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बीएचयू बवाल : मरीजों के दर्द का रेजिडेंट नहीं बने हमदर्द, इलाज को भटके

वाराणसी में बीएचयू हास्पिटल में बीती रात मारपीट की घटना के विरोध में मंगलवार को अधिकांश जूनियर रेजिडेंट कार्य से विरत रहे।

By Edited By: Published: Wed, 26 Sep 2018 02:41 AM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2018 02:42 AM (IST)
बीएचयू बवाल : मरीजों के दर्द का रेजिडेंट नहीं बने हमदर्द, इलाज को भटके
बीएचयू बवाल : मरीजों के दर्द का रेजिडेंट नहीं बने हमदर्द, इलाज को भटके

वाराणसी (जेएनएन) : बीएचयू हास्पिटल में बीती रात मारपीट की घटना के विरोध में मंगलवार को अधिकांश जूनियर रेजिडेंट कार्य से विरत रहे। अफवाहों और अंदेशों के बीच दूर-दराज से उम्मीदों के सहारे यहां पहुंचे मरीजों में ऊहापोह की स्थिति बनी रही। मतलब साफ था मरीजों के दर्द के हमदर्द बनने से रेजिडेंट ने इन्कार कर दिया। आमतौर पर सोमवार व मंगलवार को ओपीडी में काफी भीड़ होती है। यूपी, बिहार के सैकड़ों मरीज शाम में यहां पहुंच गए थे, जो घटनाक्रम से पूरी तरह अनजान थे। सामान्य दिनों की तरह सुबह नौ बजे ओपीडी में नंबर के लिए लोग लाइन में भी लगे। इस बीच अफवाहों-अंदेशा के बीच कभी मालूम चलता कि डाक्टर मरीजों को देख रहे हैं, तो कभी जानकारी होती नहीं देख रहे।

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इससे मरीजों व उनके परिजनों में पूरे समय ऊहापोह की स्थिति बनी रही। जनरल सर्जरी, गुर्दा रोग, चर्म रोग, यूरोलॉजी, न्यूरोलॉजी आदि सहित जनरल ओपीडी खुली रही। जूनियर रेजिडेंट के न रहने पर सीनियर्स बखूबी अपना फर्ज निभा रहे थे। सुबह के 11.30 बजे के करीब रेजिडेंट न्यूरोलॉजी के डाक्टर को अपने साथ लेकर चले गए। मरीज भी भौचक, आखिर हुआ क्या। 10 से 15 मिनट बीते होंगे, इतने में चिकित्सा अधीक्षक वहां पहुंचे और डाक्टर का प्रबंध कर ओपीडी दोबारा शुरू कराया। ओटी से बाहर निकाले मरीज : बीएचयू हास्पिटल के सर्जरी वार्ड में सुबह से ही ऑपरेशन के लिए लंबी लाइन लगी थी। यहां एनेस्थीसिया के लिए रेजिडेंट उपलब्ध नहीं थे। इसका नतीजा ये रहा कि ऑपरेशन थिएटर में ले जाने के बावजूद कई मरीजों को बाहर कर दिया गया। हालांकि डाक्टरों ने सभी से इंतजार करने को कहा। उनका कहना था कि प्रबंध होते ही आपरेशन किए जाएंगे। दर्द से कराहते रहे दर्जनों मरीज : पेन क्लीनिक में सुबह से ही दर्द से कराह रहे दर्जनों मरीज कतारबद्ध थे। उम्मीद थी कि समय होते ही उनके दर्द की दवा होगी। समय बीतता गया और दोपहर तक बस इंतजार का ही दौर चला। मगर इन दर्दमंदों को हमदर्द नहीं मिला। पेन क्लीनिक में तीव्र दर्द से जूझ रहे मरीज ही पहुंचते हैं। रेजीडेंट के कार्य से विरत रहने का सबसे अधिक खामियाजा इन्हें ही भुगतना पड़ा।

केस नंबर 1 : भदोही के मिथिलेश 12 वर्षीय भतीजी अर्चना को लेकर आठ सितंबर से हास्पिटल में हैं। अर्चना की किडनी में पथरी का आपरेशन होना है। अब तक चार बार आपरेशन के लिए बुलाया गया। कभी डाक्टर तो कभी समय नहीं तो नंबर नहीं मिलने के कारण हर बार वापस हो गए। आज पहली बार नंबर मिला था। बच्ची को ओटी में ले जाया गया और बाकायदा बेहोश भी किया गया और कुछ ही देर में बिना आपरेशन बाहर कर दिया गया।

केस नंबर 2 : कैमूर के मंगरू साव अपनी नातिन खुश्बू को लेकर तीन दिन से भर्ती थे। मंगलवार की सुबह खुश्बू को ओटी में ले जाया गया, मगर एनेस्थीसिया के लिए जूनियर रेजिडेंट के न होने से उसे भी बाहर कर दिया गया।

केस नंबर 3 : बलिया की ऊषा सिंह अपने भाई बृज बिहारी सिंह (60 वर्ष) को नाजुक हालत में लेकर सोमवार की रात इमरजेंसी में पहुंची। यहां रात में इलाज मिला, वहीं सुबह न तो कोई डाक्टर देखने आया और न ही इलाज मिला। मजबूरन भारी भीड़ में ओपीडी में लेकर आना पड़ा।

केस नंबर 4 : जाल्हूपुर बनारस के बच्चेलाल खैरवार (60 वर्ष) का एक सप्ताह पहले एक्सीटेंट हुआ था। इलाज के लिए उन्हें ट्रामा सेंटर लाया गया। एक दिन के बाद डाक्टरों ने घर भेज दिया था। पेरशानी बढ़ने पर आज फिर ट्रामा सेंटर लाया गया। यहां जूनियर रेजिडेंट के काम से विरत रहने का हवाला देते हुए प्राइवेट हास्टिल में इलाज की नसीहत दी गई और बाहर कर दिया गया।


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