पूर्वाचल के जिलों में होगी जैतून की खेती
वाराणसी : पूर्वाचल के किसानों की आय दोगुना करने के लिए प्रदेश सरकार मंथन कर रही है। इसक
वाराणसी : पूर्वाचल के किसानों की आय दोगुना करने के लिए प्रदेश सरकार मंथन कर रही है। इसके तहत बनारस समेत आसपास के जिलों में जैतून की खेती कराने की तैयारी हो रही है। किसानों को सौ फीसद सब्सिडी देने पर मंथन किया जा रहा है ताकि परंपरागत खेती के साथ ही जैतून की खेती करने के प्रति किसानों की रुझान बढ़े।
तीन दिन पूर्व बनारस आए प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने विभागीय अधिकारियों के साथ इस योजना पर चर्चा की। पूर्वाचल और आसपास के जिलों में जैतून की खेती की संभावनाएं तलाशने के आदेश दिए हैं। मंत्री ने कहा कि पूर्वाचल की मिट्टी जैतून की खेती के लिए उचित मिली तो किसानों के लिए बड़ा लाभकारी होगा। कहना था कि जैतून (ऑलिवद्ध) की खेती के लिए सरकार 100 फीसदी अनुदान देने की तैयारी कर रही है। जैतून के पौधे लगाने वाले किसानों को 48 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर सहायतार्थ अनुदान देय होगा और प्रति कृषक अनुदान दिए जाने के लिए अधिकतम क्षेत्रफल की कोई सीमा नहीं होगी। जैतून की खेती के रखरखाव, खाद, उर्वरक, दवाइया आदि के लिए भी तीन हजार 200 रुपये प्रति हैक्टेयर की दर से 4 वर्ष तक सब्सिडी दी जाएगी।
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कई पीढि़यों के लिए होगी उपयोगी
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जैतून के पौधे की उम्र 700-800 वर्ष तक होती है। ठीक से रखरखाव किया जाए तो कई पीढि़यों के लिए यह उपयोगी है। इसके फल, पत्तियां लकड़ी फर्नीचर के काम आती है। यह पौधे माइनस 7 से लेकर 50 डिग्री के तापमान पर भी खराब नहीं होते।
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जुलाई से सितंबर रोपाई के लिए मुफीद
इसकी रोपाई के लिए जुलाई से सितंबर तक का मौसम ठीक रहता है। इसे ड्रिप सिंचाई से पानी और खाद नियमित मिलते रहना चाहिए। सामान्यता जैतून के पौधों से रोपाई के चौथे वर्ष से फल आना प्रारंभ हो जाता है, जो कि उम्र के साथ पैदावार में वृद्धि होती है।
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फलों में होता है 15.17 फीसद तेल
इसके फलों में 15.17 फीसद तेल की मात्रा होती है जिसका बाजार भाव एक हजार 200 रुपये से एक हजार 800 रुपये प्रति लीटर होता है। यदि औसत पैदावार 10 किलो ग्राम प्रति वृक्ष की दर से हो तो प्रति वर्ष अन्य फलदार बगीचों, फसलों की तुलना में अधिक आय अर्जित की जा सकती है।
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नहीं खाते जानवर
इसके वृक्षों को जंगली जानवर या पालतू पशु नहीं खाते हैं। कोई ज्यादा कीट एवं बीमारी का प्रकोप नहीं होता है। इसकी खेती राजस्थान के जयपुर, झुंझुनू, बीकानेर, श्रीगंगानगर, नागौर, जालौर, अलवर आदि इलाके में की जाती है।
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जैतून के गुण
विशेषज्ञों का कहना है कि जैतून के तेल में एओलिक एसिड, एंटी आक्सीडेंट, विटामिन व फिनोल प्रचुर मात्रा होता है। इसका उपयोग पेट व कैंसर संबंधित रोगों के इलाज में काम आने वाली औषधियां व सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। जैतून का तेल कोलेस्ट्रोल पर भी नियंत्रण करता है। इसलिए दिल संबंधी बीमारियों के इलाज में भी रामबाण माना जाता है।
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जैतून की किस्में : बरेनिया, अरबिकुना, कोरटीना, फिशोलिना, पिकवाल, कोरनियकी व फ्रोटय आदि।