एनबीएआइएम के विज्ञानियों ने सूक्ष्मजीवों के मिश्रण से बनाया डाई-यूरिया का विकल्प बायो-एनपीके
रासायनिक खादों से पीछा छुड़ाना आसान हो गया है। उपज में भी कोई कमी नहीं आएगी और रसायनों के प्रभाव से मर रही मिट्टी को ताकत भी मिलेगी। साथ ही लागत की समस्या का भी निदान। यानि कम लागत में भरपूर उत्पादन।
मऊ [शैलेश अस्थाना]। लीजिए, रासायनिक खादों से पीछा छुड़ाना आसान हो गया है। उपज में भी कोई कमी नहीं आएगी और रसायनों के प्रभाव से मर रही मिट्टी को ताकत भी मिलेगी। साथ ही लागत की समस्या का भी निदान। यानि कम लागत में भरपूर उत्पादन। आय दोगुनी कराने के लिए बिलकुल मुफीद है बायो-एनपीके। राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो के विज्ञानियों का यह अनुसंधान एक साथ कई समस्याओं के हल कर मिट्टी की सेहत को वापस प्राकृतिक रूप देता है।
कैसे करता है काम
इस फार्मूले के अनुसंधानकर्ता ब्यूरो के निदेशक डा. एके सक्सेना बताते हैं कि बायो-एनपीके कोई खाद नहीं, बल्कि तीन ऐसे सूक्ष्मजीवों का मिश्रण जो मिट्टी में दबे फास्फोरस को फास्फेट में बदलकर, पोटाश को घुलनशील बनाकर, हवा में घुली नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलकर पौधों की जड़ों तक पहुंचा देते हैं। आम तौर पर किसान यह नहीं जानता कि उसके खेत की मिट्टी में कौन सा तत्व कितनी मात्रा में है और फसल को कितनी जरूरत है। ऐसे में बिना मृदा परीक्षण कराए अब तक अंधाधुंध डाई-यूरिया आपने खेतों में डाला है। उसका एक बड़ा हिस्सा जमीन में परत दर परत बैठ गया है। जो फसल के किसी काम का नहीं है और मिट्टी को भी नुकसान पहुंचा रहा है। फिर भी साल-दर-साल खेत में रासायनिक खाद डालते जाते हैं। अब सूक्ष्मजीवों का यह मिश्रण मिट्टी के इस रिजर्व बैंक से आपका अपना पैसा वसूल करा देता है।
कब और कैसे करें प्रयोग
बीज शोधन या नर्सरी रोपाई के पूर्व ही एक एकड़ खेत के लिए इन सूक्ष्मजीवों के 100 मिलीग्राम मिश्रण को दो लीटर पानी में मिला दिया जाता है। बीज या नर्सरी के पौधों की जड़ों से ठीक से चिपकने के लिए इसमें दो चम्मच गुड़ डाल देते हैं। मिश्रण पूरे बीज में समान रूप से मिलाकर 15-20 मिनट छोड़ देते हैं। बाद में उसकी बोआई कर देते हैं। किसान को एक एकड़ के लिए महज 50 रुपये खर्च करने हैं और डाई-यूरिया को 25 से 30 फीसद तक कम डालना है। यह अनाज, दलहन, तिलहन, बागवानी, सब्जी सबके लिए उपयोगी है।
बोले विज्ञानी
ये सूक्ष्मजीव मिट्टी में साल-दर-साल अपनी जमात बढ़ाते जाते हैं। अगर इसके साथ गोबर या केंचुआ या हरी खाद का प्रयोग करते चलें तो यानि तीन-चार वर्षों तक इसके प्रयोग से खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से उर्वरक तत्वों की कमी स्वत: पूरी हो जाएगी और रासायनिक खाद से मुक्ति मिल जाएगी। -डा.एके सक्सेना, निदेशक, राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो, कुशमौर, मऊ।