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पान की खेती बनारस के करीबी जिलों में ही नहीं जमा पा रही रंग, जानिए किसान क्‍यों हैं तंग

लोगों का होठ लाल करने वाले पान के किसान तंगहाली में दिन काटने को अब मजबूर हैं। प्रकृति की मार व रोग के चलते पिछले कई साल से पानी की फसल बर्बाद हो जा रही है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 04:49 PM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 04:49 PM (IST)
पान की खेती बनारस के करीबी जिलों में ही नहीं जमा पा रही रंग, जानिए किसान क्‍यों हैं तंग
पान की खेती बनारस के करीबी जिलों में ही नहीं जमा पा रही रंग, जानिए किसान क्‍यों हैं तंग

जौनपुर, जेएनएन। लोगों का होठ लाल करने वाले पान के किसान तंगहाली में दिन काटने को अब मजबूर हैं। प्रकृति की मार व रोग के चलते पिछले कई साल से पानी की फसल बर्बाद हो जा रही है। मजबूर युवा पीढ़ी पान की खेती से मुंह मोड़कर महानगरों की ओर रुख कर रही है। वैसे तो बनारसी पान दुनिया भर में अपनी पहचान रखता है मगर पान की खेती बनारस के आसपास के जिलों में ही की जाती है। मगर अब लागत के सापेक्ष मुनाफा कम होने की वजह से किसान इससे दूर भी हो रहे हैं। हालांकि कुछ किसान अब भी इससे जुड़े हुए हैं।

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धूप-छांव में पुआल, सरपत, बांस के सहारे बनी पनवाड़ी में किसान पान की खेती करते हैं। बांस के ढांचे पर सरई और पुआल की छत डाली जाती है जबकि दीवारों का निर्माण सरई के द्वारा होता है। महाराजगंज थाना क्षेत्र के कोल्हुआ, उदयभानपुर, बैरमा, इब्राहिमपुर तथा बक्शा विकास खंड के मयंदीपुर, सरायत्रिलोकी, बेदौली गांव में पान की खेती भीटों पर की जाती है। 

पान का पौधरोपण पनवाड़ी की तैयारी फरवरी व मार्च के महीने में किसानो के लिए अधिक श्रमसाध्य होता है। लगभग 500 वर्ग मीटर की पनवाड़ी तैयार करने में 50000 से अधिक की लागत आती है। तैयार पनवाड़ी में पान का पौधा लखनऊ, रीवां और जबलपुर से लाकर किसान पौधे लगाते हैं। इस संबंध में किसानों का कहना है हमें पौधों के लिए कोई सरकारी सहायता एवं बीज अनुसंधान की सुविधा नहीं मिल पाती हैं। किसानों का कहना है पान की जड़ में पानी लग जाने पर पौधा सूख जाता है। ऐसे में पान की खेती ढलानयुक्त भूमि पर की जाती है। पान के पौधे को प्रतिदिन सिंचाई की आवश्यकता होती है। लेकिन शर्त यह है कि पान के पौधों की जड़ों में पानी नहीं लगना चाहिए वरना पौधा सूख जाता है। बारिश प्रारंभ होने पर सिंचाई कम कर दी जाती है और बरसात कम होने पर पौधों की सिंचाई दिन में एक बार करनी पड़ती है। किसान फौजदार चौरसिया ने कहा कि सरकार द्वारा पान की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान दिया जाता था लेकिन तीन साल से इसका लाभ नहीं मिल रहा है। 

पान की किस्में : इस क्षेत्र में देशी, सांची और मटियाली किस्म के पानों की खेती होती है। इन किस्मों की बनारस की मंडी में अच्छी मांग है।

पान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग : पान के पौधों का रोग लाइलाज होता जाता है। बचाव के लिए तक किसी किस्म की रासायनिक दवा इजाद नहीं हो सका है। पौधों में मुख्य रूप से उकठा, टेढवा आदि रोग लगता है। उकठा रोग में पौधा जड़ से सूख जाता है। बरसात के मौसम में इसका प्रकोप होता है। टेढवा रोग से ग्रसित पौधों के पत्ते टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। पौधों का विकास बंद हो जाता है। इसके अलावा पौधों में पत्तों में काला दाग पड़ जाता हैं। फिर देखते ही देखते धीरे-धीरे पौधा सूख जाते हैं।

बोले अधिकारी : प्रदेश सरकार किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए पान की खेती पर पचास प्रतिशत अनुदान दे रही है। इस साल 20 किसानों को लाभ दिया जाना है। पांच सौ वर्ग मीटर खेती में लागत करीब 50 हजार आती है। इसमें 25 हजार रुपये अनुदान के रूप में  पंजीकरण कराने वाले किसानों को प्रथम आवक, प्रथम

पावक के अनुसार दिया जाएगा। - हरि शंकर प्रसाद, जिला उद्यान अधिकारी।


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