बारिश की खुमारी पड़ सकती आंखों पर भारी, बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस के मरीजों की बढ़ी संख्या
बारिश की खुमारी में लापरवाही आंखों पर भारी पड़ सकती है। इसमें कंजंक्टिवाइटिस यानी पिंक आई या आई फ्लू प्रमुख है।
मऊ, जेएनएन। बरसात के साथ ही वातावरण में उमस का घेरा बीमारियों का पिटारा लेकर आता है। उमस, तपिश के साथ ही धूल, धुआं व गंदगी इसे बढ़ावा देती है। ऐसे में बारिश की खुमारी में लापरवाही आंखों पर भारी पड़ सकती है। इसमें कंजंक्टिवाइटिस यानी पिंक आई या आई फ्लू प्रमुख है। वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक डॉ. एनके ङ्क्षसह ने बताया कि बरसात में बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस के मरीजों की संख्या बढ़ी है। वे बताते हैं कि इसमें आंखें लाल, पलकें सूजी व तेज दर्द परेशान कर सकता है। खास यह कि एक दूसरे के संपर्क में आने से भी इसका संक्रमण होता है। कंजंक्टिवाइटिस वायरल व बैक्टीरियल के साथ ही एलर्जिक भी होता है। इसमें आंख का सफेद भाग व पलकों के निचले हिस्से में जलन व लाली आ जाती है।
डा. सिंह बताते हैं कि यह किसी भी आयु वर्ग के लोगों को हो सकता है। हालांकि इससे आंख की रोशनी पर कोई असर नहीं पड़ता है। बरसात के दिनों में धूल, गंदगी व गंदे पानी के संपर्क में आंख के आने से बैक्टीरियल आई फ्लू अधिक देखने में आती है। स्टैफिलेकोकाई और स्ट्रेप्टोकोकाई बैक्टीरिया के कारण इसका संक्रमण होता है। इसमें आंख में दर्द, सूजन व लाली आ जाती है। साथ ही हरा-पीला डिस्चार्ज होता है। सोने के बाद आंख चिपक जाती है। एक दूसरे के चश्मे, वस्त्र, रूमाल, तैलिया या अन्य सामानों का प्रयोग करने से इसका प्रसार होता है। वहीं एडिनोवायरस से होने वाले वायरल इंफेक्शन में आंख में लाली, सूजन, पानी आने के साथ ही जुकाम जैसे लक्षण भी दिखायी देते हैैं। चमकीला प्रकाश असहनीय होता है। इसका एक दूसरे के संपर्क में आने व हवा के जरिए भी प्रसार होता है। वहीं एलर्जी, केमिकल एरिटेशन या अन्य कारणों से भी आई फ्लू संभव है। यह संक्रामक नहीं होती है।
लक्षण :
-बैक्टीरियल आई फ्लू में आंख लाल, पलकों में सूजन, हरा-पीला स्राव व पलकों का चिपक जाना तथा दर्द।
-वायरल आई फ्लू के मामले में आंख लाल, पानी का स्राव, हल्की सूजन, चुभन व तेज रोशनी से परेशानी।
-एलर्जिक फ्लू में आंख लाल व खुजलाहट।
कारण :
-बैक्टीरियल आई फ्लू गंदे पानी से मुंह व आंख धोने, संक्रमित स्थान को छूने के बाद आंख छूने, संक्रमित व्यक्ति का तौलिया या रूमाल प्रयोग करने से होता है।
वहीं वायरल आई फ्लू संक्रमित के संपर्क में आने से भी हो सकता है।
-एलर्जिक फ्लू में शरीर के भीतरी व बाहरी कारणों से होता है। इसमें धूल, धुआं, केमिकल या पत्तियों पर स्थिति फंगस होते हैं।
बचाव के उपाय :
-प्रभावित व्यक्ति से दूरी बनाए रखें।
-तौलिया या रूमाल न साझा करें।
-प्रभावित व्यक्ति को आंख छूने के बाद अन्य सामान छूने से रोकें।
-बाहर से आने के बाद आंख साफ पानी से धोएं।
एहतियात :
-तालाब, पोखरे, बरसाती या गंदे पानी से न नहाएं।
-संक्रमित व्यक्ति की आंखों की ओर न देखें।
-चिकित्सक की सलाह लें।
-एंटीबायोटिक ड्राप/मलहम का प्रयोग करें।