सोनभद्र में फिल्म सिटी की संभावनाएं अपार, उम्दा कहानी मिले तो यहां फिल्माएंगे सीन : इकबाल दुर्रानी
यहां की प्राकृतिक सुंदरता वाकई बेहतरीन है। यहां शूटिंग के काफी ज्यादा संभावनाएं हैं लेकिन अगर बड़ी फिल्मों की शूटिंग किसी वजह से अटक रही है तो वह संसाधनों की कमी के कारण।
सोनभद्र, जेएनएन। यहां की प्राकृतिक सुंदरता वाकई बेहतरीन है। यहां शूटिंग के काफी ज्यादा संभावनाएं हैं लेकिन, अगर बड़ी फिल्मों की शूटिंग किसी वजह से अटक रही है तो वह संसाधनों की कमी के कारण। यहां फिल्म इंडस्ट्रीज से जुड़े लोगों को रुकने, खाने-पीने सहित अन्य सुविधाओं के लिए इंतजाम नहीं है। अगर ये होतो यहां फिल्म सिटी का निर्माण कराया जा सकता है। यह बातें दैनिक जागरण से विशेष बातचीत के दौरान जाने-माने फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक इकबाल दुर्रानी ने कही।
जिले की गीतकार डा. रचना तिवारी के पांचवे काव्य संग्रह जिंदा खत के विमोचन के सिलसिले में जनपद में आए इकबाल दुर्रानी सोमवार को दैनिक जागरण सोनभद्र के कार्यालय में करीब 40 मिनट तक रहे। इस दौरान उन्होंने मन की बात साझा की। कहा कि जागरण से उनका गहरा लगाव है। वह जिले में दूसरी बार आए हैं। इसके पहले वर्ष 2011 में डा. रचना तिवारी के ही कार्यक्रम में आए थे। जिले की सरजमीं को सलाम किया और अमीर बताया। एक सवाल के जवाब में कहा कि यहां ऐसी कोई कहानी जिसे बड़े पर्दे पर उतारा जा सके वह मिलेगी तो जरूर उस पर फिल्म बनाएंगे। बड़ी फिल्मों की शूटिंग यहां न होने के सवाल पर कहा कि यहां फाइव स्टार होटल नहीं है जहां अभिनेता और अभिनेत्रियां रुक सकें। अगर संसाधन मिले तो निश्चित तौर पर फिल्म सिटी के रूप में विकसित किया जा सकता है। बताया कि उन्होंने फिल्म करने के साथ ही चार वेदों में शामिल सामवेद को उर्दू व हिंदी में अनुवाद किया है। सीएए के सवाल पर कुछ भी बोलने से इन्कार किया। कहा कि हमारी दुनिया फिल्म में है।
फिल्म में मिली डा. रचना की गीत को जगह
जिले को तरक्की की राह दिखाने, फिल्म में जिले को जगह दिलाने की दिशा में इकबाल दुर्रानी ने शुरुआत की है। कहा कि इसी सिलसिले में यहां की डा. रचना तिवारी के एक गीत..ख्वाबों में आते वो कोई देख न ले... को फिल्म में जगह दी। इसे आवाज दी अल्का याग्निक और जावेद अली ने।
फिल्में करना पहले जुनून था अब व्यवसाय
आज के दौर में फिल्मों के जरिए मर्यादा को लांघने के सवाल पर कहा कि पहले फिल्में करना एक जुनून था लेकिन, अब व्यवसाय हो गया है। कोई भी फिल्म निर्माता अपना नफा-नुकसान जरूर सोचता है। यहीं वजह है कि पहले जैसी फिल्में नहीं बनती। साथ ही दर्शक भी अब पहले जैसे नहीं रहे। उन्हें तड़क-भड़क वाली फिल्में पसंद हैं।
अब के युवाओं में जल्दबाजी ज्यादा
निश्चित तौर के आज के युवा जोश वाले हैं, उनमें पर्याप्त ऊर्जा है। सलाम है इस ऊर्जा को। लेखक दुर्रानी कहते हैं कि आज के युवा अगर थोड़ा धैर्य से काम लें तो वे बहुत आगे जाएंगे। आज के युवाओं में जल्दबाजी ज्यादा है। जल्दबाजी के चक्कर में कई बार संस्कार और मर्यादा तोड़ देते हैं।