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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर का बरसाती पानी नहीं जाएगा गटर में, भवनों को रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम से जोड़ा

वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर का बरसाती पानी अब गटर में नहीं जाएगा। जल संरक्षण के तहत बारिश के पानी की बर्बादी को भी रोकने के लिए विश्वविद्यालय परिसर को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जोड़ा गया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 13 May 2021 07:30 AM (IST)Updated: Thu, 13 May 2021 07:30 AM (IST)
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर का बरसाती पानी गटर में नहीं जाएगा।

वाराणसी, जेएनएन। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर का बरसाती पानी गटर में नहीं जाएगा। जल संरक्षण के तहत बारिश के पानी की बर्बादी को भी रोकने के लिए परिसर को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जोड़ा गया है। फिलहाल प्रथम चरण में दो प्रमुख भवनाें के छतों में जमा हाेने वाले बरसाती पानी को पीपीसी की पाइप लाइन के सहारे भूगर्भ तक पहुंचाने के लिए तीन टैंक बनाए गए हैं। ऐसे में अब लाइब्रेरी के आसपास जलजमाव से भी मुक्ति मिलना तय है।

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जल शक्ति मंत्रालय की पहल पर विश्वविद्यालय में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाया गया है। बरसात की बूंदों को सहेजने में भूगर्भ विभाग ने इसका निर्माण वित्तीय वर्ष 2020-21 में कराया था। प्रथम चरण में करीब 22.48 लाख रुपये की लगात से नवीन छात्रावास व सरस्वती भवन पुस्तकालय की छत पर एकत्र होने वाले बरसाती पानी को प्लास्टिक की पाइप के सहारे तीन अलग-अलग टैंकों में जोड़ा गया है। 15 गुने दस फीट के टैंक के दो पार्ट बनाए गए हैं। टैंक में फिल्टर प्रक्रिया भी अपनानी गई है। इसके लिए पहले भाग में गिट्टी, बालू का लेयर बनाया गया ताकि दूसरे पार्ट में बरसानी पानी छन कर जा सके। दूसरे भाग में करीब 200 फीट बोरिंग हुई है ताकि बरसात का पानी सीधे भूगर्भ में जा सके।

विश्वविद्यालय के अभियंता पीयूष मिश्र ने बताया कि भूगर्भ विभाग ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का कार्य हाल में ही पूर्ण किया है। अब हैंडओवर की प्रक्रिया चल रही है। कहा कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जहां वाटर लॉगिंग की समस्या से निजात मिलती है, वहीं कुदरती पानी को भी बचाया जा सकता है। बारिश के पानी को जमीन की सतह तक पहुंचाए जाने के चलते भूमिगत जल स्तर में भी इजाफा होता है।


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