रामनगर की रामलीला : जटायु को मिला मोक्ष, विलाप करते श्रीराम को देख लीला प्रेमियों की आंखें नम Varanasi news
सोमवार को श्री जानकी के वियोग में श्रीराम का विलाप जटायु मोक्ष शबरी फल भोजन वन वर्णन पम्पासर पर्यटन नारद हनुमान व सुग्रीव मिलन की लीला सम्पन्न हुई।
वाराणसी, जेएनएन। विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के 19वें दिन 17वें लीला के अन्तर्गत सोमवार को श्री जानकी के वियोग में श्रीराम का विलाप, जटायु मोक्ष, शबरी फल भोजन, वन वर्णन, पम्पासर पर्यटन, नारद हनुमान व सुग्रीव मिलन की लीला सम्पन्न हुई। प्रसंगानुसार सीता की खोज करते हुए वन में भटकते श्री राम रास्ते में गिद्धराज जटायु को राम राम भजते देख उसके सिर पर हाथ रखकर उसकी पीड़ा हर लेते हैं। गिद्धराज प्रभु श्री राम को रावण द्वारा सीता को हरण कर दक्षिण दिशा में ले जाने की जानकारी देने के उपरान्त स्वर्ग सिधार जाता है। श्री राम स्वयं उसका अंतिम संस्कार कर मोक्ष प्रदान करते हैं।
सीता को ढूंढते आगे बढ़ने पर दुर्वाषा ऋषि के श्राप से श्रापित कबंध राक्षस का वध कर उसका उद्धार करते हैं। प्रभु श्री राम शबरी के आश्रम में पहुंचते हैं जहां भिलनी शबरी उनकी प्रतीक्षा कर रही होती है। शबरी उन्हें आसन पर बैठा कर खाने के लिये कन्दमूल फल व बेर देती है श्री राम शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान देते हैं और सीता के बारे में पूछते हैं शबरी श्री राम को पम्पासर जैसे रमणीक स्थल के बारे मे बतातीे है जहां मतंग ऋषि की कृपा से सभी जानवर आपस में मिल जुल कर रहते हैं वहां सुग्रीव से मिलने की बात भी बताती हैं। तत्पश्चात हरिपद में लीन शबरी योगाग्नि में जलकर स्वर्ग चली जाती हैं। दोनों भाई पम्पासर सरोवर पर आकर स्नान करते हैं और शीतल छाया में बैठते हैं तभी नारद जी का आगमन होता है। यहां पर प्रभु श्री राम नारद जी के शंका का समाधान करते हैं इस प्रकार नारद का मोह दूर होता है वह श्री राम को प्रणाम कर प्रभु नाम भजते चले जाते हैं यहीं पर अरण्य काण्ड का प्रसंग समाप्त हो ,किष्किंधा काण्ड प्रारम्भ होता है।
श्री राम, लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत के निकट आते हैं जहां सुग्रीव हनुमान से कहते हैं कि दोनों ब्रम्हचारी पुरूषों का पता लगाओ कहीं उन्हें बलि ने तो नहीं भेजा है। प्रभु श्री राम के पास पहुंचे हनुमान उनके मुख से सीता हरण की बात सुन द्रवित हो प्रभु के चरणों से लिपट जाते हैं। श्रीराम उन्हें गले लगाते हैं, हनुमान दोनों भाईयो को कंधे पर बैठाकर सुग्रीव के पास ले जाते हैं और उनका परिचय कराते हैं। राम और सुग्रीव एक दूसरे की सहायता का वचन लेते हुए अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता करते हैं। सुग्रीव श्री राम को धीरज बंधाते हुए उन्हें अपने भाई बलि के अत्याचार से त्रस्त होकर वन मे भटकने की बात बताते हैं। श्रीराम सुग्रीव को बलि का वध कर उनके कष्ट का निवारण करने की बात कहते हैं जिसे सुन सुग्रीव उनके चरण पकड़ लेते हैं। यहीं पर आरती के साथ लीला को अगले दिन तक के लिये विश्राम दिया जाता है।