वाराणसी में रामनगर की रामलीला : भुना रहे अक्षय पुण्यफल का आल टाइम आनर्ड चेक
रामनगर वाले रामनारायण पांडेय नामी हैं सरनामी हैं। भरे-पूरे खुशहाल परिवार के स्वामी हैं मगर उनके नाम से घर का पता पूछ लीजिए तो सामने वाला भकुआ हो जाएगा। लाख कोशिश करिए हाल नहीं बता पाएगा लेकिन हनुमान के नाम से उन्हीं का ठिकाना पूछ लीजिए तो पता मिल जाएगा।
वाराणसी [कुमार अजय]। रामनगर वाले पंडित रामनारायण पांडेय नामी हैं, सरनामी हैं। भरे-पूरे खुशहाल परिवार के स्वामी हैं, मगर उनके नाम से घर का पता पूछ लीजिए तो सामने वाला भकुआ हो जाएगा। लाख कोशिश करिए हाल-मुकाम नहीं बता पाएगा, लेकिन हनुमान जी के नाम से उन्हीं का ठिकाना पूछ लीजिए तो वही शख्स आपको चाय भी पिलाएगा और खुद साथ जाकर रामनारायण जी के घर तक पहुंचा आएगा। वजह की पड़ताल करें तो पता चलता है कि विश्वविख्यात रामनगर की लीला में पूरे 35 वर्ष तक हनुमान जी की भूमिका निभाते-निभाते उनका खुद का वजूद खो गया है, हनुमत लला की कृपा से अब उनका किरदार भी बजरंगमय हो गया है।
22 सिर, 44 बाहें, दस पुश्तों की रीति निबाहें
औरों के लिए रामनगर की लीला के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं, लेकिन रामनगर के पांडेय परिवार के लिए लीला उनका कौटुंबिक अनुष्ठान है, वह भी पूरे एक महीने का कठिन तपश्चर्या काल। यह तो हुई अकेले रामनारायण जी की कहानी। परिवार की बात करें तो यह भी एक अनूठा कीर्तिमान है कि इस रामलीला प्रेमी परिवार के कुल 22 सदस्य दस पुश्तों की रीति निभा रहे हैं। किसी न किसी रूप में लीला को सजा-संवार रहे हैं या यूं कहिए कि रामकाज में भागीदारी के बहाने अक्षय पुण्य का आल टाइम आनर्ड चेक भुना रहे हैं। परिवार के वरिष्ठ सदस्य पं. आशुतोष पांडेय बताते हैं कि कुनबे के 78 वर्षीय मुखिया पं. लक्ष्मी नारायण पांडेय लगभग साढ़े पांच दशक तक लीला के मुख्य व्यास की भूमिका निभाने के बाद स्वास्थ्य कारणों के चलते अब सक्रिय नहीं रह गए हैं, लेकिन लीला स्थल पर मत्था टेकने पहुंचते जरूर हैं। मुख्य व्यास की भूमिका अब परिवार के ही वरिष्ठ सदस्य हृदय नारायण पांडेय जी संभाल रहे हैं। दस पुश्तों (सन् 1806) से चली आ रही रीति को पारिवारिक संस्कारों में ढाल रहे हैं।
प्रभु चरित्र सुनबे को रसिया
आशुतोष जी बताते हैं कि अब व्यास पीठ संभाल रहे हृदय जी अपनी गरजदार आवाज के दम पर वर्षों से अब तक 32 पात्रों की भूमिका निभा चुके हैं। छोटे भाई शांत नारायण पांडेय भी कई सालों से भगवान शंकर और इंद्र की भूमिका में रहे हैं। दुलरुआ सदस्य विजय नारायण पांडेय की बुलंद आवाज ने उन्हें स्थाई रूप से लीला में होने वाली दैवीय आकाशवाणी का उद्घोषक बना रखा है। अन्य सदस्य भी अवसर के मुताबिक अत्री ऋषि, वाल्मीकि व मुनि भारद्वाज की भूमिका निभाते हैं। परिवार के बाल व किशोर वयस्क सदस्य कभी वानर-भालू तो कभी रावणी सेना का योद्धा बनकर खूब धमाल मचाते हैं। शेष जो बचते हैं वे लीला के पात्रों की रूप सज्जा व लीला स्थल की कला सज्जा की कमान संभालते हैं। आशुतोष जी कहते हैं यह आयोजन हमारे लिए घरेलू मंगल कारज जैसा है, इसलिए इस एक माह तक रोजी-रोजगार खूंटी पर टांग देते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डा. वीरेश्वर पांडेय को भी इस खास मौके पर छुट्टी लेकर घर आना होता है।
हरि इच्छा बलीयसी
आशुतोष जी की मानें तो रामकृपा के बूते ही परिवार हर दृष्टि से सधा हुआ है। टूटन के इस दौर में भी एक साथ श्रीराम रक्षा सूत्र में बंधा हुआ है। यह जरूर है कि कोरोना काल के चलते लीला स्थगन की वेदना हर सदस्य के मन को सालती है। फिर भी हरि इच्छा बलीयसी की सीख डोलते मन को ढांढस की पतवारों सी संभालती है।