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वाराणसी में मां के कदमों में बेटे की निकली जान, गम और गुस्‍से का प्रतीक बन गई यह तस्‍वीर

कोरोना संक्रमण के चलते इलाज के अभाव में रोज मरीज मर रहे हैं लेकिन प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंग रही है। सोमवार को ऐसा ही एक मामला सामने आया जहां इलाज के अभाव में एक युवक ने अपनी मां के कदमों में दम तोड़ दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 02:56 PM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 02:56 PM (IST)
इलाज के अभाव में रोज मरीज मर रहे हैं, लेकिन प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंग रही है।

वाराणसी, जेएनएन। कोरोना संक्रमण के चलते इलाज के अभाव में रोज मरीज मर रहे हैं, लेकिन प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंग रही है। सोमवार को ऐसा ही एक मामला सामने आया जहां इलाज के अभाव में एक युवक ने अपनी मां के कदमों में दम तोड़ दिया।

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जौनपुर जिले के मडियांहू निवासी विनय सिंह का भतीजा विनीत सिंह मुंबई में काम करता था। बीते दिसंबर माह में वह शादी समारोह में आया तभी से गांव में ही रुक गया था। उस समय उसकी तबीयत खराब होने पर परिवार के लोगों ने जौनपुर में एक डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने किडनी में समस्या बताई। युवक के बड़े पिता विनय सिंह ने बताया कि दिसंबर से लगातार पांच बार इलाज के लिए बीएचयू अस्पताल में जाकर लाइन लगाई लेकिन किसी डॉक्टर ने नहीं देखा। सोमवार को तबीयत ज्यादा खराब हुई तो अपनी मां चंद्रकला सिंह के साथ वह इलाज के लिए बीएचयू आया था। जब वहां डॉक्टरों ने कोरोना की वजह से नहीं देखा तो ककरमत्ता स्थित प्राइवेट हॉस्पिटल में ले गए। वहां भी उसे भर्ती नहीं किया गया। इसके बाद उसकी मां की कदमों में तड़प-तड़प कर मौत हो गई। युवक चार भाई व एक बहन में तीसरे नंबर का था।

यह खबर जागरण में सचित्र प्रकाशित होने के बाद से ही इंटरनेट मीडिया में गम और गुस्‍से का प्रतीक बन गई है। बेबस मां के कदमों में दम तोड़े बेटा वाहन में हाथ लटकाए मृत पड़ा है और मां के कदमों में बेटे का यह शव देखकर हर आने जाने वाले के कलेजे को संवेदनाओं से भर दे रहा था। दरअसल कोरोना से मौत के बढ़ते आंकड़ों के बीच लोग दूसरी बीमारियों के बारे में चर्चा करना भी भूल गए हैं। किडनी की समस्‍या से ग्रस्‍त युवक को लेकर बनारस में बेहतर इलाज के लिए जवान बेटे को लेकर भटकते भटकते मां के आंसू ही मानो सूख चले थे। जाने धरती के भगवान को फर्क पड़ रहा है या नहीं मगर आपको कोरोना के अलावा कोई अन्‍य बीमारी हो तो अस्‍पताल में कोई राहत नहीं मिलनी। अस्‍पताल में पहली बात तो बेड ही नहीं। दूसरे जगह है भी तो मरीज का आरटीपीसीआर टेस्‍ट रिपोर्ट आने के बाद ही इंट्री मिल रही है। उसपर भी टेस्‍ट रिपोर्ट सप्‍ताह भर बाद तक मिलने तक लोगों की हालत और भी खराब हो जा रही है। 

मानवीय संवेदनाओं की अनदेखी की यह तस्‍वीर इंटरनेट मीडिया पर गम और गुस्‍से का प्रतीक बन गई है। लोगों की जुबान पर व्‍यवस्‍था के खिलाफ रोष है तो मां के कदमों में पड़ी बुढ़ापे की बेजान लाठी की खामोश आवाज को इंटरनेट मीडिया एक स्‍वर में गम और गुस्‍से के जरिए आवाज दे रहा हैै।


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