श्मशान से उठाया हरियाली का बीड़ा, पौधे के साथ शवयात्रा में शामिल होकर करते हैं पौधरोपण
श्मशान से रास्ता मुक्ति का निकलता है मगर मुक्ति का कुछ नया प्रयोग आजमगढ़ जिले में किया है इंद्रजीत ने।
आजमगढ़ [देवेंद्र सिंह]। श्मशान से रास्ता मुक्ति का निकलता है, मगर मुक्ति का कुछ नया प्रयोग आजमगढ़ जिले में किया है इंद्रजीत ने। जी हां, आम तौर पर लोगों को प्रेरणा देवालयों या फिर बड़े लोगों से मिलती है लेकिन आजमगढ़ जिले में शमशान से ऐसी प्रेरणा मिली कि आस पास हरियाली के वाहक ही बन गए। उसके बाद किसी के भी शवयात्रा में शामिल होते हैं तो एक पौधा उनके हाथ में होता ही है। उस पौध को वह वहीं श्मशान के पास ही रोपित करते हैं। अतरैठ गांव के इंद्रजीत वर्मा पिछले पांच दशक से यह अपना अनोखा प्रेरणादायक अभियान जारी रखे हैं।
पांच दशक पुराना संघर्ष
बात लगभग 50 वर्ष पूर्व की है, जब इंद्रजीत 14 वर्ष के थे। उनके दादा रघुवीर का निधन हुआ तो दाह संस्कार में गए हुए थे। अतरैठ गांव से शमशान घाट की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। जेठ की तपती धूप लोगों को व्याकुल कर दे रही थी। रघुवीर का दाह संस्कार पूरा होने से पूर्व ही लोग धूप से परेशान होकर शमशान घाट से चले गए। यह देखकर इंद्रजीत को काफी कष्ट हुआ। उन्होंने सोचा कि अगर यहां वृक्ष की छांव होती तो लोग अंत तक रुके रहते। यही सोचकर उन्होंने खुद प्रतिज्ञा ली कि जब भी यहां किसी के दाह संस्कार में शामिल होने आएंगे तो साथ में एक पौधा जरूर लगाएंगे। उसके बाद से लगातार इंद्रजीत ने शमशान घाट पर पौधरोपण किया।
हरा भरा हो गया मार्ग
आज पूरा शमशान घाट हरा-भरा हो गया है, लेकिन इंद्रजीत का अभियान जारी है। पौधरोपण का जुनून ऐसा कि उन्होंने अपनी नर्सरी बना ली ताकि रोपण के लिए कहीं और से पौधा न लेना पड़े। इतना ही नहीं अन्य दिनों में वह कोयलसा ब्लाक के प्राथमिक विद्यालयों व अन्य खाली सार्वजनिक स्थानों पर पौधरोपण करते हैं। वह कहते हैं कि प्रतिवर्ष औसतन दो सौ पौधे लगाने के बाद दिल को बहुत सकून मिलता है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम मेरा भी शामिल हो गया।