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संपूर्णानंद संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय में फर्जीवाड़े के दाग से एक कुलपति मुक्त, दूसरे पर अब भी आंच

संपूर्णानंद संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय में फर्जीवाड़े के दाग को लेकर एक कुलपति मुक्त हो चुके हैं तो दूसरे पर अब भी जांच की आंच है। माना जा रहा है कि जल्‍द ही पूरे मामले की जांच रिपोर्ट आने के बाद विधिक कार्रवाई भी हो सकती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 02 Jul 2022 11:03 AM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2022 11:03 AM (IST)
अभिलेखों में हेराफेरी मामले में अब कार्रवाई की तलवार लटक रही है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में परीक्षा अभिलेखों में हेराफेरी व फर्जी ढंग से सत्यापन करने का प्रकरण में पूर्व कुलसचिव, उप कुलसचिव, सहायक कुलसचिव सहित 19 कर्मचारियों पर दाग लगे थे। वहीं जांच के बाद विशेष अनुसंधान दल (एसआइटी) 16 लोगाें के खिलाफ ही प्राथमिकी दर्ज कराई है।

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वर्तमान में महात्मा गांधी अंतरर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (वर्धा) के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ला व प्रयागराज के प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भईया) विश्वविद्यालय की सहायक कुलसचिव दीप्ति मिश्रा को एसआइटी ने जांच के दायरे से बाहर कर दिया है। जांच रिपोर्ट सौंपने के बाद दोनों ने एसआइटी प्रत्यावेदन देकर कड़ी आपत्ति जताई थी।

प्रत्यावेदन पर एसआइटी ने प्रो. शुक्ला व दीप्ति मिश्रा को कार्रवाई के दायरे से बाहर कर दिया। वहीं एक कार्यकारी कुलसचिव का निधन होने के कारण एसआइटी ने सिर्फ लोगों के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज कराया है। इसमें तत्कालीन कार्यकारी कुलसचिव व वर्तमान में कोल्हान विश्वविद्यालय (झारखंड) के कुलपति प्रो. गंगाधर पंडा का भी नाम हैं। इस प्रकार एक कुलपति फर्जीवाड़े की दाग से मुक्त तो दूसरे अब भी दागी है।

इस संबंध में कोल्हान कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गंगाधर पंडा ने कहा कि एफआइआर के बारे में जानकारी नहीं है। हालांकि, मेरे ऊपर आरोप लगा है कि मैंने विधिक रूप से अपने दायित्व का निर्वाहन नहीं किया। मैं 2009 से 2010 तक संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में कुछ माह के लिए प्रभारी कुलसचिव था। इस संबंध में पूर्व में एसआइटी को अपना लिखित बयान दे चुका हूं। एसआइटी की रिपोर्ट में यह कहीं भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि मेरे द्वारा किन छात्रों के प्रमाण पत्र में गड़बड़ियां की गई हैं। मेरे खिलाफ अगर प्राथमिकी दर्ज हुई है तो इसे अदालत में चुनौती दूंगा।

वर्ष 2004 से 2014 तक बेसिक शिक्षा विभाग के परिषदीय विद्यालय में संस्कृत विश्वविद्यालय के डिग्रीधारक बड़े पैमाने पर अध्यापक पद पर चयनित हुए थे। वहीं विभिन्न जनपदों के डायटों द्वारा अंकपत्रों के सत्यापन रिपोर्ट दो तरह के रिपोर्ट भेज दी है। एक ही अनुक्रमांक के परीक्षार्थी को पहले फर्जी और बाद में प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण दर्शाया गया था। इसे लेकर भ्रम की स्थिति बन गई।

शासन ने इसकी जांच एसआइटी को सौंप दी। एसआइटी तीन साल लगातार जांच के बाद वर्ष 2020 में शासन जांच रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें एसआइटी ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए शासन को सतर्कता विभाग (विजिलेंस) से जांच कराने की भी संस्तुति की थी। एसआइटी की रिपोर्ट पर शासन में विश्वविद्यालय के कुलसचिव से कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। विश्वविद्यालय की ओर कोई कार्रवाई न करने के कारण एसआइटी ने शासन की स्वीकृति के गत दिनों स्वयं लखनऊ में 16 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है।


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