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रामनगर की रामलीला के तीसरे दिन ताड़का सुबाहु का हुआ वध, राक्षसों के उत्पात से मुक्ति

रामनगर की रामलीला के तीसरे दिन विश्वामित्र आगमन, ताड़का सुबाहु वध, मारीच निरसन, अहिल्या तारण, गंगा दर्शन, मिथिला प्रवेश, श्रीजनक मिलन की लीला का मंचन किया गया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 10:14 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 10:27 PM (IST)
रामनगर की रामलीला के तीसरे दिन ताड़का सुबाहु का हुआ वध, राक्षसों के उत्पात से मुक्ति
रामनगर की रामलीला के तीसरे दिन ताड़का सुबाहु का हुआ वध, राक्षसों के उत्पात से मुक्ति

वाराणसी (रामनगर)। धरती को राक्षसों से मुक्त कराने के लिए धरा पर मानव रुप में अवतरित प्रभु श्रीराम ने ताड़का वध से इसका श्रीगणेश किया। राक्षसों का वध कर ऋषियों-मुनियों की यज्ञादि की राह निष्कंटक कर दिया। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के तीसरे दिन विश्वामित्र आगमन, ताड़का सुबाहु वध, मारीच निरसन, अहिल्या तारण, गंगा दर्शन, मिथिला प्रवेश, श्रीजनक मिलन की लीला का मंचन किया गया। मंगलवार की शाम रामलीला की शुरुआत विश्वामित्र के आगमन से हुई। ब्राह्मïणदल के साथ राजा दशरथ मुनि की अगवानी करते हैं। उन्हें राजसिंहासन पर विराजमान करा कर चारो पुत्रों राम-भरत, लक्ष्मण-शत्रुघ्न को आशीर्वाद दिलाते हैं। विश्वामित्र राक्षसों के उत्पात से यज्ञादि में बाधा की जानकारी देते हुए आने का कारण बताते हुए इससे मुक्ति के लिए राम-लक्ष्मण को साथ ले जाने का आग्रह कर जाते हैं। इससे राजा दशरथ व्याकुल हो जाते हैं लेकिन गुरु वशिष्ठ के समझाने पर बुझे मन से श्रीराम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ जाने की आज्ञा देते हैं। 

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वन में श्रीराम को देखते ही राक्षसी ताड़का हुंकार भरते हुए उनकी ओर दौड़ पड़ती है। घनघोर युद्ध के बाद प्रभु श्रीराम के एक बाण से ही उसका प्राणांत हो जाता है। श्रीराम-लक्ष्मण मुनि विश्वामित्र से भूख -प्यास से विचलित न होने एवं बल प्राप्ति की मंत्र विद्या प्राप्त करते हुए ऋषियों से निर्भय होकर यज्ञ करने को कहते हैं। ताड़का का पुत्र मारीच सेना लेकर श्रीराम से युद्ध करने आता है लेकिन प्रभु के बिना फल वाले बाण से वह समुद्र पार लंका में जा गिरता है। श्रीराम सुबाहु का उसकी सेना समेत वध करते हैं। हर्षित देवगण आकाश से प्रभु की जयकार करते हैं। 

विश्वमित्र श्रीराम-लक्ष्मण को राजा जनक द्वारा आयोजित सीता स्वयंवर के बारे में बताते हैं। वन के रास्ते में एक शिला देख जिज्ञासु श्रीराम को विश्वामित्र, गौतम ऋषि द्वारा अपनी पत्नी अहिल्या को श्राप देकर शिला बनाने की कथा सुनाते हैं। ऋषि की आज्ञा से श्रीराम शिला को पैरों से स्पर्श करते हैं और अहिल्या प्रकट हो तर जाती हैं। गुरु विश्वामित्र संग राम-लक्ष्मण का आगमन सुन राजा जनक उनका स्वागत करते हैं। विश्वामित्र समेत राम-लक्ष्मण की आरती कर लीला को विश्राम दिया गया। 


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