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काशी में नवरात्र : देवी की अगवानी में ढाक के डंके से गूंजा शहर, शाम ढलते ही रोशनी से नहा उठीं सड़कें-गलियां

शक्ति की अधिष्ठात्री देवी जगदम्बा भगवती दुर्गा की आराधना-उपासना का पर्व शुक्रवार को पूरे रंग में आ गया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 09:09 AM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 09:09 AM (IST)
काशी में नवरात्र : देवी की अगवानी में ढाक के डंके से गूंजा शहर, शाम ढलते ही रोशनी से नहा उठीं सड़कें-गलियां

वाराणसी, जेएनएन। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी जगदम्बा भगवती दुर्गा की आराधना-उपासना का पर्व शुक्रवार को पूरे रंग में आ गया। इसका श्रीगणेश तो आधा दर्जन पूजा मंडपों में प्रतिपदा को ही हो गया था लेकिन शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि को शहर से गांव तक सभी पूजा मंडपों में मां दुर्गा सपरिवार प्रतिष्ठापित हुईं। खास तौर पर बंगीय समाज के पूजा मंडपों में प्रतिमाओं के पहुंचते ही दोपहर बाद पुरोहितों ने विधि-विधान से आमंत्रण व अधिवास कराया। इसके साथ ही गली- मोहल्ले ढाक के डंके से गूंज उठे। सूर्यदेव के विश्राम को जाते ही विद्युत झालरों के रूप में एक साथ लाखो-लाख प्रकाश पुंज खिले। रोशनी से सड़कें-गलियां नहाईं और साज सज्जा के रूप में शक्ति आराधन पर्व के इंद्रधनुषी रंग बिखर आए। 

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पुूजा मंडपों में प्रतिमाओं के ले जाने का क्रम तो देर रात से ही शुरू हो गया था लेकिन भेलूपुर, देवनाथपुरा, पांडेयहवेली, सोनारपुरा क्षेत्र के शिल्पकारों के द्वार सुबह तक पूजनोत्सव आयोजकों की कतार लगी रही। कारीगरों की कार्यशालाओं से ट्रैक्टर- ट्रक-ट्राली तक पर प्रतिमाएं सहेजी जाती रहीं और गंतव्य का रास्ता पाती रहीं। देवी की अगवानी में ढाक के डंके, ढोल-नगाड़े की थाप से एकाकार होती जयकार के बीच फूटते रहे जज्बात। प्राण प्रतिष्ठा के पूजन अनुष्ठान के साथ सांस्कृतिक आयोजनों ने भी माहौल में भक्ति गंगा को एकाकार किया। प्रीमियर ब्वायज क्लब हथुआ मार्केट, वाराणसी दुर्गोत्सव समिति पांडेय हवेली, काशी दुर्गोत्सव समिति शिवाला, जिम स्पोर्टिंग भेलूपुर, गोल्डेन स्पोर्टिंग क्लब देवनाथपुरा, प्रभात तरुण संघ हरिश्चंद्र घाट, शारदोत्सव संघ भेलूपुर, वाराणसी यूथ क्लब सोनारपुरा, ईगल क्लब जंगमबाड़ी, यंग ब्वायज क्लब गिरजाघर, रामकृष्ण अद्वैत आश्रम लक्सा, भारत सेवाश्रम संघ सिगरा, हर सुंदरी धर्मशाला गिरजाघर, अकाल बोधन (लक्सा), बीएचयू मधुवन समेत शहर से लेकर गांव तक पूजा मंडपों में प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान किए गए।

इसके साथ ही समितियों की ओर से देर रात तक पंडालों की साज सज्जा के लिए शेष बचे कार्यों को अंतिम रूप दे दिया गया। सबसे ज्यादा जोर लाइटिंग को दुरूस्त करने पर रहा। बंगीय समाज के पूजा मंडपों में शनिवार को नव पत्रिका प्रवेश का आयोजन कर सप्तमी पूजा के साथ देवी को प्रथम पुष्पांजलि समर्पित की जाएगी। शेष पंडालों में सप्तमी की सुबह प्राण प्रतिष्ठा कार्य किए जाएंगे। 

बरसात दे रही झटका 

नवरात्र में देवी के पूजनोत्सव में बारिश रोड़े अटका रही है। दोपहर में तेज बरसात से पंडालों की साज-सज्जा का कार्य प्रभावित रहा तो बिजली सजावट को लेकर भी सतर्कता बढ़ानी पड़ी। घूमने निकले लोगों को टूटी सड़कों व जलजमाव के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ा।   

अष्टभुजी मंदिर-शिवपुर

शक्ति पूजकों की श्रद्धा भक्ति का केंद्र आदि शक्ति अष्टभुजी देवी का मंदिर शिवपुर में स्थित है। स्थानीयजन नित्य देवी दरबार में शीश नवाकर ही कामकाज आरंभ करते हैैं। दूर दराज से भी लोग माता की कृपा आकांक्षा से आते हैैं। 

इतिहास : देवी विग्रह स्वयंभू माना जाता है। वर्ष 1977 में एक दिसंबर की सुबह आए भयंकर तूफान में पिछले हिस्से में स्थित पीपल का वृक्ष गिर गया। इससे पौराणिक मंदिर ध्वस्त हो गया। उस समय स्थानीय भक्त अन्नपूर्णा देवी पूजा कर रही थीं। तूफान खत्म होने पर जब लोगों ने ईंट पत्थर हटाए तो देवी विग्रह के साथ ही श्रद्धालु भी सुरक्षित निकलीं। इसके बाद मंदिर को भव्य रूप दिया गया। 

नामकरण : देवी की श्याम वर्ण प्रतिमा ध्यान आकर्षित करती है। आठ भुजाओं के कारण इन्हें अष्टभुजा देवी कहा गया जो अष्टभुजी माता के नाम से ख्यात हैैं।  

वास्तुकला : उत्तर भारतीय शैली के मंदिर का तद्नुसार विशाल भव्य स्वरूप में निर्माण कराया गया। अज्ञातवास के दौरान पांडव जब काशी आए तो शिव शक्ति की आराधना की। पांचों भाइयों ने अलग- अलग शिवलिंग स्थापित किए। द्रौपदी को प्यास लगी तो अर्जुन ने धरा में तीर छोड़कर जलधारा प्रकट कराई जो आज भी द्रौपदी कुंड के रूप में विद्यमान है। 

विशिष्टता : मंदिर की परंपरा व मान्यता के अनुरूप पूजन माली परिवार के जिम्मे है। डेढ़ दशक से महेंद्र माली व जग्गा यह दायित्व निभा रहे हैैं। अनुष्ठान आयोजनों का संचालन 11 सदस्यीय मां अष्टभुजी सेवा समिति करती है। 

 

आयोजन : शारदीय व वासंतिक नवरात्र में नौ दिनों तक मंदिर में विशेष श्रृंगार झांकी सजाई जाती है। अष्टमी तिथि में महाआरती व हवन के साथ सवामणि प्रसाद अर्पित किया जाता है।  


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