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प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से वाराणसी में बढ़ा मछली का उत्पादन, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से घटा आयात

कुछ साल पूर्व में आंध्र प्रदेश व तेलंगाना का पूर्वांचल के मछली बाजार पर दबदबा था लेकिन किसानाें में मछली उत्पादन के प्रति रुझान ने सकारात्मक परिणाम दिया। यही कारण है कि 2019-20 में जहां मछली उत्पादन 30526 टन था यह 2020-21 में 11 फीसद बढ़कर 34874 टन हो गया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 17 Aug 2021 09:10 AM (IST)Updated: Tue, 17 Aug 2021 09:10 AM (IST)
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से वाराणसी में बढ़ा मछली का उत्पादन, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से घटा आयात
मत्स्य पालन के प्रति किसानों के बढ़ता रुझान उनकी आय बढ़ा रहा तो बाजार को आत्म निर्भर बना रहा है।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प को पूरा करने की ओर बढ़ चली है। मत्स्य पालन के प्रति किसानों के बढ़ता रुझान उनकी आय बढ़ा रहा है तो बाजार को आत्म निर्भर भी बना रहा है। इससे आंध्र प्रदेश व तेलंगाना पर निर्भरता घट गई है। मत्स्य विभाग इस लाभ को मार्च 2022 तक सात हजार टन पंगासियस के उत्पादन के साथ 39 हजार टन मछली उत्पादन में परिवर्तित करने पर काम कर रहा है। पहले पंगासियस आंध्र प्रदेश से बर्फ में ढक कर आती थी जो यहां के बाजार में बिकती थीं। अब जीवित मछलियों की उपलब्धता से आंध्रप्रदेश की मछलियों की मांग में कमी आई है।

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किसानों की बढ़ी आय

दरअसल, कुछ साल पूर्व में आंध्र प्रदेश व तेलंगाना का पूर्वांचल के मछली बाजार पर दबदबा था, लेकिन किसानाें में मछली उत्पादन के प्रति बढ़े रुझान ने सकारात्मक परिणाम दिया है। यही कारण है कि 2019-20 में जहां मछली उत्पादन 30,526 टन था यह 2020-21 में 11 फीसद बढ़कर 34,874 टन हो गया। इसी अवधि में पंगासियस मछली का उत्पादन 960 टन से पांच गुना बढ़कर 4616 टन हो गया। हालात ये हुए कि बाजारों में स्थानीय मछली उत्पादन प्रतिकिलो 10-12 रुपये महंगा बिकने लगा। इससे किसानों को एक किलो मछली उत्पाद पर 20-30 रुपये मुनाफा होने लगा। अगर कीमत की बात करें तो 50 करोड़ 77 लाख 60 हजार रुपये का मछली आयात होने से बचाया। वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर व चंदौली में कुल 4000 हजार हेक्टेयर में मछली पालन 1600 किसान कर कर हैं।

किसान कंपनी बनाकर हो रहा काम

नमामि गंगे किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड, सेवापुरी के किसान केएन ऋषि बताते हैं कि रोहू, कतला, मृगल प्रजाति की मछलियां कम लागत में तैयार होती हैं। इनका मुख्य भोजन प्राकृतिक फीड हाेता है। 70 फीसद फीड तालाब में प्राकृतिक रूप में ही मिलता है। आरएएस ( रीसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम) तकनीक में 25फीट×25फीट के आठ टैंक में मत्स्य पालन किया जाता है। इस तकनीक में पानी की गुणवत्ता व तापमान नियंत्रित रहता है। इससे आधे हेक्टेयर में मत्स्य पालन किया जा रहा है। एक एकड़ में लगभग 20- 25 टन मछली का उत्पादन होता है। पंगासियस में उत्पादन लागत ज्यादा होती है, क्योंकि यह केवल फार्मुलेटेड फ्लोटिंग फीड (सतह पर तैरने वाले कंपनी निर्मित) ही खाती हैं, जिसकी कीमत ज्यादा है। वहीं सही से देखरेख की जाय तो पांच-छह महीने में ही एक किलोग्राम तक वजन की हो जाती है।


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