Pranab Mukherjee Death News : वाराणसी में चार बार आए थे प्रणब मुखर्जी, कहा था- महामना जैसा कोई नहीं
भारत रत्न से पूर्व राष्ट्रपति वाराणसी रहते हुए चार बार आए थे। दो बार बीएचयू में आयोजित विशेष दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि थे।
वाराणसी, जेएनएन। भारत रत्न से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी वाराणसी में चार बार आए थे। तीन बार बीएचयू पधारे थे। पहली बार वित्त मंत्री रहते भारत कला भवन में, दूसरी बार मालवीय जी की 150वीं जयंती और दीक्षा समारोह पर 25 दिसंबर, 2012 को, तीसरी बार 2014 में सनबीम स्कूल के कार्यक्रम में और चौथी बार 12 मई, 2016 में बीएचयू के सौवें स्थापना दिवस पर। 25 दिसंबर, 2012 को उन्होंने बीएचयू के दो बड़े केंद्रों की आधारशलिा रखी थी, जसिमें से एक मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र और दूसरा अंतर सांस्कृतकि केंद्र था। इस दौरान प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि अगर आज चिराग ले कर भी ढूंढ़ा जाए तो महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जैसी कोई दूसरी शख्सियत दिखायी नहीं देती। महामना भी महिलाओं को शिक्षित करने के पक्षधर थे। उन्होंने विभिन्न अवसरों पर मालवीय जी द्वारा दिये गये भाषणों का उल्लेख करते हुए कहा कि वो एक स्वप्नद्रष्टा थे। आधुनिक भारत के शिल्पकार थे। उन्होंने बीएचयू में चल रहे तमाम विकास कार्यों की प्रशंसा की और कहा कि बीएचयू की गतिविधियों में मैं हमेशा दिलचस्पी लेता हूं।
25 दिसंबर 2012 को प्रणब दा ने बीएचयू के छात्रों से कहा था कि आज पूरा देश उनकी तरफ आस भरी निगाह से देख रहा है कि वे महिलाओं को उनका जायज हक दिलाने की दिशा में अहम भूमिका अदा करेंगे। उन्होंने उम्मीद जतायी कि महामना की बगिया से निकले छात्र पूरे देश में जेंडर इश्यूज पर जागरूकता फैलाने का काम करेंगे। प्रणब दा ने कहा था कि हमारा इतिहास, हमारी परम्परा और हमारे सांस्कृतिक मूल्य भी इस बात के लिए हमें प्रेरित करते हैं कि हम नारी की मेधा को आगे बढ़ाने का काम करें।
बीएचयू में स्पेशल कन्वोकेशन कई मामलों में स्पेशल था। यहां चीफ गेस्ट के रूप में शामिल हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के सिलसिले में अपना मौन तोड़ा और मुखर होकर कहा था कि अगर नारी को सम्मान देना बंद कर दिया गया तो समाज का कोई वजूद नहीं रह जाएगा। दूसरी खास यह थी कि इसी प्रोग्राम में नेपाल के राष्ट्रपति डॉ. रामबरन यादव भी शामिल थे जिन्हें डॉक्टर ऑफ ला की मानद उपाधि देकर पड़ोसी मुल्क से रिश्ते सुधारने की कवायद भी की गयी।
100 रुपये का शताब्दी वर्ष स्मृति सिक्का और बीएचयू के ‘लोगो’ वाला 10 रुपये का सिक्का भी किया गया जारी
प्रणब दा 12 मई, 2016 में राष्ट्रपति शाम छह बजे स्वतंत्रता भवन पहुंचे थे और वहां शताब्दी व्याख्यान दिए। इस दौरान 100 रुपये का शताब्दी वर्ष स्मृति सिक्का जारी किया गया। इसके अलावा बीएचयू के ‘लोगो’ वाला 10 रुपये का सिक्का भी जारी किया गया।
अनुसंधान और नवाचार को बनाना होगा राष्ट्रीय प्राथमिकता
प्रणब मुखर्जी 12 मई, 2016 को बीएचयू के शताब्दी वर्ष समारोह में महलिाओं और शोध कार्य को लेकर कई अहम बातें खुलकर की थी। उन्होंने कहा था कि 2030 तक भारत की आधी से अधिक जनसंख्या कामकाजी वर्ग में शामलि हो जाएगी। हमारी विशाल कार्यबल पूंजी भी हो सकती है और बोझ भी । यदि हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करें तो यह एक पूंजी होगी। यदि हम अपने युवाओं की रोजगार योग्यता को बढ़ाएंगे तो हम विश्व को कार्यबल के आपूर्तिकर्ता बन सकते हैं। इसकेे अलावा कहा था कि अनुसंधान और नवाचार को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना होगा। यह आवश्यक है कि हमें अनुसंधान और विकास तथा हमारे उच्च शिक्षा के अपने संस्थानों में भरपूर निवेश करना होगा। ऐसे निवेश से भारत विश्व के अग्रणी देशों मेें शुमार हो सकेगा। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर पंडित मदन मोहन मालवीय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए बताया क िपंडित मालवीय भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सर्वोच्च नेताओं में से एक थे। महामना ने काशी में विश्वविद्यालय स्थापित करने का बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लिया, क्योंकि यह नगर केवल एक भौगोलिक प्रतिबिंब नहीं बल्कि एक ऐसा नाम है जो मन में एक ऐसे स्थान की याद दिला देता है, जिसने सभ्यता के विकास को प्रोत्साहित किया है। मालवीय जी ने राष्ट्र निर्माण में योगदान करने वाले पेशेवर रूप से प्रशिक्षित वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक विचारकों, दार्शनिकों तथा शिक्षाविदों का समूह तैयार करने के लिए एक विश्वविद्यालय की परिकल्पना आजादी से बहुत पहले ही कर ली थी।
भारत कला भवन में दिय था अर्थव्यवस्था पर ओजस्वी उद्बोधन
बीएचयू के पूर्व विशेष कार्याधिकारी डा. विश्वनाथ पांडेय के अनुसार लगभग देढ़ दशक पहले जब वह देश के वित्त मंत्री थे, तब भारत कला भवन में विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित व्याख्यान माला को संबोधति करने आए थे। उस दौरान उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था पर ऐसा उद्बोधन दिया कि हाल में बैठा हर व्यक्त कि देश की आर्थिक स्थिति पर चर्चा करने को मजबूर हो गया। इससे पहले अर्थव्यवस्था पर इतनेे ओजस्वी किसी अर्थशास्त्री के नहीं सुने गए।