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नेशनल एपिलेप्सी डे : आंख के सामने अंधेरा, शरीर में ऐंठन, बेहोशी है मिर्गी का लक्षण

आपने जरूर कुछ लोगों को अचानक रास्ते में गिरकर बेहोश होते देखा होगा। इस दौरान व्यक्ति के मुंह से फेन भी निकलती है। ये मिर्गी के लक्षण हैं।

By Edited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 12:32 PM (IST)
नेशनल एपिलेप्सी डे : आंख के सामने अंधेरा, शरीर में ऐंठन, बेहोशी है मिर्गी का लक्षण
नेशनल एपिलेप्सी डे : आंख के सामने अंधेरा, शरीर में ऐंठन, बेहोशी है मिर्गी का लक्षण

वाराणसी [वंदना सिंह] । आपने जरूर कुछ लोगों को अचानक रास्ते में गिरकर बेहोश होते देखा होगा। इस दौरान उनके मुंह से फे न भी निकलती है। दरअसल ये लोग एपिलेप्सी यानी मिर्गी रोग से पीड़ित होते हैं। एपिलेप्सी यानी मिर्गी के दौरे जिसे आयुर्वेद में 'अपस्मार' नाम से जाना जाता है। यह एक तंत्रिका संबंधी गड़बड़ी है जिसमें अचानक इंसान होश खो बैठता है। इसका दौरा कुछ सेकंड से लेकर मिनट तक रह सकता है। एक आकड़े के मुताबिक दुनियाभर के पांच करोड़ लोग और भारत के करीब एक करोड़ लोग मिर्गी के शिकार हैं।

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चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार बताते हैं विश्व की कुल जनसंख्या के 8 से 10 प्रतिशत तक को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ सकता है। एपिलेप्सी के लक्षण हर इंसान में अलग हो सकते हैं। कुछ लोग आंखों के सामने अंधेरा हो जाने से बेहोश हो जाते हैं। कुछ लोगों को अंग में ऐंठन हो जाती है और कुछ के मुंह से फेन भी निकल सकता है। आयुर्वेद में आचार्यो ने कहा है यह एक ऐसी बीमारी जिसमें धीरे धीरे स्मृति यानी चेतना का नाश होने लगता है।

रोगी रखें सावधानी : मिर्गी के रोगी को घर से बाहर अकेले निकलने पर अपना परिचय कार्ड अपने साथ अवश्य रखना चाहिए। जिसमें उसका नाम, पता, बीमारी का नाम और दवा का विवरण आदि का उल्लेख होना चाहिए। इसके साथ ही रोगी को कार, स्कूटर आदि वाहन नहीं चलाने चाहिए। खतरनाक मशीनों के संचालन से भी बचना चाहिए। ऊंची इमारतों पर चढ़ने से बचें। अधिक स्ट्रेस से भी दौरे आने की संभावना रहती है। ऐसे रोगी को नदी, तालाब, आग से दूर रहना चाहिए।

आयुर्वेद में इलाज : आयुर्वेद में औषधियों के अलावा पंचकर्म से भी मिर्गी का इलाज किया जाता है। इस बीमारी में निम्न प्रकार की औषधियों का प्रयोग किया जाता है। जो इस प्रकार हैं। ब्राम्ही, शखपुष्पी, वचा, सर्पगंधा, ज्योतिष्मती, पंचगव्य घृत, ब्राम्ही घृत, कूष्माडादि घृत, स्मृतिसागर रस, वातकुलंतक रस। पंचकर्म चिकित्सा में शिरोधारा, शिरोबस्ति, नस्य के जरिए इस बीमारी का उपचार किया जाता है।


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