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वाराणसी के ज्ञानवापी के जल से संकल्प संग शुरू होती है पंचक्रोशी परिक्रमा, 3300 साल पुराना है परिक्रमा पथ

आस्थावान श्रीकाशी विश्वनाथ के प्राचीन मंदिर में स्थित ज्ञानवापी कूप के जल में स्नान करते कूप का पवित्र जल लेकर परिक्रमा का संकल्प लेते और फिर बाबा के दर्शन कर मणिकर्णिका घाट पहुंचते थे। चक्र पुष्करिणी कुंड के जल से भी संकल्प ले पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत करते थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 25 May 2022 08:41 PM (IST)Updated: Thu, 26 May 2022 01:39 AM (IST)
वाराणसी के ज्ञानवापी के जल से संकल्प संग शुरू होती है पंचक्रोशी परिक्रमा, 3300 साल पुराना है परिक्रमा पथ
ज्ञानवापी कूप के जल में स्नान करते, हाथ में कूप का पवित्र जल लेकर परिक्रमा का संकल्प लेते थे।

वाराणसी, अनुपम निशान्त : करीब तीन हजार साल पहले जब यूनानी और ट्राय शहर के योद्धा एक-दूसरे से युद्ध लड़ रहे थे और मिस्र (इजिप्ट) के लोग पिरामिडों में रखे अपने फराओ (सम्राटों) के पुनर्जीवित होने का इंतजार कर रहे थे, उस कालखंड में भी काशी की धर्मपरायण जनता पंचक्रोशी परिक्रमा करती थी। आस्थावान श्रीकाशी विश्वनाथ के प्राचीन मंदिर में स्थित ज्ञानवापी कूप के जल में स्नान करते, हाथ में कूप का पवित्र जल लेकर परिक्रमा का संकल्प लेते और फिर बाबा के दर्शन कर मणिकर्णिका घाट पहुंचते थे। वहां स्थित चक्र पुष्करिणी कुंड के जल से भी संकल्प ले पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत करते थे। हजारों साल पुरानी यह परंपरा आज भी चली आ रही है।

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पंचक्रोशी परिक्रमा पथ की प्राचीनता 

पंचक्रोशी परिक्रमा पथ की प्राचीनता जानने के लिए बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पुराविद् प्रो. ओएन सिंह के नेतृत्व में 2014 में खोज शुरू की गई। प्रो. सिंह के अनुसार परिक्रमा पथ पर स्थित कर्दमेश्वर मंदिर से भीमचंडी तक किए गए सर्वेक्षण में विभिन्न कालखंड के पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं। बूड़ापुर और खुशियारी में प्राचीन टीले से कृष्ण मार्जित मृदभांड, लाल मिट्टी के बर्तन, धूसर मृदभांड और मिट्टी के मनके आदि मिले हैं। हाल ही में बभनियांव के उत्खनन में भी प्राचीन शिवलिंग मिलने से यह प्रमाणित होता है।

शोध से जुड़े डा. राहुल राज कहते हैं कि प्राचीन काशी वर्तमान राजघाट के आसपास ही बसी थी, लेकिन देल्हना, कंदवा, काशीपुर, महावन आदि स्थानों से मिले साक्ष्यों से पता चलता है कि 1300-1400 ई.पू. में बनारस के दक्षिण में भी वर्तमान पंचक्रोशी परिक्रमा पथ के आसपास मानवीय बसावट थी। प्रो. सिंह के अनुसार उत्खनन में प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर पाया कि पंचक्रोशी परिक्रमा पथ करीब 3300 वर्ष पुराना है। यह अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए इस भ्रम को दूर करता है कि पंचक्रोशी यात्रा 17वीं-18वीं शताब्दी में शुरू हुई।

विश्वेश्वर-ज्ञानवापी का प्राचीन काल से अटूट संबंध

बीएचयू के धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग के प्रो. माधव जनार्दन रटाटे बताते हैं कि श्रीकाशी विश्वेश्वर और ज्ञानवापी का प्राचीन काल से अटूट संबंध है। ज्ञानवापी के उत्तर की ओर श्रीकाशी विश्वेश्वर का प्राचीन स्थान बतलाया गया है। प्राचीन काल से पंचक्रोशी परिक्रमा ज्ञानवापी के जल के संकल्प से शुरू होती है। काशी खंड के अध्याय 33 के अनुसार भगवान ईशान ने एक बार विश्वेश्वर की पूजा करने को अपने त्रिशूल से गड्ढा खोदा, वही ज्ञानवापी तीर्थ हो गया। शिव का ही एक रूप ईशान है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के 'काशी रहस्य' के अनुसार भगवान शिव का पंचक्रोशात्मक लिंग ही काशी है। ऐसा उल्लेख स्कंद पुराण के काशी खंड में भी मिलता है। 'शिव रहस्य' के अनुसार काशी स्वयं में पंचक्रोश का ज्योतिर्मय शिवलिंग है। लिंग पुराण में भी कहा गया है कि प्राचीन विश्ववेश्वर मंदिर के दक्षिण भाग में जो वापी है, उसका पानी पीने से जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है।

मुस्लिम शासकों ने काशी के अनेक मंदिर तोड़े

पं. कुबेर नाथ सुकुल ने अपनी पुस्तक 'वाराणसी वैभव में लिखा है कि 1585 में नारायण भट्ट द्वारा मंदिर बनवाने के लगभग सौ वर्ष बाद 1669 में औरंगजेब ने पुन: विश्वेश्वर का मंदिर विध्वंसित कर दिया और उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण कराया। उस समय काशी में बिंदुमाधव, कृत्तिवासेश्वर, ओंकारेश्वर, लाटभैरव आदि अनेक मंदिरों और हिंदुओं के धार्मिक स्थलों पर मुस्लिम शासकों के द्वारा विध्वंस किया गया।

पंचक्रोशी परिक्रमा-पांच विकारों से मुक्ति 

बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के संस्कृत व्याकरण विभाग के अध्यक्ष प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार पंचक्रोशी यात्रा 85 किलोमीटर की होती है। पंचक्रोश का अर्थ मन के पांच विकारों- काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद से मुक्ति है। मान्यता है कि पंचक्रोशी परिक्रमा से मन के यह पांचों विकार दूर होते हैं और मनुष्य सद्गुणों की ओर प्रवृत्त होता है।


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