अब ब्लैक राइस का नाम होगा चंदौली का काला चावल, जीआइ के लिए पहल
ब्लैक राइस अब चंदौली के काला चावल नाम से जाना जाएगा। जिला प्रशासन ने धान के कटोरे में पैदा हुए चावल की ब्रांडिंग के लिए पहल की है।
चंदौली, जेएनएन। ब्लैक राइस अब चंदौली के काला चावल नाम से जाना जाएगा। जिला प्रशासन ने धान के कटोरे में पैदा हुए चावल की ब्रांडिंग के लिए पहल की है। जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल ने इसको लेकर बुधवार को पद्मश्री से नवाजे गए प्रसिद्ध विशेषज्ञ डा. रजनीकांत संग वार्ता की। इस दौरान कृषि समेत अन्य उत्पादों को देश में अलग पहचान दिलाने को लेकर चर्चा की। ताकि कृषि प्रधान जनपद विशेष औद्योगिक उत्पादन के लिए भी जाना जाए।इस दिशा में पहल भी शुरू की गई है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की सलाह पर जनपद में नागालैंड के चाकहाउ धान (काला चावल) की खेती गत एक वर्ष से कराई जा रही है। औषधीय गुणों से भरपूर चावल की खेती को लेकर जिले के किसानों में रुझान बढ़ता जा रहा है। कृषि विभाग ने इस दफा इसकी खेती का रकबा बढ़ाने का भी फैसला किया है। जिला प्रशासन ने जिले की सोना उगलने वाली उपजाऊ मिट्टी में पैदा हुए चावल की ब्रांङ्क्षडग की योजना बनाई है। इसको लेकर विशेषज्ञ डा. रजनीकांत से सलाह मशविरा किया गया। ब्लैक राइस के साथ ही जिले के किसी प्राचीन उत्पादन को भी अलग पहचान दिलाने पर विचार किया गया। हालांकि ब्लैक राइस का नाम चंदौली का काला चावल रखने पर सहमति बनी। वहीं उद्योग उपायुक्त को प्राचीन उत्पाद ढूंढऩे की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वाराणसी के 11 उत्पादों को भौगोलिक संकेतक दिला चुके हैं। ऐसे में जिला प्रशासन को उनसे काफी उम्मीदें हैं। वे उद्योग व कृषि विभाग को ब्रांडिंग के बारे में समय-समय पर सलाह देते रहेंगे।
क्या है भौगोलिक संकेतक : बनारसी साड़ी, मथुरा का पेड़ा, आगरा का पेठा पूरे देश में अपनी अलग पहचान के लिए प्रसिद्ध है। इन उत्पादों को स्थान विशेष के जोड़कर देखा जाता है। इसको ही उत्पादों का भौगोलिक संकेतक कहा जाता है। इसी प्रकार चंदौली का काला चावल भी अपनी अलग पहचान बनाएगा।