अर्हता नहीं, फिर भी बन गए शास्त्री
जागरण संवाददाता, वाराणसी : अर्हता न होने के बावजूद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से कई छात्र
जागरण संवाददाता, वाराणसी : अर्हता न होने के बावजूद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से कई छात्र शास्त्री-आचार्य की उपाधि हासिल करने में सफल हो गए हैं। हालांकि यह प्रकरण विश्वविद्यालय प्रशासन के संज्ञान में है। चिह्नित कर ऐसे छात्रों की उपाधि निरस्त करने की कार्रवाई भी की जा रही है।
इसी प्रकार कानपुर के संबद्ध कालेज के एक छात्र की उपाधि पर भी सवाल उठ रहा है। इस छात्र का इंटरमीडिएट स्तर पर संस्कृत में महज 40 अंक हैं जबकि नियमानुसार शास्त्री में दाखिले के लिए इंटर में संस्कृत विषय में कम से कम 45 फीसद अंक अनिवार्य है। बावजूद संबंधित छात्र वर्ष 2002 में संबद्ध कालेज में दाखिला पाने में सफल रहा। दाखिले के आधार पर संबंधित विद्यार्थी को शास्त्री की उपाधि भी मिल गई है। शिकायत के बाद इस प्रकरण की व्यापक स्तर पर हुई छानबीन में आरोप सही पाया गया। इस छात्र की उपाधि निरस्त करने के लिए विश्वविद्यालय विधिक राय भी ले चुका है। विधिक की संस्तुति पर विचार करने के लिए कुलपति प्रो. यदुनाथ दुबे की अध्यक्षता में शुक्रवार को परीक्षा समिति की बैठक भी बुलाई गई थी। फिलहाल परीक्षा समिति में उपाधि निरस्त करने की सहमति नहीं बन सकी। सदस्यों का मनाना है कि परीक्षा फार्म में दो राइटिंग है। लिहाजा दोनों राइटिंग का पहले मिलान करना जरूरी है। ताकि इस बात का पता लगाया जा सके। यह गलती किस तरह हुई। इसके बाद भी कोई निर्णय लिया जाए। इस क्रम में संबंधित छात्र व प्रधानाचार्य की राइटिंग मिलान कराने के लिए विशेषज्ञ की सहायता लेने की सहमति बनी। बहरहाल यह प्रकरण पिछले छह माह से लंबित है। परीक्षा समिति निर्णय लेने में हीलाहवाली कर रहा है। उधर विश्वविद्यालय में इस तरह के और प्रकरण होने की संभावना जताई जा रही है। बैठक में परीक्षा नियंत्रक प्रो. राजनाथ, प्रो. पीएन सिंह, प्रो. हरि प्रसाद अधिकारी, प्रो. हर प्रसाद दीक्षित, प्रो. आशुतोष मिश्र सहित अन्य सदस्य शामिल थे।