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    नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती : आजाद हिंद बैंक द्वारा जारी करेंसी को मिली थी कई देशों की मान्‍यता

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Thu, 23 Jan 2020 11:41 AM (IST)

    वैसे तो आजाद हिंद फौज के सेनापति नेताजी सुभाष चंद्र बोस के स्मरण मात्र ही सात समंदर पार विलायत में बैठे गौरांग महाप्रभुओं का डेलेरियम डेवलप (संन्निपात ...और पढ़ें

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    नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती : आजाद हिंद बैंक द्वारा जारी करेंसी को मिली थी कई देशों की मान्‍यता

    वाराणसी [कुमार अजय]। वैसे तो आजाद हिंद फौज के सेनापति नेताजी सुभाष चंद्र बोस के स्मरण मात्र ही सात समंदर पार विलायत में बैठे गौरांग महाप्रभुओं का डेलेरियम डेवलप (संन्निपात की स्थिति) कर जाता था। बेचैनी तब और भी बढ़ जाती थी जब नामुराद बे-तार के तार का खटका समय- कुसमय हिंदुस्तानी फौज के किसी न किसी पराक्रमी कारनामे की बुरी खबर सुनाने को बेलगाम घनघनाए जाता था। 

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    वर्ष 1943 की सर्दियों की एक ऐसी ही शाम...लंदन की।  बरतानवी अफसरों के हंसी ठठ्ठों से गुलजार रॉयल क्लब ठीक इसी वक्त बे-तार का तार एक बार फिर खड़का और आई एक और तमाचा मार खबर अंग्रेजों के लिए कि चौकियां फतह करते लगातार इंफाल की तरफ बढ़ रही आजाद हिंद फौज के नायक सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों की नाक में दम करते हुए आजाद हिंद बैैंक की मुहर लगी सिक्के और नोटों की करेंसी जारी कर दी। जैसा कि तय था इस धमाकेदार खबर ने गोरे सत्ताशाहों व उनके अफसरों की तबीयत भारी कर दी। 

    काशीवासियों के लिए महत्वपूर्ण तथ्य यह कि इस ऐतिहासिक घटना की गवाहियों के दस्तावेज रूप में नेताजी का हस्ताक्षर अंकित गहरे प्याजी रंग में छपा इसी करेंसी का एक हजारा नोट अब भी बीएचयू स्थित भारत कला भवन की दीर्घा में टंका हुआ हमारे अतीत की गौरव गाथा सुना रहा है। दुर्धष योद्धा सुभाष चंद्र बोस के पराक्रम की फिर से याद दिला रहा है। 

    भारत कला भवन के निदेशक प्रो. अजय कुमार सिंह बताते हैैं कि इस ऐतिहासिक मौके पर नेताजी ने पांच रुपये के सिक्कों सहित दस, सौ, एक हजार और दस हजार के अलावा लक्खा नोट की भी करेंसी चलवाई। उन्होंने इस एक क्रांतिकारी कदम से आजादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की मजबूती भी बताई। अंतरराष्ट्रीय जगत में सुभाष के फैसले ने न केवल ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ वैश्विक जनमत बनाया अपितु दुनिया के दस देशों ने इस इंकलाबी मुद्रा को मान्यता देकर एक तरह से भारत के स्वतंत्रता के प्रति अपना खुला समर्थन भी जताया। 

    नेताजी की जयंती पर उनकी तस्वीर के साथ इस धरोहरी नोट पर अंकित वाक्य... आइ प्रॉमिस टू पे सम आफ रूपीज... पर नजर टिकने के बाद उनकी अमोघ वाणी का एक-एक शब्द आज भी मानो संपुट मंत्र की तरह कानों में उतरता चला जाता है। अब भी उतनी ही ऊर्जा के प्रवाह से धमनियों का रक्त संचार बढ़ा जाता है। बुजुर्गवार नागरिक व अवकाश प्राप्त अधिकारी बीके तिवारी बताते हैैं कि आजाद करेंसी जारी किए जाने के कुछ माह पूर्व रंगून के प्रवासी भारतीयों ने बाकायदा तुलादान का अनुष्ठान रचाकर अपने वीर सपूत को 27 बोरियों में भरे सोने-चांदी के आभूषणों से तोलकर श्रद्धाभाव जताया था। कहा जाता है कि आजाद हिंद रेडियो व अखबार के साथ भारतीय मुद्रा के चलन से अंग्रजों को उनकी औकात बताने का यह आइडिया नेताजी को तुलादान अनुष्ठान से ही आया था। 

    इन देशों ने दी आजाद मुद्रा को मान्यता

    आजाद हिंद बैैंक द्वारा जारी नेताजी को फोटो, आजाद हिंद बैैंक के लोगो तथा उनके दस्तखत से जारी इस करेंसी को अंतरराष्ट्रीय मान्यता देकर जिन देशों ने नेताजी के प्रति समर्थन जताया, उनका हौसला बढ़ाया। उनमें जापान के अलावा बर्मा (आज का म्यांमार), क्रोएशिया, जर्मनी, नानकिंग (आज का चीन), मंचुका, इटली, थाईलैैंड, फिलीपींस व आयरलैैंड जैसे छोटे-बड़े देश शामिल थे।