अब गांवों में तैयार होगी ‘पंचवटी’, भगवान राम की पंचवटी को धरातल पर उतारने की तैयारी
अब सीडीआरआई के शोध को प्रदेश सरकार ने धरातल पर उतारने का मन बनाया है। इसके जरिए गांव-गांव पंचवटी स्थापित की जाएंगी ताकि लोगों को जहां स्वच्छ वातावरण मिले।
मऊ, जेएनएन। त्रेता युग में वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, मां सीता व छोटे भाई लक्ष्मण के साथ पंचवटी में कुटी बनाकर रहते थे। तबसे पंचवटी देवतुल्य माना जाता है। रामचरित मानस में यह चरितार्थ है कि पंचवटी से ही लंकेश रावण सीता मां का हरण कर लंका में ले गया था। इस पर सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई) के वैज्ञानिकों ने शोध किया। इसमें पाया कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने वनवास के चौदह वर्षों में निरोग एवं स्वस्थ जीवन व्यतीत किया था। उन्होंने पंचवटी में शामिल पांच वृक्षों पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक पर अलग-अलग शोध किया। अब सीडीआरआई के शोध को प्रदेश सरकार ने धरातल पर उतारने का मन बनाया है। इसके जरिए गांव-गांव पंचवटी स्थापित की जाएंगी ताकि लोगों को जहां स्वच्छ वातावरण मिले और लोग निरोग रहें।
सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई) के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में रामायण की उस पंचवटी को शामिल किया। जहां भगवान श्रीराम ने वनवास के 14 वर्षों में निरोग एवं स्वस्थ जीवन व्यतीत किया था। उन्होंने पंचवटी में शामिल पांच वृक्षों-पीपल, बरगद, आंवला, बेल और अशोक पर अलग-अलग शोध किया। शोध के बाद जो परिणाम आए वे बेहद चौंकाने वाले थे। वैज्ञानिकों ने पाया कि पंचवटी के आसपास रहने से बीमारियों की आशंका कम हो जाती है। शोध दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पंचवटी में लगने वाले पौधों के अपने अलग-अलग लाभ हैं। इन वृक्षों अथवा इनके फलों से न केवल सामान्य से अलग वातावरण तैयार होता है, अपितु उससे मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
इस शोध में पाया गया कि पीपल का एक सामान्य वृक्ष 1800 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से आक्सीजन उत्सर्जित करता है। बरगद का वृक्ष न केवल गर्मी को रोकता है अपितु प्राकृतिक वातानुकूलन का कार्य भी करता है। आंवले में पाया जाने वाला विटामिन "सी" जहां प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सबसे सस्ता उपाय है वहीं बेल का नियमित सेवन लोगों को पेट की बीमारियों से बचाए रखता है। अशोक के वृक्ष का उपयोग महिलाओं की कई बीमारियों से बचाने में किया जाता है। पंचवटी के पांच वृक्षों में से हर एक को लगाने की अलग विधि है। कौन पेड़ किस दिशा में होगा तथा कितनी दूरी पर होगा, इसका भी वैज्ञानिक आधार है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्षभर चलने वाली हवाओं की दिशाएं अलग-अलग होती हैं। पंचवटी में अलग-अलग दिशाओं में लगे इन पौधों से गुजरकर आने वाली मिश्रित हवा आरोग्यवर्द्धक होती है। बीच में स्थापित विश्राम चौकी में यदि बीमारी से तुरंत उठे व्यक्ति को बिठाया जाता है तो यह मिश्रित हवा स्वास्थ्यवर्द्धक रहती है। इन पांचों वृक्षों के पत्ते झड़ने और फल आने का समय भी वर्ष में अलग-अलग है। इसलिए यह वृक्ष वर्ष भर छाया और फल देते रहते हैं।
पंचवटी परियोजना देगी साकार रूप
केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) के वैज्ञानिकों के "पंचवटी" शोध को उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान सरकार ने पंचपटी परियोजना के अंतर्गत विकसित करने का कार्य प्रारंभ कर दिया है। प्रदेश के पर्यावरण मंत्री द्वारा इसे सरकारी स्कूलों में इसे लगाने की योजना तैयार की गई है। इसके साथ ही पुलिस थानों में भी इसके लगाने की की योजना बनाई गई है। इससे जन सामान्य में एक शुभ संदेश जाएगा और वह भी इस ओर आकर्षित होकर "पंचवटी" लगाने की प्रेरणा प्राप्त करेगा। राजस्थान के जालोर जिले के सौ गांवों में पांच सौ पंचवटियां लगाने की योजना बनाई गई है। हरित राजस्थान नामक इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक गांव के पांच कोनों पर पांच-पांच पेड़ लगाए जाएंगे। इनमें पंचवटी के बीच में एक विश्राम चौकी भी होगी। यह सभी पंचवटियां धार्मिक स्थल, विद्यालय, पानी के स्रोतों और सामुदायिक भूमि पर स्थापित होंगी। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्प्रभाव पर चतुर्दिश हो रही गरमा-गरम बहस से अलग, भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा संस्तुत्य यह पंचवटी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए तो हितकर है ही इतनी सस्ती और सुगम है कि हर कोई इसे अपना सकता है।
ऐसे लगेंगे पंचवटी के पौधे
पीपल का पेड़ पूरब दिशा में लगाने पर 1800 किलोग्राम प्रति घंटा की दर से आक्सीजन का उत्सर्जन करता है। बरगद का पेड़ पश्चिम में लगाए जाने पर प्राकृतिक रूप से वातानुकूलन का कार्य अधिक सुचारु रूप से करता है। आंवला दक्षिण दिशा में लगाया जाता है। बेल उत्तर में तथा अशोक दक्षिण-पूर्व में लगाए जाने पर स्वास्थ्यवर्धक सिद्ध होते हैं। पेड़ों के बीच 10 मीटर की दूरी उचित होती है।
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