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Netaji Subhash Chandra Bose Birth Anniversary : जाति, धर्म, लिंग के भेद को मिटा रहा काशी स्थित सुभाष मंदिर

Netaji Subhash Chandra Bose Birth Anniversary काशी के लमही स्थित इंद्रेश नगर में 23 जनवरी 2020 को स्थापित विश्व के पहले सुभाष मंदिर की परिकल्पना एवं स्थापना विशाल भारत संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष एवं बीएचयू में इतिहास के प्रोफेसर डा. राजीव श्रीवास्तव ने की थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 12:20 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 12:20 AM (IST)
काशी के लमही स्थित इंद्रेश नगर में सुभाष मंदिर में आरती करतीं पुजारी खुशी रमन भारतवंशी।

वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। दुनिया भर के भारतवंशियों और सुभाषवादियों के अराध्य नेताजी सुभाष चंद्र बोस महापुरुषों से इतर रूहानी रुतबा भी रखते हैं। इन्हें सिर्फ जन्मदिवस पर याद नहीं किया जाता, बल्कि मंदिरों के शहर काशी में राष्ट्रदेवता के रूप में रोज इनकी पूजा भी की जाती है। काशी के लमही स्थित इंद्रेश नगर में 23 जनवरी 2020 को स्थापित विश्व के पहले सुभाष मंदिर की परिकल्पना एवं स्थापना विशाल भारत संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष एवं बीएचयू में इतिहास के प्रोफेसर डा. राजीव श्रीवास्तव ने की थी। इसका उद्देश्य छुआछूत, धर्म, जाति, रंग, लिंग, भाषा आदि के भेद को खत्म करना, सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देना और देशभक्ति का पाठ पढ़ाना था। दुनिया के 15 देशों के सुभाषवादियों ने सुभाष मंदिर में आस्था जताई। मंदिर का लोकार्पण करते हुए समाज सुधारक इंद्रेश कुमार ने नेताजी को राष्ट्र की रक्षा करने वाला राष्ट्रदेवता बताया था। खास बात यह कि दलित महिला को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया गया है। मंदिर का द्वार महिला, पुरुष, किन्नर सभी के लिए खुला रहता है।  

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सुभाष मंदिर में प्रयुक्त रंगों का दर्शन

सुभाष मंदिर की ऊंचाई 11 फीट है। सीढिय़ां लाल और आधार चबूतरा सफेद है। प्रतिमा काले रंग की है और छत्र स्वर्ण के रंग का है। लाल रंग अर्थात क्रांति का रंग, क्रांति की सीढिय़ों पर चढ़कर ही सफेद रंग का आधार अर्थात शांति का आधार तैयार किया जा सकता है। शांति के आधार पर ही शक्ति की पूजा होती है। मूर्ति काले ग्रेनाइट की बनी है। काला रंग शक्ति का प्रतीक है, शक्ति की पूजा से सकारात्मक ऊर्जा (सुनहरा छत्र) निकलती है। सुभाष मंदिर क्रांति, शांति, शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा के आध्यात्मिक दर्शन के आधार पर बनाया गया है।

भारत मां की प्रार्थना की पंक्तियां मंदिर के लिए उपयुक्त:   

        जाति धर्म या संप्रदाय का, नहीं भेद व्यवधान यहां।

        सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम सम्मान यहां।

        सब तीर्थों का एक तीर्थ यह, हृदय पवित्र बना लें हम।

        आओ यहां अजातशत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम।

प्रार्थना और आरती

सुभाष मंदिर सुबह सात बजे भारत माता की प्रार्थना के साथ खुलता है और शाम सात बजे देश की पहली आजाद हिंद सरकार का राष्ट्रगान गाया जाता है। इसके बाद पांच बार राष्ट्रदेवता को जय हिंद के साथ सलामी दी जाती है और महाआरती होती है।

पुजारी का लेते हैं आर्शीवाद

आरती के बाद पुजारी खुशी रमन भारतवंशी का पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। राष्ट्रदेवता के साथ ही मंदिर के संस्थापक को दंडवत प्रणाम कर आरती और प्रसाद वितरण के बाद मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है।

दाल-चावल, रोटी-सब्जी का लगता है भोग

मंदिर में प्रतिदिन सुबह दाल, चावल, रोटी, सब्जी और शाम को चना, लाचीदाना, बताशा, तुलसी  पत्ता और गंगाजल का भोग लगाया जाता है। हवन, पूजा, यज्ञ, रूद्राभिषेक करते समय नाम एवं गोत्र के साथ राष्ट्रदेवता का भी आह्वान किया जाता है।

मन्नतों का धागा बांधती हैं महिलाएं

गर्भवती महिलाएं अपनी संतान को देशभक्त बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रदेवता सुभाष का दर्शन करती हैं। यहां मन्नतों का धागा बांधती हैं। फिलहाल सुभाष मंदिर को सुभाष तीर्थ के रूप में विकसित करने की योजना पर काम चल रहा है।


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