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Observatory in Varanasi : तीन सदी से खगोलीय घटनाओं की भविष्यवाणी कर रही जयसिंह की वेधशाला

प्राचीन काल में जब आज की तरह आधुनिक उपकरण नहीं होते थे तो ये वेधशालाएं ही ऋषियों-महर्षियों के खगोल ज्ञान का आधार थीं जो आज के नासा युग में भी सटीक हैं। इन्हीं वेधशालाओं में बने यंत्रों से से ग्रहों की गति व स्थिति की गणना की जाती थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 20 Sep 2021 10:23 PM (IST)Updated: Mon, 20 Sep 2021 10:23 PM (IST)
वाराणसी में बनी वेधशाला में छह प्रधान यंत्र बनाए गए हैं।

वाराणसी, शैलेश अस्थाना। दिल्ली व जयपुर के प्रसिद्ध जंतर-मंतर की तरह ही अपनी काशी में भी एक वेधशाला स्थित है। यह है दशाश्वमेध घाट के बगल में राजा मानसिंह द्वारा सन 1600 ईस्वी में बनवाए गए मान-मंदिर की छत पर। बेशक, यह दिल्ली, जयपुर, उज्जैन में बनी वेधशालाओं से छोटी है परंतु लगभग तीन सदियों से यह खगोलीय घटनाओं और ज्योतिषीय गणनाओं की सटीक भविष्यवाणी करती आ रही है। इन चार के अलावा मथुरा में भी एक वेधशाला कंस महल के पास थी, जो 1850 के आसपास ही नष्ट हो गई थी। देश के विभिन्न क्षेत्रों में इन पांचों वेधशालाओं का निर्माण कराने वाले थे आमेर के महान विद्वान राजा जयसिंह द्वितीय। आज ही के दिन 21 सितंबर 1743 ईस्वी में 55 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हुआ था।

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महाराजा सवाई जयसिंह या जयसिंह राजस्थान प्रांत के राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। उनका जन्म 03 नवंबर 1688 को आमेर के महल में राजा बिशनसिंह की राठौड़ रानी इंद्रकुंवरी के गर्भ से हुआ था। पिता की मृत्यु के बाद महज 11 वर्ष की आयु में ही 25 जनवरी 1700 में वह गद्दी पर बैठे। वह एक महान सेनापति ही नहीं, सुप्रसिद्ध खगोल विज्ञानी, गणितज्ञ, ज्योतिषी और अनेक भाषाओं के जानकार थे। भारतीय ज्योतिष और गणित के अलावा उन्हाेंने अनेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का अध्ययन किया था। उन्होंने 1727 में खगोलशास्त्र से संबंधित अधिक जानकारियां और तथ्य तलाशने के लिए एक दल यूरोप भी भेजा था। ग्रहों-नक्षत्रों की गति, स्थिति और खगोलीय घटनाओं की सटीक स्थिति के विश्लेषण तथा ज्योतिषीय गणनाओं के लिए उन्होंने पूरे देश में पांच जंतर-मंतर यानि यंत्र-मंत्र वेधशालाओं का निर्माण कराया था।

वेधशालाएं ही थीं प्राचीन खगोल विज्ञान का आधार

काशी के प्रख्यात ज्योतिर्विद पंडित ऋषि द्विवेदी बताते हैं कि प्राचीन काल में जब आज की तरह आधुनिक उपकरण नहीं होते थे तो ये वेधशालाएं ही ऋषियों-महर्षियों के खगोल ज्ञान का आधार थीं जो आज के नासा युग में भी सटीक हैं। इन्हीं वेधशालाओं में बने यंत्रों से से सूर्य-चंद्र व अन्य ग्रहों की गति व स्थिति की गणना की जाती थी।

सवाई राजा जयसिंह द्वारा बनवाए गई वेधशालाएं

जंतर-मंतर, नई दिल्ली (सन् 1724),

जंतर मंतर, उज्जैन (सन् 1733 ई.),

वेधशाला जंतर-मंतर वाराणसी (सन् 1734 ई.),

वेधशाला मथुरा (सन 1735-36 ईस्वी),

जंतर-मंतर जयपुर (सन 1738 ईस्वी)

काशी की वेधशाला के यंत्र

वाराणसी में बनी वेधशाला दिल्ली, उज्जैन व जयपुर से छोटी है। इसमें मात्र छह प्रधान यंत्र ही बनाए गए हैं।

-सम्राट यंत्र : इस यंत्र द्वारा ग्रह-नक्षत्रों की क्रांति विषुवांस, समय आदि का ज्ञान होता है।

-लघु सम्राट यंत्र : इस यंत्र से भी ग्रह-नक्षत्रों की क्रांति विषुवांस, समय आदि का ज्ञान होता है।

-दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र : इस यंत्र से मध्याह्न के उन्नतांश मापे जाते हैं।

-चक्र यंत्र : यह यंत्र नक्षत्रादिकों की क्रांति स्पष्ट विषुवत काल की जानकारी के लिए बनाया गया है।

-दिगंश यंत्र : इस यंत्र के माध्यम से नक्षत्रादिकों दिगंश का पता किया जाता है।

-नाड़ी वलय दक्षिण और उत्तर गोल : सूर्य तथा अन्य ग्रह उत्तर या दक्षिण किस गोलार्ध में हैं, इस यंत्र से यह ज्ञात किया जाता है।


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