रामनगर रामलीला : पिता के वचनों का रखने मान वन चले प्रभु श्रीराम, गूंजी जय जयकार
रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला के दसवें दिन मंगलवार को जिसमें नौवें दिन के प्रसंग वन गमन, निषाद राज मिलन व लक्ष्मण कृत गीता उपदेश की लीला का मंचन किया गया।
वाराणसी (रामनगर) । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम पिता के वचनों का मान रखने के लिए महलों का वैभव छोड़ा और वन से नाता जोड़ा। पत्नी धर्म निभाते हुए माता सीता ने भी पति की राह धरी। लक्ष्मण ने भी अनुसरण करते हुए भाई -भाई के रिश्ते की मिसाल पेश किया। यह सब हुआ रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला के दसवें दिन मंगलवार को जिसमें नौवें दिन के प्रसंग वन गमन, निषाद राज मिलन व लक्ष्मण कृत गीता उपदेश की लीला का मंचन किया गया। इसमें वन जाने के लिए तैयार प्रभु श्रीराम के साथ सीता और लक्ष्मण भी साथ चलने की जिद पर उतर आते हैं।
प्रभु दोनों की वन की दिक्कतें बताते हुए समझाते हैं लेकिन सभी तर्क निष्फल रह जाते हैं। सीता और लक्ष्मण के साथ प्रभु श्रीराम राजमहल आते हैं और महाराज दशरथ से वन गमन की आज्ञा मांगते हैं। राजा दशरथ अत्यंत दुखी मन से पुत्रवधु समेत पुत्रों के वन जाने का पूरा दोष अपने सिर लेते हैं। श्रीराम सभी को समझा-बुझाकर गुरु वशिष्ठ समेत सभी को प्रणाम कर वन की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। इससे व्याकुल अयोध्यावासी भी उनके पीछे-पीछे हो जाते हैं। प्रथम दिन सभी तमसा तट पर निवास करते हैं, रात में राम-सीता व लक्ष्मण को लेकर सुमंत आगे चल देते हैं। सुबह राम को अयोध्यावासी न पाकर विलाप करते हैं और गंगा तट पर पहुंच जाते हैं जहां श्रीराम गंगा विश्राम कर रहे होते हैं। निषादराज कंदमूल फल लेकर प्रभु के दर्शन को आते हैं और श्रीराम उन्हें गले लगाते हैं। निषादराज लक्ष्मण को वन मे होने वाले कष्टों के बारे में बताते हैं। इस पर लक्ष्मण निषादराज को समझाते हैं कि-ऐ भाई, कोई किसी का सुख-दुख दाता नहीं। सब कुछ अपने किए कर्मों का भोग है। संयोग- वियोग, भला-बुरा, निष्काम भोग सब भ्रम का फंदा है, इसलिए किसी को व्यर्थ का दोष नहीं देना चाहिए। श्रीलक्ष्मण कृत गीता उपदेश की इन वाणियों को सुनकर लीला प्रेमी लखनलाल का जय जयकार करते हैं। यहीं पर आरती के साथ लीला को विश्राम दिया जाता है।
आज की रामलीला
रामनगर : गंगावतरण, भारद्वाज समागम, यमुनावतरण, ग्रामवासी मिलन, वाल्मीकि समागम, चित्रकूट निवास, सुमंत का अयोध्या गमन, श्रीदशरथ...।
जाल्हूपुर : अवध में भरतागमन, सभा, श्रीभरत का चित्रकूट प्रयाण, निषाद मिलन, भारद्वाज आश्रम निवास।
शिवपुर : वन गमन, निषाद मिलन, शृंगवेरपुरम में विश्राम।
काशीपुरा : फुलवारी अष्टसखी संवाद।
भोजूबीर : श्रीराम विवाह, रामकलेवा।
चित्रकूट, मौनीबाबा, गायघाट : मुकुट पूजन।