नंद के लाल घर-घर बरसाएंगे परमानंद, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 23 व 24 अगस्त को
इस बार प्रभु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव 23 और 24 अगस्त को मनाया जाएगा। पहले दिन गृहस्थजन तो दूसरे दिन रोहिणी मतावलंबी वैष्णवजन प्रभु जन्म का व्रत -उत्सव पर्व मनाएंगे।
वाराणसी, जेएनएन। सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र में अद्र्धरात्रि को वृष राशि के चंद्रमा में हुआ था। इस कारण इस तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहा गया। इस बार प्रभु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव 23 और 24 अगस्त को मनाया जाएगा। पहले दिन गृहस्थजन तो दूसरे दिन रोहिणी मतावलंबी वैष्णवजन प्रभु जन्म का व्रत -उत्सव पर्व मनाएंगे।
तिथि मान : ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी केअनुसार अष्टमी तिथि 23 की भोर 3.16 बजे लग रही है जो 24 की भोर 3.18 बजे तक रहेगी। रोहिणी नक्षत्र 24 की रात 12.11 बजे लग रही है जो 25 की रात 12.28 बजे तक रहेगी। गृहस्थजन व्रत का पारन 24 अगस्त को करेंगे।
श्रीकृष्ण जयंती योग : भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र से संयुक्त होने पर बाल रूपी श्रीहरि भगवान श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। अत: भाद्रपद मास में अष्टमी व रोहिणी एक साथ में अद्र्धरात्रि में मिलने से वह श्रीकृष्ण जयंती का योग होता है। यह तिथि समस्त पापों का हरण करने वाली मानी जाती है। यह तिथि समस्त पापों को हरने वाली होती है। श्रीकृष्ण ही एक ऐसे विशेष देवता हैं जो दशावतारों में से सर्व प्रमुख पूर्णावतार 16 कलाओं से परिपूर्ण माना जाता है। भगवान श्रीराम में 14 कलाओं का ही समावेश था। भगवान का जन्म द्वापर युग के अंत में हुआ था।
पूजन विधान : यह सर्व मान्य व पापघ्न व्रत बाल, कुमार, युवा, वृद्ध सभी अवस्था वाले नर-नारियों को करना चाहिए। इससे पापों की निवृत्ति व सुखादि की वृद्धि होती है। व्रतियों को उपवास की पूर्व रात्रि में अल्पाहारी व जितेंद्रिय रहना चाहिए। तिथि विशेष पर प्रात: स्नानादि कर सूर्य, सोम (चंद्रमा), पवन, दिग्पति (चार दिशाएं), भूमि, आकाश, यम और ब्रह्मïदि को नमन कर उत्तराभिमुख बैठना चाहिए। हाथ में जल-अक्षत-कुश लेकर मास-तिथि-पक्ष का उच्चारण कर 'मेरे सभी तरह के पापों का शमन व सभी अभीष्टों की सिद्धि के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत करेंगे का संकल्प लेना चाहिए।
उत्सव-अनुष्ठान : दोपहर में काले तिल के जल से स्नान कर माता देवकी के लिए सूतिका गृह नियत कर उसे स्वच्छ व सुशोभित करते हुए सूतिकापयोगी सामग्री यथाक्रम रखना चाहिए। सुंदर बिछौने पर अक्षतादि मंडल बनाकर कलश स्थापना और सद्य: प्रसूत श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। रात में प्रभुजन्म के बाद जागरण व भजन का विधान है। इस व्रत-उत्सव को करने से पुत्र की इच्छा रखने वाली महिला को पुत्र, धन की कामना वालों को धन, यहां तक कि कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। अंत में श्रीकृष्ण के धाम वैकुंठ की प्राप्ति होती है।