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कैंसर के खतरे को आधे से भी कम करता है धूमपान का त्याग, सिगरेट से 20 गुना बढ़ता है खतरा

फेफड़े का कैंसर भले ही भयावह लगता हो लेकिन इसका रोकथाम करना बहुत कठिन नहीं है। इसका पहला उपाय धूमपान का त्याग करना व धूम्रपान से हरहाल में बचना है। कारण कि आसपास के प्रदूषित धुएं से भी कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 25 Nov 2021 10:23 PM (IST)Updated: Thu, 25 Nov 2021 10:23 PM (IST)
कैंसर के खतरे को आधे से भी कम करता है धूमपान का त्याग, सिगरेट से 20 गुना बढ़ता है खतरा
कैंसर के खतरे को आधे से भी कम करता है धूमपान का त्याग

वाराणसी,  मुकेश चंद्र श्रीवास्तव। फेफड़े का कैंसर भले ही भयावह लगता हो, लेकिन इसका रोकथाम करना बहुत कठिन नहीं है। इसका पहला उपाय धूमपान का त्याग करना व धूम्रपान से हरहाल में बचना है। कारण कि आसपास के प्रदूषित धुएं से भी कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। जो लोग धूम्रपान का त्याग करते हैं उनमें कैंसर का खतरा आधे से भी कम हो जाता है। इतना ही नहीं, धूम्रपान से उत्पन्न होने वाली और भी बीमारियाें मूत्राशय, स्तन, जीभ, गला, जिगर आदि के कैंसर से भी बचाव होता है। पूर्वांचल के एम्स कहे जाने वाले चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू स्थित सर सुंदरलाल अस्पताल में फेफड़े के कैंसर के समग्र उपचार की सुविधाएं हैं। रेडिएशन आंकोलोजी विभाग, बीएचयू के अध्यक्ष प्रो. सुनील चौधरी के अनुसार कैंसर कोई असाध्य रोग नहीं है। अगर समय पर सही उपचार किया जाए तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है।

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बीएचयू में कई राज्यों के आते हैं मरीज

प्रो. चौधरी बताते हैं कि नवंबर को विश्वभर में फेफड़े के कैंसर के बारे में जागरूकता माह मनाया जाता है। इसके माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है। कारण कि पिछले कुछ दशकों के मुकाबले फेफड़े के कैंसर के स्तर में काफी वृद्धि देखी गई है। बीएचयू में उत्तर प्रदेश के साथ ही बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों से मरीज कैंसर के इलाज के लिए आते हैं। इस भौगोलिक क्षेत्र में अत्याधिक तंबाकू युक्त पदार्थ जैसे पान मसाला, गुटखा, खैनी के सेवन और धूम्रपान की वजह से फेफड़े के कैंसर का हाटस्पाट बन गया है। हालांकि ज्यादातर मरीज विलंब करके कैंसर के अंतिम चरण में आते हैं, जिसमें उन्हें रेडिएशन या कीमोथेरेपी से 'प्रशामक' यानी पैलियेटिव उपचार किया जा सकता है, जिससे पूर्ण इलाज की जगह उनको लाक्षणिक राहत दिया जाता है।

सिगरेट के धुएं से 20 गुना बढ़ जाता है कैंसर का खतरा

प्रो. चौधरी बताते हैं कि फेफड़े के कैंसर का मुख्य कारण धूम्रपान है। सिगरेट के धुएं में 50 से अधिक कैंसर कारक तत्व पाए गए हैं, जो कैंसर के खतरे को 20 गुना तक बढ़ा देते हैं। रिसर्च में पाया गया है कि यदि एक इंसान प्रतिदिन 1 पैकेट सिगरेट का सेवन करता है, तो 1 साल में उसकी कोशिकाओं में करीब 150 अनुवांशिक उत्परिवर्तन यानी म्यूटेशन्स पैदा हो जाते हैं, जो की आगे चलकर कैंसर की उत्पत्ति करवाते हैं।

यह भी है कैंसर के कारण

जीविका संबंधी या व्यावसायिक रूप से कुछ हानिकारक रसायन (जैसे आर्सेनिक व ऐस्बेस्टस) के संपर्क में आने वाले लोग, जैसे की कारखाने, खदान और अन्य उद्योगों के कर्मचारी, जिससे कैंसर के रिस्क में 5 गुना तक वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही अनुवांशिकता, पारिवारिक कारण, अत्याधिक प्रदूषण, पैसिव स्मोकिंग या निष्क्रिय धूम्रपान भी कारण है।

कैंसर के प्रमुख लक्षण

- खांसी, सांस लेने में दिक्कत, छाती में दर्द, वजन में गिरावट, कमजोरी।

इन जांचों से पता चलता है कैंसर :

-छाती का एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई, पैट स्कैन, बायोप्सी। साथ ही सीटी स्कैन के माध्यम या शवास-नली के रास्ते ब्रोंकोस्कोपी के द्वारा फेफड़े से संदेहास्पद टुकड़ा निकालकर जांच के लिए भेजा जाता है। इससे ट्यूमर के प्रकार का पता चलता है।

उपचार

-सर्जरी : फेफड़े का प्रभावित भाग आपरेशन/ शल्यक्रिया द्वारा निकाला जा सकता है।

- रेडियोथैरेपी: रेडिएशन यानी विकिरण द्वारा ट्यूमर को छोटा किया जा सकता है। अगर कैंसर का प्रारंभिक चरणों में अनुसंधान हो तो रेडियोथेरेपी अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हो सकती है, जिससे बीमारी के आकार पर असर करने के साथ-साथ मरीज़ के लक्षणों में सुधार पाया जाता है। इसका मूल उद्देश्य होता है कि ट्यूमर को वांछित विकिरण डोज दिया जाए व आसपास के सामान्य अंगों को न्यूनतम डोज मिले।

-स्टीरियोटैकटिक बाडी रेडियेशन थेरेपी : यह रेडियोथैरेपी की एक आधुनिक तकनीक है, जिसमें रेडियेशन के अधिक खुराक को कम समय में एक जगह पर केंद्रित करके सूक्ष्मता से इलाज किया जा सकता है।

- कीमोथेरेपी: रोगी को कीमो की दवाएं चढ़ाई जा सकती हैं।

- टार्गेटेड थैरपी: यह भी एक आधुनिक उपचार है, जिसमें शरीर में उपस्थित कैंसर कोशिकाओं के अनुवांशिक स्तर पर जीन/प्रोटीन या कैंसर को बढ़ावा देने वाले कारक को निशाना बनाकर बीमारी पर नियंत्रण पाया जाता है।

- इएमयूनोथेरेपी:- इसमें मरीज के स्वयं के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है, जिससे की वह खुद ही कैंसर की कोशिकाओं को पहचानकर उन्हें मारने में सक्षम हो जाए।

-ब्रेकीथेरेपी:- इस तकनीक से कैंसर विशेषज्ञ ट्यूमर के अंदर या पास में विकिरण का स्त्रोत डालकर उपचार करते हैं । इस स्त्रोत को ट्यूमर के सटीक स्थान पर सुई के द्वारा (इंटरस्टीशियल), या शवास-नली (एन्डोब्रोंकियल) के रास्ते पहुंचाकर बहुत कारगर तरीके से बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है।


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