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चैत्र नवरात्र 2021 : नवरात्र पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजन की परंपरा, पूजन सामग्री और जानें विधि

ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से हिंदू धर्म के नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है। इसे भारतीय संवत्सर भी कहते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्म जी ने सृष्टि की रचना की थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 05 Apr 2021 01:55 PM (IST)Updated: Mon, 05 Apr 2021 01:55 PM (IST)
ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से हिंदू धर्म के नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है।

वाराणसी जेएनएन। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से हिंदू धर्म के नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है। इसे भारतीय संवत्सर भी कहते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। नव वर्ष के प्रारंभ में नौ दिन के बाद चैत्र नवरात्र कहलाता है। नवरात्र के पावन पर्व पर जगत जननी मां जगदंबा दुर्गा जी की पूजा अर्चना की विशेष महत्ता मानी गई है।

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वासंती नवरात्र में भगवती की आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। वर्ष में चार नवरात्र माने गए हैं। दो गुप्त नवरात्र माह के शुक्ल पक्ष और दो प्रत्यक्ष नवरात्र चैत्र और आश्विन के शुक्लपक्ष माने गए हैं। वसंत ऋतु में दुर्गा जी की पूजा आराधना से जीवन के सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है। शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा लक्ष्मी एवं सरस्वती की विशेष पूजा आराधना फलदाई मानी गई है। मां दुर्गा का नौ गौरी के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना से सुख समृद्धि खुशहाली मिलती है। भगवती की प्रसन्नता के लिए शुभ संकल्प के साथ नवरात्र के शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके व्रत या उपवास रखकर श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ हुआ मंत्र का जप करना विशेष लाभकारी माना गया है।

मां जगदंबा की आराधना का विधान : मां जगदंबा के नियमित पूजा में सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि इस बार नवरात्र 13 अप्रैल मंगलवार से 21 अप्रैल बुधवार तक रहेगा। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 12 अप्रैल सोमवार को सुबह 8:01 पर लगेगी जो कि 13 अप्रैल मंगलवार को सुबह 10:17 तक रहेगी। उदया मान के अनुसार 13 अप्रैल मंगलवार को प्रतिपदा तिथि रहेगी। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 13 अप्रैल मंगलवार सुबह 10:17 तक रहेगा कलश स्थापना के लिए कलश लोहा या स्टील का नहीं होना चाहिए। शुद्ध मिट्टी के कलश में जौौ के दाने बाेए जाने चाहिए।

मां जगदंबा को लाल चुनरी, ऋतुफल, फूल की माला, नारियल, मेवा मिष्ठान आदि अर्पित करके शुद्ध देसी घी का दीपक जलाना चाहिए। दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं मंत्र का जप करके आरती करनी चाहिए। मां जगदंबा के लिए व्रत रखना परंपरा व धार्मिक विधान के अनुसार पूजा करना शुभ फलदाई माना गया है।

मां गौरी के नौ स्वरूप : वासंती नवरात्र में नव गौरी के दर्शन पूजन के क्रम में प्रथम मुख्य निर्मालिका गौरी, द्वितीय जेष्ठा गौरी, तृतीय सौभाग्य गौरी, चतुर्थ सुंदर गौरी, पंचम विशालाक्षी गौरी, छठवीं ललिता गौरी, सप्तम भवानी गौरी, अष्टम मंगला गौरी और नवम सिद्धि महालक्ष्मी गौरी मानी गई हैंं। नवरात्र में जगत जननी मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व माना गया है। प्रथमं शैलपुत्री, द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चंद्रघंटा, चतुर्थ कूष्मांडा देवी, पंचम स्कंदमाता, षष्टम कात्‍यायनी, सप्तम कालरात्रि, अष्टम महागौरी एवं नवम सिद्धिदात्री। काशी में नवदुर्गा एवं नवगौरी के मंदिर प्रतिष्ठित हैंं। जहां भक्तगण अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए नवरात्र में विशेष दर्शन पूजन करके लाभान्वित होते हैं। 

