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रामनगर की रामलीला : रामलीला के पंद्रहवें दिन सिर पर खडाऊं रख भरत चले अयोध्या

काशी में विश्व प्रसिद्ध रामनगर की चौदहवें रामलीला का मंचन हुआ। रविवार को भरत जी का चित्र कूट से विदा होकर अयोध्या गमन, नन्दीग्राम निवास की लीला मंचित हुई ।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 10:35 PM (IST)Updated: Mon, 08 Oct 2018 06:00 AM (IST)
रामनगर की रामलीला : रामलीला के पंद्रहवें दिन सिर पर खडाऊं रख भरत चले अयोध्या

वाराणसी (रामनगर) । विश्व प्रसिद्ध रामनगर की चौदहवें रामलीला का मंचन हुआ। रविवार को भरत जी का चित्र कूट से विदा होकर अयोध्या गमन, नन्दीग्राम निवास की लीला मंचित हुई । लीला के प्रारम्भ में भरत ने श्रीराम से कहा कि गुरू वशिष्ठ की आज्ञा से आपके राजतिलक के लिये सभी तीर्थो का जल लाया हूं, उसे क्या करूं। भरत द्वारा तीर्थ वन, पशु रक्षा, तालाब आदि स्थलों को देखने की इच्छा प्रकट करने पर श्री राम कहते हैं कि अत्रि मुनि की आज्ञा लेकर निर्भय हो वन का भ्रमण करो।

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ऋषि राज जहां आज्ञा देगें उस स्थान पर तीर्थो के जल को रख देना। अत्रि मुनि के आदेश पर भरत ने पहाड़ के निकट एक सुन्दर कूप के पास राजतिलक के लिये लाये जल को रख दिया। अत्रि मुनि ने कहा यह अनादि स्थल जिसे काल ने नष्ट कर दिया था इस पवित्र जल के संयोग से यह स्थल संसार के लिये कल्याण कारी हो जायेगा। ऋषि श्रीराम को भी भरत कूप की महिमा बताते हैं श्रीराम और मुनि की आज्ञा मानकर भरत पांच दिनों तक चित्र कूट प्रदक्षिणा करते हैं। प्रात: काल भरत सभी लोगों के साथ प्रभु श्रीराम से आज्ञा मांगते हैं और उनके द्वारा दिये खडाऊं को अपने सिर पर बांध कर आनन्दित होते हुए विदा मांगते हैं। श्रीराम व भरत एक दूसरे से गले मिलकर विदा होते हैं।

लीला के दूसरे चरण में श्रीराम उदास होकर लक्ष्मण व सीता से कहते हैं कि भरत की दृढता, स्वभाव व मधु जुबान की तुलना नही की जा सकती। देवगण श्रीराम से कहते हैं कि अब सोच को छोड़कर हम लोगों की सुधि ली जाय जो अत्याचार देवताओं ने आप पर किये हैं  उसे क्षमा करें। श्री राम देवतागणों से कहते हैं कि हम आपके कल्याण हेतु कार्य कर रहे हैं इसलिये धीरज धारण कीजिये यही पर लीला की प्रथम आरती होती है। लीला के मध्यावकाश के बाद राजा जनक अयोध्या वासियों के लिए राजकाज संभालने को कहते हैं ।

भरत सेवक से कहते हैं कि हम सब महाराज राम के सेवक हैं और सेवक को ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे स्वामी को झूठा न बनना पडे़। गुरू वशिष्ठ की आज्ञा पाकर भरत श्रीराम की चरण पादुका को मंत्रोच्‍चार के बीच राज सिंहासन पर स्थापित करते हैं। फिर नन्दी ग्राम मे पर्ण कुटी बनाकर 14 वर्षों के लिये निवास करते हैं यही पर श्रीभरत के आरती के साथ लीला को विश्राम दिया जाता है।


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