासिक सरस्वती भवन पुस्तकालय में एक लाख 11 हजार 132 पांडुलिपियां लाल पोटली (मेडिकेटेड क्लाथ) में सहेज कर रखी गई। अफसोस की बात यह है कि बजट के अभाव में चार दशक के बाद भी इस मेडिकेटेड क्लाथ (खारवायुक्त कपड़ा) कपड़े बदला नहीं जा सका है। इसकी मियाद वर्षों पहले ही खत्म हो चुकी है। यही नहीं जिस रसासनयुक्त कपड़े में इन्हें वर्षों पहले संरक्षित करके रखा गया था वे अब तार-तार हो चुकी हैं। इन्हें कीड़े-मकोड़ों से बचाने के लिए नैप्थलीन की ईंट रखी जाती है। इस ईंट की खरीद भी लंबे समय से नहीं हुई। भवन में नमी की शिकायत बनी रहने से इन्हें संरक्षित रख पाने की समस्या जटिल होती जा रही है। पुस्तकालय के रखरखाव के मद में सालाना केवल पांच लाख रुपये मिलते हैैं। यह रकम केवल किताबों की झाड़-पोंछ में चुक जाती है। चार साल पहले पांडुलिपियों के कपड़े बदलने के बजाय उन पर सिर्फ दवा का छिड़काव किया गया था ताकि कीटाणुओं से बचाया जा सके। हालांकि यह प्रयोग कई धरोहरों के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। दुर्लभ पांडुलिपियों का अध्ययन करने के लिए सिर्फ भारतीय विद्वान ही नहीं बल्कि विदेशी भी सरस्वती भवन पुस्तकालय आते रहते हैं। पांडुलिपियों का संग्रह ज्ञान व शोध के लिहाज से काफी उपयोगी है।
'' पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए समय-समय पर शासन को प्रस्ताव भेजा जाता है। इसके बावजूद संरक्षण के लिए अब तक कोई अनुदान नहीं मिला। दूसरी ओर सरस्वती भवन की भी स्थिति खराब है। भवन लगे पत्थरों का क्षरण हो रहा है। इस भवन के जीर्णोद्धार को लिए पांच करोड़ का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है ताकि इंटैक से भवन का जीर्णोद्धार कराया जा सके।
-प्रो. राजाराम शुक्ल, कुलपति ।