आचार्य विमल जैन के अनुसार व्रत करता को अपनी दिनचर्या नियमित व संयमित रखनी चाहिए। परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र भोजन अथवा कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्यर्थ के कार्यों व वार्तालाप से बचना चाहिए। नित्य प्रतिदिन सुरक्षा धुले हुए वस्त्र धारण करनी चाहिए। व्रत करता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। मां जगदंबा का के समक्ष शुद्ध देसी घी का अखंड दीप प्रज्वलित करके आराधना करना शुभ फलदायक माना गया है। नवरात्र में यथासंभव रात्रि जागरण करना चाहिए। माता जगत जननी की प्रसन्नता के लिए सरस्वती प्रदायक सरल मंत्र 'ओम एं ह्रीं क्लीं चामुंडाए विच्चे' का जाप अधिकतम संख्या में नित्य करना लाभकारी रहता है। नवरात्रि के पावन पर्व पर मां दुर्गा की पूजा अर्चना करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

नवदुर्गा को नौ दिन क्या क्या करें अर्पित : नवरात्र में नव दुर्गा को अलग-अलग 30 के अनुसार उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित करने का महत्व माना गया है। प्रथम दिन प्रतिपदा उड़द-हल्दी-माला-फूल, द्वितीय दिन तेल-शक्कर चूड़ी-गुलाल-शहद तीसरे दिन लाल वस्त्र-शहद-खीर- काजल चौथे दिन दही-फल-सिंदूर, पांचवे दिन दूध-मेवा-कमल-पुष्प-बिंदी, छठवें दिन चुनरी-पताका- दूर्वा, सातवें दिन बताशा-इत्र-फल-पुष्प, आठवें दिन पूरी-पीली मिठाई-कमलगट्टा-चंदन-वस्त्र, नवें दिन खीर-सुहाग-सामग्री-साबूदाना-अक्षत -फल बताशा आदि अर्पित करना चाहिए। 


दुर्गा सप्तशती का पाठ : दुर्गा सप्तशती के एक पाठ से फल सिद्धि, तीन पाठ से उपद्रव शांति, पांचपाठ से सर्व शांति, सात पाठ से भय से मुक्ति, 9 पाठ से यज्ञ के समान फल की प्राप्ति, 11 पाठ से राज्य की प्राप्ति, 12 पाठ से कार्य सिद्धि, 14 पाठ से वशीकरण, 15 पाठ से सुख संपत्ति, 16 पाठ से धन व पुत्र की प्राप्ति, 17 पाठ से शत्रु तथा रोग से मुक्ति, अट्ठारह पाठ से प्रिय की प्राप्ति, 20 पाठ से ग्रह दोष शांति और 25 पाठ से बंधन से मुक्ति माना गया है। नियम पूर्वक व्रत रहकर आराधना करने की धार्मिक मान्यता है। नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात व्रत की समाप्ति पर हवन आदि करके निमंत्रित की हुई कुमारी कन्याओं एवं बटुकों का पूर्ण आस्था व श्रद्धा भक्ति के साथ शुद्ध जल से चरण धोकर पूजन करने के बाद उनको पौष्टिक और उस पर भोजन करवाना चाहिए इसके पश्चात नए वस्त्र, ऋतु फल, मिष्ठान, नगद द्रव्य आदि देकर चरण स्पर्श करके उससे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए जिससे माता भगवती की कृपा बनी रहे।

विमल जैन के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की अष्टमी तिथि 19 अप्रैल सोमवार को 24:00 12:02 पर लगेगी जो अगले दिन 20 अप्रैल मंगलवार को अर्धरात्रि के बाद 12:44 तक रहेगी तत्पश्चात नवमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी। अष्टमी तिथि का हवन, कुमारी पूजन, महानिशा पूजा 20 अप्रैल मंगलवार को ही संपन्न होगी। उदया तिथि के अनुसार 20 अप्रैल मंगलवार को अष्टमी तिथि का मान रहने से महा अष्टमी दुर्गा अष्टमी का व्रत रखा जाएगा। नवरात्रि व्रत का पारण दशमी तिथि को विधि विधान पूर्वक किया जाएगा। नवरात्र में धार्मिक अनुष्ठान में कुमारी कन्याओं की विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना करना लाभकारी माना गया है। कुमारी कन्याओं की महाकाली महालक्ष्मी महालक्ष्मी एवं महा सरस्वती देवी का स्वरूप माना गया है। 


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