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काशी में जहरीली हवा बढ़ा रही श्वांस और हृदय रोगियों की संख्या

आनंद कानन के नाम से कभी पहचाने जाने वाले शहर में जहरीली होती हवा श्वास व हृदय रोग दे रही है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 02 Jun 2018 11:15 AM (IST)Updated: Sat, 02 Jun 2018 11:15 AM (IST)
काशी में जहरीली हवा बढ़ा रही श्वांस और हृदय रोगियों की संख्या
काशी में जहरीली हवा बढ़ा रही श्वांस और हृदय रोगियों की संख्या

प्रमोद यादव, वाराणसी : आनंद कानन के नाम से कभी पहचाने जाने वाले शहर में जहरीली होती हवा श्वास व हृदय को छलनी कर ही रही है बात इससे भी आगे बढ़ रही है। डाक्टर अपरोक्ष रूप से थायरायड व पेट संबंधित रोग पीड़ितों की संख्या में बेतरह इजाफे को भी इससे जोड़ रहे हैं। सरकारी व निजी अस्पतालों की भी ओपीडी में इन चार रोगों से पीड़ितों की संख्या में लगभग 20 फीसद तक का इजाफा हुआ है। मंडलीय व दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में हर दिन लगभग 2700 मरीज आते हैं। इनमें 60 फीसद तक सिर्फ फिजीशियन की ओपीडी में जाते हैं। अधिकतर सीजनल मर्ज से पीड़ित होते हैं लेकिन अनुपात 50 फीसद का ही होता रहा। अब यह आंकड़ा श्वास, हृदय, पेट व एलर्जी रोगियों की वृद्धि दिखा रहा है।

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पूर्व संयुक्त निदेशक वरिष्ठ फिजीशियन डा. पीके तिवारी के अनुसार अब तक खानपान व अनियमित जीवनशैली श्वास, हृदय व पेट रोग का बड़ा कारण माना जाता था लेकिन रोगियों की दिनचर्या व आहार का आकलन करने पर सामने आया है कि इनमें ज्यादातर इसके मानकों का पालन करने के बाद भी इस तरह के रोगों से पीड़ित हुए। यही नहीं थायरायड रोगियों की संख्या जहां इक्का-दुक्का हुआ करती थी, अब इनमें भी बढ़ोतरी हो रही है। इसके पीछे भी प्रदूषण को ही कारण मानते हुए शोध किए जा रहे हैं। दुश्मन बनी हवा -श्वास की नली से प्रदूषित हवा में घुली सल्फर, कार्बन मोनो आक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन समेत जस्ता, कैडमियम, तांबा जैसी धातुएं श्वास नली से होते फेफड़े में जाता है। इससे एलर्जी के साथ ही फेफड़े की वाइटल कपैसिटी कम होती है। श्वास नली में सूजन और अवरोध से दमा व सीओपीडी होता है। -हालांकि फेफड़ा व ह्रदय एक दूसरे से जुड़े हैं। फेफड़ा रक्त शोधित कर हृदय को देता है। फेफड़े में दिक्कत होती तो रक्त की शुद्धता प्रभावित होती है। इससे ह्रदय की पंपिंग क्षमता कम हो जाती है। रक्त नली में जमाव होता है और हर्ट फेल्योर के खतरे बढ़ जाते हैं। -वायु प्रदूषण से त्वचा पर एलर्जी होती है। ये खुजली, दाने, लाली और अंतत: घाव के रूप में सामने आते हैं। आंख में जलन, कंजक्टिवाइटिस व राइनाइटिस के भी खतरे इससे ही बढ़ रहे हैं। -इसका स्नायु तंत्र पर भी धीमे-धीमे असर होता है। इससे विचार क्षमता कम होती है, चिड़चिड़ापन और अंतत: कार्य क्षमता, फिर पूरा स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इससे पेट व हार्मोनल रोग शामिल हैं।


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