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उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही में आबादी में दर्ज मिला प्रेमचंद का स्मारक

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का उनके गांव लमही स्थित स्मारक आबादी की जमीन के तौर पर दर्ज है।

By Edited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 01:46 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 05:56 PM (IST)
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही में आबादी में दर्ज मिला प्रेमचंद का स्मारक
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही में आबादी में दर्ज मिला प्रेमचंद का स्मारक

वाराणसी, जेएनएन। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का उनके गांव लमही स्थित स्मारक आबादी की जमीन के तौर पर दर्ज है। संस्कृति विभाग की ओर से छह माह की खोजबीन में यह स्थिति स्पष्ट हुई। हालांकि उनके आवास के कागजात अब भी अफसरों के हाथ नहीं आ सके हैं। ऐसे में साहित्यिक धरोहर का वारिस महकमा कौन यह सवाल बरकरार है। फिलहाल स्मारक को संस्कृति विभाग के नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू की गई है। वास्तव में पिछले साल मुंशी प्रेमचंद की जयंती (31 जुलाई) से ठीक दो दिन पहले पावर कारपोरेशन की टीम ने स्मारक व आवास में बिजली कनेक्शन अवैध बताते हुए काट दिया था। हालांकि बाद में तत्कालीन डीएम के हस्तक्षेप पर बिजली के तार खींचकर साहित्य की धरा रोशन तो जरूर कर दी गई थी।

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वहीं एक बड़ा सवाल भी खड़ा हो गया था कि आखिर धरोहर का वारिस महकमा कौन। तलाश शुरू होने पर मालिकाना हक को लेकर इसकी साज-संवार कराने वाले विभाग वीडीए व ग्रामसभा में खींचतान मची तो संस्कृति विभाग ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। डीएम के निर्देश पर पड़ताल कर संबंधित को कनेक्शन लेने के आदेश दिए गए थे। इसकी जिम्मेदारी संस्कृति विभाग को दी गई लेकिन अब तक सिर्फ स्मारक की स्थिति स्पष्ट हो सकी है। क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र प्रभारी यशवंत सिंह राठौर के अनुसार मुंशी जी के आवास के कागजात की तलाश जारी है। स्मारक जल्द ही संस्कृति विभाग के नाम दर्ज हो जाएगा।

क्यों झुठला रहे इतिहास की गवाही : मुंशी प्रेमचंद के परिवार से जुड़े डा. दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव अफसरों की नीयत पर ही सवाल उठाते हैं। बताते हैं कि नागरी प्रचारिणी सभा ने मुंशी प्रेमचंद के परिवारीजन से आवास का एक हिस्सा लेकर आठ अक्टूबर 1959 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद से शिलान्यास कराकर स्मारक का निर्माण कराया। परिवार वालों ने बैठका भी 1986 में प्रशासन को दे दिया। वर्ष 2005 में वीडीए ने इसे अपने हाथ लेकर जीर्णोद्धार कराया। संस्कृति विभाग तब से लगातार हर साल आयोजन भी करा रहा है, लेकिन बिजली का पेंच फंसने के बाद पता नहीं क्यों अधिकारी जिम्मेदारी से भाग रहे। वीडीए ने भवन किसे हस्तांतरित किया, उसका भी जवाब नहीं दे रहा।


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