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वाराणसी में कैंसर पीड़‍ित मरीजों के लिए पहली बार शुरू हुई प्लेटलेट्स रजिस्ट्री

कैंसर मरीजों विशेषकर ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया) और हेमाटोलिम्फाइड मालिगनेंसी के मरीजों को नियमित रूप से प्लेटलेट्स की जरूरत पड़ती रहती है। इसके लिए समय-समय पर शिविर का आयोजन किया जाता है लेकिन मरीजों की संख्या की तुलना में फिलहाल यह नाकाफी साबित हो रहा है।

By Abhishek sharmaEdited By: Published: Sun, 14 Feb 2021 09:55 AM (IST)Updated: Sun, 14 Feb 2021 09:55 AM (IST)
वाराणसी में कैंसर पीड़‍ित मरीजों के लिए पहली बार शुरू हुई प्लेटलेट्स रजिस्ट्री
ल्यूकेमिया और हेमाटोलिम्फाइड मालिगनेंसी के मरीजों को नियमित रूप से प्लेटलेट्स की जरूरत पड़ती रहती है।

वाराणसी, जेएनएन। किसी भी मरीज के लिए ब्लड व प्लेटलेट्स बहुत जरूरी होते हैं। बात जब कैंसर मरीजों की हो तो इसकी भूमिका और भी बढ़ जाती है। ब्लड व प्लेटलेट्स की इसी महत्ता को ध्यान में रखते हुए होमी भाभा कैंसर हास्पिटल (एचबीसीएच) व महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर सेंटर (एमपीएमएमसीसी) के डाक्टरों ने  प्लेटलेट्स रजिस्ट्री की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य जरूरत पडऩे पर अस्पताल में इलाज करा रहे कैंसर मरीजों को प्लेटलेट्स उपलब्ध कराना है। अब तक इस रजिस्ट्री से दोनों अस्पतालों के 110 से अधिक कर्मचारी स्वेच्छा से जुड़ चुके हैं, इनमें 35 डाक्टर हैं।

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कैंसर मरीजों विशेषकर ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया) और हेमाटोलिम्फाइड मालिगनेंसी के मरीजों को नियमित रूप से प्लेटलेट्स की जरूरत पड़ती रहती है। इसके लिए समय-समय पर शिविर का आयोजन किया जाता है, लेकिन मरीजों की संख्या की तुलना में फिलहाल यह नाकाफी साबित हो रहा है। मरीजों के इलाज में प्लेटलेट्स की कमी बाधा न बने, इसके लिए होमी भाभा कैंसर अस्पताल और महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर सेंटर के रक्त-आधान (ट्रांसफ्यूजन) चिकित्सा विभाग के प्रमुख डा. अक्षय बत्रा व डा. सिद्धार्थ मित्तल ने अस्पताल के दूसरे डाक्टरों के साथ मिलकर प्लेटलेट्स रजिस्ट्री की शुरुआत की है। डा. बत्रा ने बताया कि कीमोथेरेपी देने के बाद ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया) और हेमाटोलिम्फाइड मालिगनेंसी के मरीजों का प्लेटलेट्स कम हो जाता है। नतीजतन उन्हें प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत होती है। फिलहाल अस्पताल में होने वाले प्लेटलेट्स डोनेशन से मरीजों की जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो रहा है, इसलिए रजिस्ट्री बनाई गई है। इसमें अस्पताल के कर्मचारी विशेष रूप से डाक्टर जुड़कर जरूरतमंद मरीजों को समय पर प्लेटलेट्स उपलब्ध करा रहे हैं।

बढ़ाएं कदम, सुरक्षित है प्लेटलेट्स दान 

डा. बत्रा ने बताया कि प्लेटलेट्स डोनेशन न केवल सुरक्षित है, बल्कि इसके कई फायदे भी हैं। छह लोगों के रक्तदान से जितना प्लेटलेट्स मिलता है, उतना केवल एक व्यक्ति के प्लेटलेट डोनेशन से प्लेटलेट्स मिल जाता है। हालांकि प्लेटलेट्स डोनेशन को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी के कारण लोग इसके लिए अमूमन आगे नहीं आते हैं। यही कारण है कि अस्पताल में भर्ती होने वाले औसतन पांच मरीजों में से केवल दो को ही समय पर प्लेटलेट्स मिल पाता है, जबकि शेष तीन मरीजों के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। कैंसर मरीजों की सहायता के लिए समाज के जागरूक लोगों को आगे बढ़कर प्लेटलेट्स दान करने की जरूरत है, ताकि उनके इलाज में प्लेटलेट्स बाधा न बन सके।

ऐसे होता है प्लेटलेट्स डोनेशन

प्लाज्मा या प्लेटलेट्स डोनेशन में एफेरसिस मशीन ही इस्तेमाल होती है, लेकिन दोनों में किट अलग-अलग लगते हैं। डोनर के शरीर से ब्लड मशीन में जाता है और उसमें से प्लेटलेट्स अलग इकट्ठा होता रहता है। बाकी अवयव (कंपोनेंट) शरीर में वापस भेज दिया जाता है। एक बार प्लेटलेट्स डोनेट करने के बाद कोई भी स्वस्थ व्यक्ति 28 दिन के अंतराल पर दोबारा प्लेटलेट्स दान कर सकता है।

ये कर सकते हैं प्लेटलेट्स दान

सामान्य रक्तदान के नियम प्लेटलेट्स दान में भी लागू होते हैं, यानी 18 से 60 साल की उम्र का कोई भी स्वस्थ व्यक्ति प्लेटलेट्स दान कर सकता है। इसमें दानदाता का प्लेटलेट्स 1.5 लाख से ऊपर एवं वजन 55 किलोग्राम से अधिक होना जरूरी है।


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