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अपात्रों में लुटा दिए शौचालय : भदोही जिले में मुर्दों को 'इज्जत घर' और जिंदों को 'लोटा'

ऊषा देवी। इन्हें मरे हो गए 15 बरस लेकिन इनका नाम न केवल पात्रों की सूची में दर्ज हुआ बल्कि एक शौचालय बनाकर बता दिया कि दो टॉयलेट बन गए हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 11 Jun 2019 11:13 AM (IST)Updated: Tue, 11 Jun 2019 06:42 PM (IST)
अपात्रों में लुटा दिए शौचालय : भदोही जिले में मुर्दों को 'इज्जत घर' और जिंदों को 'लोटा'
अपात्रों में लुटा दिए शौचालय : भदोही जिले में मुर्दों को 'इज्जत घर' और जिंदों को 'लोटा'

भदोही [संग्राम सिंह] । ऊषा देवी। इन्हें मरे हो गए 15 बरस, लेकिन इनका नाम न केवल पात्रों की सूची में दर्ज हुआ, बल्कि एक शौचालय बनाकर बता दिया कि दो टॉयलेट बन गए हैं। लाभार्थी उषा को बनाया गया लेकिन बकौल पति मंशाराम मौर्य, लागत राशि 12 हजार रुपये उनके खाते में विभाग ने जारी कर दी। घोटाले की सोच की पराकाष्ठा देखिये, सिर्फ मृतक को ही नहीं इज्जत घर आवंटित हुआ बल्कि मंशाराम की भाभी सुनीता पत्नी हरीशचंद्र और उनके भतीजे बंशराज की पत्नी विमला और उनके दो अविवाहित बेटों दयाशंकर व शिव पुत्रगण बंशराज को भी एक-एक शौचालय जारी हो गया। 

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यानी इस परिवार में कुल पांच शौचालय जारी हुए, लेकिन पैसा तीन का ही मिला। जो तीन शौचालय के 36 हजार रुपये मिले हैं, उसे मिलाकर सिर्फ एक शौचालय बनाए गए हैं, बाकी पैसा गायब हैं। इसी तरह इनके पड़ोसी दशरथ मौर्य की पत्नी विमला भी आठ वर्ष पहले गुजर चुकी हैं, लेकिन इन्हें भी शौचालय आवंटित है। दशरथ की पुत्रवधु उर्मिला पत्नी बद्रीनाथ और अविवाहित पोता अनिल पुत्र बद्रीनाथ के नाम भी शौचालय आवंटित कर दिया गया। इस परिवार में भी तीन शौचालय कागज पर आवंटित हैं, लेकिन बने सिर्फ एक हैं। दरअसल मृतकों के यह दोनों किस्से स्वच्छ भारत मिशन के हैं। इन दोनों परिवारों का चूल्हा एक है, लेकिन इतने संख्या में शौचालय आवंटन के बाद पूरे परियोजना पर सवाल खड़े हो गए हैं। इस गांव में करीब 72.60 लाख रुपये की लागत वाले 605 शौचालयों के आवंटन व्यापक पैमाने पर अनियमितता बरती गई है। दोनों किश्तें इन लाभार्थियों के नाम जारी भी कर दी गई हैं। डीएम को शिकायत हुई तो पंचायत राज विभाग ने जांच बैठा दी है। मामला सच भी सामने आया है। जिम्मेदार ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव पर अब कार्रवाई की तलवार लटक रही है। 

वर्ष 2018 में निकला पूरा पैसा, निर्माण 70 फीसद अधूरा

प्रधान और सचिव की मिलीभगत से पूरा पैसा निकल चुका है। कुछ लोगों को बजट सीधे भेजा गया, लेकिन बहुतों का शौचालय बनाने की जिम्मेदारी खुद प्रधान और सचिवों ने संभाली। स्थिति यह है कि अधिकांश शौचालयों के सिर्फ गड्ढे खोदकर छोड़ दिए गए हैं, एक साल बाद भी परिवार लोटा परेड करने को विवश हैं। पंचायत सचिव श्याम सुंदर पांडेय ने बताया कि सूची में जो गड़बड़ी हुई है उसे दिखवाएंगे। वैसे पूरी पारदर्शिता से आवंटन करने की कोशिश हुई है।

गजब! लाभार्थी एक, मगर भुगतान दो

गांव की लाभार्थी सूची में ऐसे करीब 20 नाम हैं जिनके नाम से दो बार पैसा निकल गया है। इसमें विमला, बेबी, गायत्री, रंजना, हरिनाथ, कमलेश, तारा देवी, राकेश गौड़ व शांति देवी आदि हैं। इसी तरह एक ही परिवार के सात लोगों को मिशन का लाभार्थी बना दिया गया, इसमें दुर्गावती, उर्मिला, शकुंतला, माधुरी, बेबी, पूजा व अंकिता शामिल हैं। 

मुझे पता नहीं कि मेरे बेटे व बहू को भी मिला है शौचालय

मंशाराम के भाई हरिश्चंद्र ने बताया कि उन्हें पता नहीं है कि उनकी पुत्रवधु और बेटे के नाम शौचालय आवंटित हुआ है। वे आश्चर्य जता रहे थे कि जब शौचालय पास हुआ तो धनराशि प्रधान और सचिव ने क्यों नहीं दी।

पत्नी भले ही गुजर गईं, लेकिन शौचालय दे गईं

मृतक ऊषा के पति मंशाराम ने बताया कि भले ही पत्नी के मरे लंबा समय हो गया, लेकिन अच्छी बात रही कि वह कम से कम एक शौचालय की व्यवस्था करा गईं। भाई के बजट को मिलाकर एक ही में दो शौचालय बनाए गए हैं।

200 करोड़ से बन चुके डेढ़ लाख शौचालय

वर्ष 2012 से लेकर अब तक करीब 200 करोड़ रुपये की लागत से जिले में करीब डेढ़ लाख शौचालय बन चुके हैं। यह दावा पंचायत राज विभाग का है, वे यह भी कह रहे हैं कि 92 गांवों को छोड़कर हर गांव कागज पर खुले में शौचमुक्त घोषित है। यदि इनकी जमीनी हकीकत देखें तो हर गांव में लोटा पार्टी दिखाई पड़ेगी।

बोले अधिकारी : जांच कराई जा रही है। मामला सामने आया है। गड़बडिय़ां निकली हैं, जिस पर कार्रवाई के लिए फाइल चलाई गई है। बीच में गांव के कुछ लोगों ने नाम लाभार्थी सूची में शामिल न होने की शिकायत की थी, जिसे शामिल करा दिया गया है। अब देखते हैं इस प्रकरण में क्या कार्रवाई हो सकती है। -बालेशधर द्विवेदी, जिला पंचायत राज अधिकारी

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